नई दिल्ली। पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में की जा रही कथित देरी को लेकर राज्य सरकार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों को अंतरात्मा की तलाश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए। राज्यपाल केवल तभी कार्रवाई करते हैं, जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। पंजाब सरकार ने याचिका में विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश देने का अनुरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की असांविधानिक निष्क्रियता से पूरा प्रशासन ठप पड़ गया है।
सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ही करे कार्यवाही
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ के सामने सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल को सुरक्षित रखने का अधिकार है. इस पर पंजाब सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल पूरी विधानसभा से पारित सात विधेयकों को रोके हुए हैं. वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये दो राज्य हैं, जहां जब कि किसी को एब्यूज करना हो, तो सदन का सत्र बुला लिया जाता है. ऐसा संवैधानिक इतिहास में कभी नहीं हुआ है.
राज्यपाल बाध्य है- वह या तो विधेयक वापस कर सकते हैं…
तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल बिल का अध्यन करके बिल पास कर रहे हैं। हम सारा ब्यौरा सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेंगे। इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सात बिल पास हुए। राज्यपाल कुछ कर नहीं रहे। स्पीकर ने विधानसभा को फिर से बुलाया है। विधानसभा ने 7 विधेयक पारित किये हैं। राज्यपाल बाध्य है- वह या तो विधेयक वापस कर सकते हैं, लेकिन वह यह कहते हुए हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं कि सत्र खत्म होने पर आप दोबारा बैठक नहीं कर सकते। सीजेआई ने कहा कई राज्यो में इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है।
पंजाब सरकार बनाम राज्यपाल, ये है पूरा मामला
पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दायर याचिका में विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश देने का अनुरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की असांविधानिक निष्क्रियता से पूरा प्रशासन ठप पड़ गया है। सरकार ने दलील दी कि राज्यपाल अनिश्चितकाल के लिए विधानसभा से पारित विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं। याचिका में पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव को पहले प्रतिवादी के रूप में रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले ही करे कार्यवाही
याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सरकार द्वारा दी गई सहायता और सलाह के अनुसार राज्यपाल को विधानसभा को बुलाना पड़ता है। पंजाब सरकार के कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल से विधानसभा का बजट सत्र तीन मार्च से बुलाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने इस बजट सत्र को बुलाने से इनकार कर दिया था। साथ ही एक पत्र लिखकर कहा कि मुख्यमंत्री सीएम के ट्वीट और बयान काफी अपमानजनक और असंवैधानिक थे। इन ट्वीट पर कानूनी सलाह ले रहे हैं। इसके बाद बजट सत्र को बुलाने पर विचार करेंगे।
गौरतलब है कि 13 फरवरी को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर, सिंगापुर में ट्रेनिंग के लिए भेजे गए प्रिंसिपलों की चयन प्रक्रिया व खर्च समेत चार अन्य मुद्दों पर जानकारी तलब की थी। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने 13 फरवरी को ही ट्वीट कर राज्यपाल की नियुक्ति पर सवाल उठाने के साथ-साथ साफ कर दिया कि राज्यपाल द्वारा उठाए सभी मामले राज्य का विषय हैं। मुख्यमंत्री ने लिखा था कि उनकी सरकार 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह है न कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किसी राज्यपाल के प्रति। इसके बाद से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच उक्त पूरे मामले ने विवाद का रूप ले लिया है।