अगर आप भी कुछ समय देवभूमि आकार मन को शांत करना चाहते हैं तो रुद्रप्रयाग ज़िले के इन पांच अलग-अलग कोनों में स्थित पौराणिक मंदिरों के जरूर करें. केदार घाटी की चोटियों पर स्थित ये मंदिर रहस्यमयी माने जाते है. त्रियुगीनारायण मंदिर इन मंदिरों में सबसे खास है.
इस मंदिर को शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. स्थानीय भाषा में इसे त्रिजुगी नारायण के नाम से पुकारा जाता है यानि तीन युगों से. साथ ही मंदिर में वर्षों से जल रहा अग्नि कुंड है जिसे अखंड धुनी के नाम से जाना जाता है. मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी, सरस्वती व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी देखने को मिलेंगी.
द्रप्रयाग जिले में स्थित यह शिव मंदिर अपनी ट्रेकिंग, सुन्दरता के साथ-साथ ऊंचाई के लिए भी जाना जाता है. जहां हर मौसम में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. मंदिर 3640 मीटर की ऊंचाई पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. यह मंदिर पंच केदार (तुंगनाथ, केदारनाथ, मध्य महेश्वर, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर) में भी सबसे ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर में भगवान भोलेनाथ की भुजाओं की विशेष पूजा की जाती है.
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित चंद्रशिला मंदिर सुंदर और शांत पहाड़ियों के ऊपर स्थित है. जहां दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर (तुंगनाथ मंदिर) में दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालु लंबी ट्रेकिंग के बाद पहुंचते हैं. चंद्रशिला का इतिहास भगवान श्री राम और चंद्रमा से जुड़ा है. साथ ही यह तुंगनाथ मंदिर का भी आखिरी पड़ाव है और यहां पहुंचकर भगवान तुंगनाथ के दर्शन पूरे माने जाते हैं. इसके साथ ही इसे मून रॉक (Moon Rock) भी कहा जाता है.
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी और अलकनंदा का संगम होता है. यह देवप्रयाग तक जाने तक अलकनंदा के नाम से जानी जाती है. मान्यता है कि इस स्थान पर महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पांव पर खड़े होकर उपासना की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रुद्र रूप में आकर यहां दर्शन दिए थे. साथ ही महर्षि नारद को संगीत की शिक्षा प्रदान कर उन्हें पुरस्कार के रूप में वीणा भी भेंट की. इस कारण इस स्थान का नाम रुद्रप्रयाग के नाम से जाने जाना लगा.
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. जो रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग पर कनक चौरी गांव के पास 3050 मीटर की ऊंचाई पर क्रौंच पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. यह मंदिर भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है. साथ ही यह उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां कार्तिकेय बाल्य रूप में विराजमान हैं. मंदिर अपनी भव्यता, पौराणिकता और महत्व अपना महत्वपूर्ण स्थान तो रखता ही है. लेकिन इसके साथ ही साथ मंदिर के चारों ओर का नजारा भी श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचने का काम करता है