क्या सीएम चेहरे पर सस्पेंस ही महागठबंधन की रणनीति? 2024 मॉडल के सहारे बिहार जीतने की तैयारी

बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी बढ़ने के साथ-साथ राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है. आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन की एक के बाद एक बैठक हो रही है, लेकिन सीएम चेहरे पर सस्पेंस बना हुआ है. दिल्ली के बाद पटना में हुई बैठक में महागठबंधन को पशुपति पारस के रूप में नया साथ मिल गया है, तो मुकेश सहनी मजबूती से खड़े नजर आ रहे हैं.

महागठबंधन की पटना में गुरुवार को हुई बैठक में एक कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने का फैसला किया. इस कमेटी के अध्यक्ष आरजेडी नेता तेजस्वी यादव होंगे. इस तरह से तेजस्वी यादव 2025 के चुनाव में महागठबंधन में लीड रोल में रहेंगे, लेकिन सीएम पद के चेहरे का सवाल जस का तस बना रहा. कांग्रेस तेजस्वी को सीएम का चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती, जो उसकी रणनीति का हिस्सा नहीं है.

सीएम चेहरे पर नहीं बनी सहमति
बिहार की राजधानी पटना में महागठबंधन की ढाई घंटे तक बैठक चली. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुई बैठक में एलजेपी (आर) के प्रमुख पशुपति पारस के महागठबंधन में शामिल होने का ऐलान किया गया. बैठक में यह तय हुआ कि महागठबंधन में तालमेल बिठाने के लिए एक कोआर्डिनेशन कमेटी गठित की जाएगी, जिसे लीड तेजस्वी यादव करेंगे और इस कमेटी में सभी दलों के सदस्य होंगे.

कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने कहा कि विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन एकता और स्पष्टता के साथ चुनाव लड़ेगा. उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन बिहार की जनता के मुद्दों पर चुनाव लड़ेगा. हालांकि, सीएम चेहरे के सवाल पर अल्लापरु गोल-मोल जवाब देते नजर आए और तेजस्वी के नाम पर मुहर नहीं लगाई. हां एक बात जरूर कही कि तेजस्वी यादव के अगुवाई में महागठबंधन चुनाव लड़ेगी.

वहीं, सीएम फेस पर सहमति नहीं बनने के सवाल तेजस्वी यादव ने कहा कि महागठबंधन में कोई चिंता नहीं है. चिंता एनडीए गठबंधन के लोगों को होनी चाहिए. मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर उन्होंने कहा कि एक ही दिन में सब कुछ घोषणा नहीं होगी, थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए. इस दौरान उन्होंने यह भी दावा किया कि महागठबंधन के सभी दल एक साथ हैं और जो भी होगा, सब मिलकर साझा करेंगे.

तेजस्वी के चेहरे पर क्यों सस्पेंस?
सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाए रखने की स्ट्रैटेजी के साथ कांग्रेस बिहार चुनाव लड़ना चाहती है, जिस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने किसी को पीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था. इस फॉर्मूले पर बिहार चुनाव में उतरने की कवायद है. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव कह चुके हैं कि तेजस्वी यादव सीएम का चेहरा होंगे,तो तेजस्वी भी अपने नाम का ऐलान कर चुके हैं. इसके बाद भी कांग्रेस तेजस्वी को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती.

कांग्रेस का तर्क है कि तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित कर महागठबंधन चुनावी मैदान में उतरी, तो उससे सियासी समीकरण गड़बड़ा सकता है. तेजस्वी के नाम पर यादव को छोड़कर, दलित अन्य पिछड़ी जातियां और सवर्ण समाज का वोट नहीं मिल पाएगा. ये बात राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने सीधे तौर पर दिल्ली बैठक में तेजस्वी यादव को बता दी. हां, ये जरूर आश्वासन दिया कि अगर बिहार में सरकार बनाने का मौका हाथ आता है, तो तेजस्वी यादव को सीएम बनाया जा सकता, लेकिन चुनाव में उनके नाम की घोषणा कर लड़ना जोखिम भरा कदम हो सकता है.

क्या है इंडिया गठबंधन का फॉर्मूला?
महागठबंधन अगर तेजस्वी यादव को आगे कर चुनावी मैदान में उतरी है, तो सवर्ण जाति के वोटों के छिटकने का ज्यादा खतरा कांग्रेस को लग रहा. इसीलिए कांग्रेस बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव वाले फार्मूले पर लड़ने की तैयारी में है. इंडिया गठबंधन ने 2024 में पीएम पद का चेहरा घोषित करके चुनाव नहीं लड़ा था. इंडिया गठबंधन ने एक ज्वाइंट कमेटी जरूर बनाई थी, उसी तर्ज पर बिहार में कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई जा रही है.

कांग्रेस की रणनीति है कि बिना सीएम चेहरे के उतरने से किसी समाज के वोट छिटकने का खतरा नहीं होगा. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस तेजस्वी को सीएम चेहरे की बात नहीं कर रही, ऐसे में कांग्रेस ने रणनीति बनाई है कि चुनाव के बाद जो पार्टी सबसे बड़ी बनकर उभरेगी, वही पार्टी नेता तय करेगी, जिस तरह लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है. उसी तरह बिहार में महागठबंधन की सत्ता में वापसी होती है और आरजेडी अगर सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो तेजस्वी यादव को सीएम बनाया जा सकता है.

कांग्रेस के फॉर्मूले पर तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी ने अपनी फाइनल स्वीकृति नहीं दी है, लेकिन तेजस्वी ने जिस तरह से कहा कि महागठबंधन में कन्फ्यूजन नहीं है. इससे जाहिर होता है कि आरजेडी वेट एंड वॉच के मूड में है और कांग्रेस के फार्मूले पर मंथन कर रही है. वहीं, कांग्रेस नेतृत्व सीएम के नाम पर आधिकारिक घोषणा से पहले सभी गठबंधन सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे पर स्पष्टता जैसी औपचारिकताओं को पूरा कर लेना चाहता है.

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला कब होगा तय?
महागठबंधन की तस्वीर साफ हो गई है, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस, वामपंथी दल, वीआईपी और पशुपति पारस की पार्टी शामिल रहेगी. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो सका कि कौन कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगा. महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के बीच गंभीर पेंच फंसा हुआ है. कांग्रेस चाहती है कि उसे पिछली बार की तरह सीटें मिलें. पिछली बार उसे 70 सीटें गठबंधन के तहत मिली थीं, लेकिन महज 19 सीटें जीत पाई थी.

बिहार में इल्जाम लगा था कि कांग्रेस के स्ट्राइक रेट के चलते ही महागठबंधन की सरकार नहीं बन सकी थी. ऐसे में आरजेडी चाहती है कि इस बार कम सीटें कांग्रेस को दी जाएं. उसे लगता है कि अगर पिछली बार कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी होती तो वो सरकार बना लेती. इस बार महागठबंधन में घटक दलों की संख्या भी बढ़ गई है, जिस वजह से भी सीटों के साथ समझौता करना होगा.

सीएम चेहरे पर सस्पेंस के चलते भी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो पा रहा. साथ में कांग्रेस ने ये भी तेजस्वी को बता दिया कि भले ही कुछ सीटों की संख्या कम कर दें, लेकिन सीटें कांग्रेस की पसंद की होनी चाहिए, जिससे जीतने के चांसेस ज्यादा हों. आरजेडी पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस ने हाल-फिलहाल कन्हैया कुमार को बिहार में आगे कर दिया है. पप्पू यादव भी कांग्रेस के लिए फिल्डिंग कर रहे हैं.

आरजेडी को पता है कि कांग्रेस अगर गठबंधन से अलग हो गई, तो एकमुश्त मिलने वाले मुस्लिम वोटों में सेंधमारी हो सकती है. वहीं कांग्रेस को भी पता है कि उसका संगठन बिहार में बेहद कमजोर है तो गुंजाइश दोनों के अलग होने की यहां भी नहीं है, बस एक दूसरे को ताकत दिखाई जा रही है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाकर किस्मत चमकाई जा सके. फिलहाल सीट बंटवारे तक ये चलता रहेगा. सीट के जातीय समीकरण का भी ख्याल रखा जा रहा है. यही वजह है कि आरजेडी जहां अपने परंपरागत क्षेत्रों में ज्यादा सीटें चाहती है, तो वामदल और छोटे सहयोगी दल इस बार बराबरी की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस मुस्लिम-यादव समीकरण वाली सीटों पर डिमांड कर रही.

बिहार में जातीय समीकरण विनिंग फॉर्मूला
बिहार की राजनीति में जातीय संतुलन हमेशा से सीट बंटवारे का आधार रहा है. इस बार भी यादव, कुशवाहा, दलित, महादलित, सवर्ण और मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए सीटों का वितरण किया जाएगा. कांग्रेस जहां मुस्लिम, दलित और सवर्ण मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है, वहीं मुकेश सहनी निषाद समुदाय को साधने की कोशिश में हैं. महागठबंधन इसी रणनीति के तहत सियासी दांव चल रही है. अब देखना है कि किस का समीकरण बिहार में फिट बैठता है?

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