
ऋषिकेश ही नहीं, लोग अब उत्तराखंड में कर्णप्रयाग तक ट्रेन से सफर का आनंद ले सकेंगे. रेलवे ने 125 किलोमीटर लंबे इस रेल लाइन का काम लगभग पूरा कर लिया है. दिलचस्प बात ये है कि इस 125 किलोमीटर के सफर में लोगों को सिर्फ 20 किलोमीटर ही खुले में सफर का आनंद मिलेगा. बाकी के 105 किलोमीटर तक ट्रेन सुरंगों में ही रहेगी. यानी पहाड़ी इलाकों में रेल के सफर का आनंद उठाने वाले लोगों को इस रूट पर एक अलग रोमांच का अनुभव होगा. साथ ही कर्णप्रयाग तक लोगों की डायरेक्ट पहुंच हो सकेगी.
उत्तराखंड में अभी ऋषिकेश तक ही ट्रेनें जाती हैं. इसके आगे पहाड़ी इलाके होने की वजह से ट्रेनों का आवागमन नहीं हो सका है. हालांकि, नए ट्रैक के बन जाने से लोगों को काफी राहत मिलेगी. इस रूट में गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के कुछ जिले शामिल होंगे. इस रूट से ऋषिकेश गढ़वाल क्षेत्र में स्थित कर्णप्रयाग शहर से रेल के माध्यम से जुड़ जाएगा. अब इसके निमार्ण में रेलवे विकास निगम लिमिटेड ने नई उपलब्धि हासिल की है. यह उपलब्धि टनल की खुदाई करने में मिली है.
भारतीय रेलवे ने बनाया रिकॉर्ड
दुनिया में इतनी तेजी से किसी भी सुरंग की खुदाई का काम नहीं हुआ. भारत में इस रूट पर रेलवे ने 413 मीटर प्रति माह की औसत से सुरंग की खुदाई की है. इसके लिए सिंगल शील्ड टीबीएम मशीन का इस्तेमाल किया गया. ये दुनिया में दूसरा सबसे तेज खुदाई का काम है. इससे पहले स्पेन में सबसे तेज सुरंग खोदी गई थी. हालांकि, वहां पर इस्तेमाल की गई मशीन डबल शील्ड वाली थी.
नई तकनीक से हुई सुरंग की खुदाई
इस रेल खंड में भारत की सबसे लंबी सुरंग भी बन रही है. ये देवप्रयाग से जनासू के बीच है. इसकी लंबाई 14.58 किलोमीटर होगी. फिलहाल भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग की लंबाई 12.77 किलोमीटर है, जो कि जम्मू-कश्मीर में सुम्बर और खारी के बीच है. भारत में इससे पहले पहाड़ी इलाकों में सुरंग की खुदाई ड्रील करके या ब्लास्ट करके की जाती थी.
इससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता था. साथ ही इससे काफी समय भी खराब होता था. नई तकनीक और मशीन से कम समय में बिना किसी नुकसान के आसानी खुदाई हो पा रही है. इसके लिए जर्मनी की मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
चुनौतीपूर्ण थी परियोजना
निगम ने बताया कि हिमालय किसी भी निर्माण कार्य के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण जगह है. इसलिए यह पूरी परियोजना ही एक चुनौतीपूर्ण और मुश्किलों से भरी हुई थी. कुल 125 किलोमीटर के सफर में 105 किलोमीटर सुरंगों से होकर गुजरना है. वहीं, तीन किलोमीटर पुलों और चार किलोमीटर एडिट और क्रॉस पैसेज द्वारा कवर किया जाना है.
इससे सुरंग में आने वाली ट्रेन या यातायात के कारण हवा के प्रवाह से उत्पन हुए दबाव को नियंत्रित और उसका अध्ययन करने में मदद मिलेगी. इस परियोजना का 92 प्रतिशत काम पूरा हो गया है तथा इसे दिसंबर 2026 तक आम लोगो के लिए खोल दिया जायेगा.