लखनऊ में खाली प्लॉट मालिकों को बना रहे थे निशाना, सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से हो रहा था बड़ा फ्रॉड

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आशियाना बनाने के लिए जमीन की चाहत बहुत लोगों की होती है. कई लोगों के ख्वाब लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने पूरे भी किए, लेकिन कई लोगों को एलडीए के सरकारी बाबुओं ने एक गिरोह के साथ मिलकर चूना भी लगा दिया. फ्रॉड उनके साथ हुआ, जिन्होंने जमीन तो ले ली थी लेकिन निर्माण नहीं कराया था. बीते दिनों एसटीएफ ने एक ऐसे रैकेट को पकड़ा, जो पॉश इलाकों की जमीन की फर्जी रजिस्ट्री करता था.

दरअसल, यूपी ब्यूरोक्रेसी के एक सीनियर आईएएस अफसर की जमीन को फर्जी तरीके से बेच दिया गया था. इसकी शिकायत एसटीएफ से की गई थी. फिर एसटीएफ ने गिरोह के 6 सदस्यों को पकड़ा. इनके पास से कई दस्तावेज भी बरामद किए गए. पुलिस ने जब इन आरोपियों से पूछताछ की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. यह गिरोह पिछले 10 सालों से एक्टिव था और एलडीए के उन प्लॉट को फर्जी तरीके से बेच रहा था, जहां पर निर्माण नहीं हुआ था.

10 साल के अंदर 100 करोड़ की फर्जी रजिस्ट्री
सूत्रों के मुताबिक, इस गिरोह ने 10 साल के अंदर 90 से अधिक प्लॉट की फर्जी रजिस्ट्री की. इन प्लॉट की मौजूदा समय में कीमत 100 करोड़ रुपये बताई जा रही है. पुलिस ने जब गिरोह के सदस्यों से कड़ी पूछताछ की तो सारे तार एलडीए के सरकारी बाबुओं से जुड़ गए. एलडीए के संपत्ति विभाग के ज्यादातर कर्मचारी इस फ्रॉड में शामिल थे और गिरोह के सदस्यों को खाली प्लॉटों का पूरा ब्योरा देते थे. अभी तक ऐसे 16 सरकारी बाबुओं की पहचान हो गई है.

एसटीएफ को सौंपे गए 16 कर्मचारियों के नाम
जब पूरे रैकेट का खुलासा हुआ तो एलडीए के वीसी प्रथमेश कुमार ने भी एक जांच बैठा दी. इस जांच में पता चला कि 16 कर्मचारियों ने गिरोह के साथ मिलकर खाली प्लॉटों का ब्योरा दिया था. जांच की शुरुआत में सिर्फ 8 कर्मचारियों का नाम सामने आया था, लेकिन बाद में कर्मचारियों की संख्या 16 हो गई. इसमें से 6 कर्मचारी वीआरएस ले चुके हैं. एलडीए ने सभी 16 कर्मचारियों का नाम एसटीएफ को दे दिया है. अब एसटीएफ इन कर्मचारियों से पूछताछ करेगी.

वीसी बोले- 15 साल से चल रहा था यह फर्जीवाड़ा
इन कर्मचारियों ने एलडीए की ओर से डेवलेप किए गए के गोसाईंगंज, जानकीपुरम विस्तार, गोमती नगर और सरोजिनी नगर में खाली प्लॉटों की जानकारी गिरोह के सदस्यों को उपलब्ध करवाई थी. एलडीए के वीसी प्रथमेश कुमार ने बताया कि यह फर्जीवाड़ा करीब 15 साल से चल रहा था और इसमें संपत्ति विभाग के ज्यादातर कर्मचारी मिले हुए थे… इन सबके खिलाफ विभागीय जांच चल रही है और साथ ही इन कर्मचारियों की लिस्ट एसटीएफ को सौंप दी गई है.

कैसे किया जाता था फ्रॉड?
एलडीए के संपत्ति विभाग के कर्मचारी उन सभी खाली प्लॉट की लिस्ट गिरोह को सौंपते थे, जहां कोई निर्माण नहीं हुआ होता था या फिर वह संपत्ति किसी रसूखदार शख्स की न होती थी. कर्मचारी सिर्फ जानकारी ही नहीं, बल्कि प्लॉट के सारे कागज भी मुहैया कराते थे. प्लॉट का कागज मिलने के बाद गिरोह की एक टीम फर्जी दस्तावेज तैयार करती थी, जिसमें उस प्लॉट के मालिक के नाम पर ही एक फर्जी आधार कार्ड बनवाया जाता था.

इसके बाद गिरोह के सदस्य उन लोगों से संपर्क करते, जो सस्ते दर में प्लॉट खरीदना चाहते हैं. उनको नकली मालिक से मिलवाया जाता और फिर सभी डॉक्यूमेंट दिखाए जाते. अगर प्लॉट को खरीदने वाला फर्जी डॉक्यूमेंट को री-वेरिफाई करता तो सरकारी कर्मचारी उसे सही बता देते थे. फिर एक घर में बैठकर प्लॉट की रजिस्ट्री कर दी जाती. प्लॉट बेचने के बाद गिरोह के सदस्य फरार हो जाते हैं. ऐसे ही प्लॉट फ्रॉड के कई मामले अभी भी कोर्ट में चल रहे हैं.

 

 

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