नई दिल्ली। चांद की धरती पर उतरकर भारत ने बुधवार को इतिहास रच दिया। चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर तय समय पर 6 बजकर 4 मिनट पर चांद के उस हिस्से पर उतरा, जहां आज तक कोई भी नहीं पहुंचा था। इस ऐतिहासिक पल का सीधा प्रसारण होने से पूरा देश चंद्रयान-3 के चंद्रमा पर कदम रखने की ऐतिहासिक घटना का गवाह बना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने गए साउथ अफ्रीका से इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।
क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग
भारत ने पहली बार किसी उपग्रह पर अपने किसी यान की सॉफ्ट लैंडिंग कराई है। इस मिशन के सफल होने पर भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है, जिसके पास सॉफ्ट लैंडिंग की स्वदेशी तकनीक है। सॉफ्ट लैंडिंग में खतरे भी बहुत होते हैं और तमाम सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं। हवाई जहाज से कूदने पर थोड़ी ऊंचाई के बाद पैराशूट खोलकर जमीन पर उतरने को भी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कहा जाता है। अगर हवाई जहाज से कूदने वाला व्यक्ति पैराशूट न खोले, तो वह गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव और अपने वजन की वजह से तेजी से जमीन पर टकराएगा, जिससे उसे भारी नुकसान हो सकता है या उसकी मौत भी हो सकती है, लेकिन पैराशूट की वजह से वह सॉफ्ट लैंडिंग करता है। इसी तरह एयरपोर्ट पर लैंडिंग के वक्त विमान का पायलट पहले पिछले पहिए को रनवे पर लैंड कराता है, फिर अगले पहिए को। इससे प्लेन का वजन गति की दिशा में सही तरीके से नीचे आता है और लैंडिंग सेफ होती है। इसे भी सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं।
विक्रम लैंडर ने खुद तलाशी लैंडिंग की जगह
इसरो के मुताबिक चांद पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति धरती की अपेक्षा 1/6 कम है। यानी वहां गिरने की गति ज्यादा तेज है, क्योंकि वहां वायुमंडल नहीं है, इसलिए घर्षण से गति कम करने की कवायद भी नहीं की जा सकती थी। इसलिए जब विक्रम लैंडर ने 25 किमी. की ऊंचाई से चांद की सतह पर उतरना शुरू किया, तो उसके नीचे लगे चारों इंजनों को ऑन कर दिया गया। इस तरह जो इंजन अभी तक विक्रम लैंडर को आगे बढ़ाने का काम कर रहे थे, वही इंजन विपरीत दिशा में दबाव बनाकर विक्रम की गति को कम करके 2 मीटर प्रति सेकंड पर ले आये और लैंडिंग से कुछ सेकंड पहले गति जीरो कर दी गई। यह सारा काम विक्रम लैंडर में मौजूद ऑनबोर्ड कंप्यूटर ने किया। उसमें लगे सेंसर्स ने सही और गलत जगह की तलाश की और फिर विक्रम लैंडर अपने चारों पैरों के सहारे आराम से चांद की सतह पर उतर गया।