हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर रखें प्रदोष व्रत

सनातन पंचांग के अनुसार, 11 अक्टूबर को बुध प्रदोष व्रत है। यह पर्व हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। बुधवार के दिन पड़ने के चलते यह बुध प्रदोष व्रत कहलाएगा। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को शीघ्र ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः प्रदोष व्रत पर साधक श्रद्धा भाव से देवों के देव महादेव और जगत जननी माता पार्वती की पूजा करते हैं। अगर आप भी देवों के देव महादेव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं। साथ ही कर्ज की समस्या से भी मुक्ति मिलती है। आइए, स्तोत्र का पाठ करते हैं-

शिव प्रदोष स्तोत्र
जय देव जगन्नाथ जय शंकर शाश्वत ।

जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ।।

जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।

जय नित्यनिराधार जय विश्वम्भराव्यय ।।

जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।

जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ।।

जय कोट्यर्कसंकाश जयानन्तगुणाश्रय ।

जय भद्र विरुपाक्ष जयाचिन्त्य निरंजन ।।

जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभंजन ।

जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ।।

प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यत: ।

सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ।।

महादारिद्रयमग्नस्य महापापहतस्य च ।

महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ।।

ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभि: ।

ग्रहै: प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शंकर ।।

शिव प्रदोष स्तोत्र पाठ का फल

दरिद्र: प्रार्थयेद् देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ।

अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद् देवमीश्वरम् ।।

दीर्घमायु: सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नति: ।

ममस्तु नित्यमानन्द: प्रसादात्तव शंकर ।।

शत्रव: संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजा: ।

नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जना: सन्तु निरापद: ।।

दुर्भिक्षमारिसंतापा: शमं यान्तु महीतले ।

सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात् सुखमया दिश: ।।

एवमाराधयेद् देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ।

ब्राह्मणान् भोजयेत् पश्चाद् दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ।।

सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारिणी ।

शिवपूजा मयाख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ।।

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