“मणिपुर में हिंसा फिर क्यों भड़की, क्या एक फैसले ने उकसाया?”

मणिपुर में एन बीरेन सिंह के सीएम पद से इस्तीफा के बाद राष्ट्रपति शासन लागू है. केंद्र सरकार यहां पर लंबे समय से दो जानजातीय समूह कुकी और मैतेई के बीच हो रही हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए एक के बाद एक कदम उठा रही है, लेकिन मणिपुर इससे कब मुक्त होगा, इसका अंदाजा लगाना वाकई में मुश्किल है.

क्योंकि एक बार फिर से मणिपुर में हिंसा के हालात फिर से देखे गए हैं. हिंसा की ताजा आग ने एक प्रदर्शनकारी की जान ले ली और संघर्षग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य में 40 से ज्यादा लोगों को घायल कर दिया. इन घायल लोगों में 27 सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं. इनमें कुछ महिलाएं और पुरुष भी हैं. जब राज्य में एक नए बदलाव का फैसला लिया गया था, तब इस तरह की हिंसा की घटना का सामने आना वाकई में परेशान करने वाला है.

फ्री मूवमेंट का लिया गया था फैसला
राज्यपाल की अपील के बाद मणिपुर में मार्च के पहले हफ्ते तक हथियारों का सरेंडर किया गया. जब सरेंडर की डेडलाइन खत्म हुई तब यहां पर एक और स्टेप की ओर आगे बढ़ने पर काम किया गया. केंद्र सरकार की ओर से निर्देश दिया गया कि 8 मार्च से यहां पर फ्री मूवमेंट अभियान शुरू होगा. सुरक्षाबलों की ओर से जगह-जगह पर छापेमारी की जाने लगी. ऐसे में जब इस अभियान का पहला दिन था, उसी दिन हिंसा और आगजनी की घटना ने बहुत सारी मुश्किलें खड़ी कर दी है.

फिर से क्यों हुई हिंसा?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में राज्य भर में लोगों की स्वतंत्र आवाजाही का आदेश दिया. जैसे ही राज्य के कांगपोकपी जिले से बस की आवाजाही शुरू हुई, कुकी प्रदर्शनकारियों ने बस पर पथराव और हमला करना शुरू कर दिया.

सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई की, लेकिन जल्द ही इस घटना ने बड़ा रूप ले लिया. क्योंकि प्रदर्शनकारी भीड़ ने राज्य परिवहन की एक बस को इंफाल से सेनापति जिले की यात्रा करने से रोकने की कोशिश की. गमगीफई, मोटबंग और कीथेलमैनबी में झड़पों के दौरान कम से कम 16 प्रदर्शनकारियों को चोटें आईं. सभी को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मणिपुर में कुकी और मैतीय समुदाय के लोग एक दूसरे के क्षेत्र में नहीं जाते हैं, ऐसे में फ्री मूवमेंट होने के बाद उनमें काफी आक्रोश दिखाई दिया.

 

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