चित्तौड़गढ़ । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मंगलवार को अपने विद्यालय- सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ पहुंचे और वहां छात्रों, पूर्व-छात्रों और शिक्षकों से मिले। उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि ऐसा काम करें, जिससे देश का नाम ऊंचा हो। ज्ञात रहे कि धनखड़ ने सन 1962 से 1967 तक अपनी स्कूली शिक्षा यहीं से पूरी की थी।
इस अवसर पर भावुक होते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज मैं जो कुछ हूं, सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ और यहां मिली शिक्षा की बदौलत ही हूं…, इस माटी को मैं सलाम करता हूं!” उन्होंने आगे कहा कि यहां के वातावरण में बच्चों के सर्वांगीण विकास का अवसर मिलता है, इसीलिए सैनिक स्कूल का बच्चा जहां भी जाता है, उसकी लीडरशिप क्षमता के कारण एक अलग पहचान बनती है।
सैनिक स्कूल के छात्र-छात्राओं से मुलाकात के दौरान उपराष्ट्रपति ने अपने स्कूल के दिनों के कई रोचक संस्मरण सुनाए। उन्होंने बताया कि गांव के प्राइमरी स्कूल में पांचवीं कक्षा तक एबीसीडी नहीं सिखाई जाती थी, इस कारण उन्हें सैनिक स्कूल में शुरुआती दिनों में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एक बार प्रिंसिपल ने कक्षा में उनसे अंग्रेजी में कुछ सवाल पूछे तो वे समझ नहीं सके। प्रिंसिपल ने उन्हें शाम को अपने घर पर चाय के समय बुलाया, तब उन्होंने हिम्मत कर प्रिंसिपल से कहा, “सर मैं होशियार लड़का हूं, पर अंग्रेजी नहीं आती।” उपराष्ट्रपति ने बताया कि उन प्रिंसिपल ने मुझे मार्गदर्शन दिया और मेरा जीवन बदल गया। मैं आजीवन उनका ऋणी रहूंगा। उन्होंने कहा कि बेहद कम उम्र में सैनिक स्कूल में आने से उनकी मां को बहुत चिंता रहती थी, इसलिए वह रोज एक पोस्टकार्ड अपनी मां के लिए लिख कर भेजा करते थे।” उन्होंने कहा कि जब मैं घर जाता था तो मां खाली पोस्टकार्ड का एक पैकेट मुझे दे दिया करती थीं।
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा, “आप भाग्यशाली हैं कि ऐसे समय में जी रहे हैं, जब भारत अभूतपूर्व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है। आज देश में ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया गया है कि आपके पास सिर्फ एक आइडिया होना चाहिए, आपको वित्त और मार्गदर्शन की कमी नहीं रहेगी।” उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने आइडिया को अपने दिमाग में न रखें बल्कि उसे हकीकत में उतारने की हर संभव कोशिश करें। छात्रों को अति-प्रतिस्पर्धा में न पड़ने की सलाह देते हुए उपराष्ट्रपति ने उनसे अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था और हमेशा डरा रहता था कि फर्स्ट न आया तो क्या होगा। उस डर के कारण मैंने बहुत कुछ खोया… मैं अधिक दोस्त बना पाता, अधिक हॉबी कर पाता।”
छात्रों को अपनी रुचि का कैरियर चुनने की सलाह देते हुए धनखड़ ने कहा, “हमारे जमाने में बच्चा पैदा होते ही माता पिता तय कर देते थे कि वो फौजी बनेगा या डॉक्टर बनेगा या इंजीनियर बनेगा… और जिंदगी भर उसे वही बनाने की कोशिश करते थे, भले ही बच्चे की उसमें रुचि हो या नहीं।” नदी और नहर का उदाहरण देते हुए उपराष्ट्रपति ने छात्रों से कहा की बंधे किनारों वाली नहर ना बनें बल्कि स्वतंत्र नदी बनें, जो अपना रास्ता स्वयं चुनती है।”
उपराष्ट्रपति ने भारत द्वारा नित रचे जा रहे कीर्तिमानों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। आज भारत अपने औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया, “आप 2047 के सिपाही हैं, आप हर प्रयास करें ताकि भारत आजादी की शताब्दी मनाते समय विश्व में शिखर पर पहुंचे।”
कानून को सर्वोपरि रखने पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ लोग समझते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं और जब कानून का शिकंजा उन पर कसता है तो वे सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाते हैं। धनखड़ ने यह भी कहा किसी को भी राष्ट्र और हमारी संस्थाओं की छवि धूमिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें हमेशा ऐसा काम करना चाहिए, जिससे देश का नाम ऊपर हो। हर हालत में हमें देश को सर्वोपरि रखना होगा।
सैनिक स्कूलों में लड़कियों के एडमिशन को एक सकारात्मक और अच्छी शुरुआत बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में इसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। यहाँ उपस्थित सभी बेटियों को मैं हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।