इस बार वर्ल्ड टीबी डे की थीम ‘इनवेस्ट टू एंड टीबी, सेव लाइव्स’ रखा गया है. इसका मतलब है कि हमें टीबी को खत्म करना है और जिंदगी को बचाना है. आज ही के दिन 1982 में डॉ रॉबर्ट कोच ने माइक्रोबैक्टीरियल ट्यूबरक्यूलोसिस बैक्टीरिया की खोज की थी. टीबी की बीमारी का कारण यही बैक्टीरिया है.
फेफड़ों के अलावा किसी भी अंग में हो सकती है टीबी
खांसने या छींकने से हवा के जरिए टीबी का बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करता है. टीबी की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकलनेवाली छोटी-छोटी बूंदों के जरिए अन्य लोग प्रभावित हो सकते हैं. फेफड़ों के अलावा ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी या गले में भी टीबी की बीमारी हो सकती है. लेकिन फेफड़ों में होने वाली टीबी से ही खांसने या छीकंने के जरिए बीमारी फैलती है. एक्सपर्ट का कहना है कि फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों में टीबी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है और टीबी की बीमारी किसी भी अंग में हो सकती है. बीमारी से दूर रहने के लिए जागरूक होना जरूरी है. मरीजों को समय-समय पर जांच कराने की सलाह दी जाती है क्योंकि टीबी का सही समय पर इलाज ना होने पर बीमारी गंभीर हो जाती है. टीबी की गंभीर स्थिति में दवा लेने पर भी काम नहीं करती.