Supreme Court : अदालतों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में अदालतों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने पर हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक अदालत का अधिकार क्षेत्र तय होता है, और किसी अन्य अदालत को दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा- कि अगर एक कोर्ट किसी मामले में सुनवाई कर रही है, तो दूसरी अदालत को उस पर फैसला देने या हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, यह न्यायिक स्वतंत्रता और संविधानिक सिद्धांतों के खिलाफ होता है। कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले में पारदर्शिता बनाए रखें और अन्य अदालतों के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन न करें। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया और संविधानिक प्राधिकरण के महत्व को स्पष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में इस तरह के अतिक्रमण से बचने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।इस फैसले से यह संदेश गया कि न्यायिक कार्यवाही में सभी अदालतों को अपनी-अपनी सीमाओं का पालन करना चाहिए और किसी दूसरे अदालत के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में अदालतों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने पर हाईकोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक अदालत का अधिकार क्षेत्र तय होता है, और किसी अन्य अदालत को दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा- कि अगर एक कोर्ट किसी मामले में सुनवाई कर रही है, तो दूसरी अदालत को उस पर फैसला देने या हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, यह न्यायिक स्वतंत्रता और संविधानिक सिद्धांतों के खिलाफ होता है। कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले में पारदर्शिता बनाए रखें और अन्य अदालतों के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन न करें। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया और संविधानिक प्राधिकरण के महत्व को स्पष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में इस तरह के अतिक्रमण से बचने के लिए उचित कदम उठाए जाएं।इस फैसले से यह संदेश गया कि न्यायिक कार्यवाही में सभी अदालतों को अपनी-अपनी सीमाओं का पालन करना चाहिए और किसी दूसरे अदालत के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

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नहीं छीनी जा सकती किसी की जमीन, संपत्ति के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा  फैसला - Navbharat Live (नवभारत) - Hindi News | right to property is a  constitutional right supreme courtयह घटना एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) द्वारा की गई कार्रवाई से जुड़ी है, जहां एनसीबी ने एक मामले में दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था और उनके पास से एक संदिग्ध पाउडर बरामद किया था, जिसे हेरोइन समझा जा रहा था। इसके बाद, एनसीबी ने पाउडर को जांच के लिए भेजा। जांच के बाद, 30 जनवरी 2023 को लैब की रिपोर्ट आई, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि पाउडर हेरोइन नहीं था। लैब ने पाउडर के हेरोइन होने से इनकार कर दिया, जिससे जांच में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। इस रिपोर्ट ने पूरे मामले को नया दिशा दी, क्योंकि जो पहले एक ड्रग तस्करी के मामले के रूप में देखा जा रहा था, वह अब अलग प्रकार के सबूतों की ओर इशारा कर रहा था। इस प्रकार के मामलों में जांच की अहमियत बहुत अधिक होती है, और यह भी दर्शाता है कि कई बार शुरुआत में जो चीजें संदिग्ध लगती हैं, वे जांच के बाद साफ हो जाती हैं। एनसीबी और अन्य जांच एजेंसियों को इस प्रकार के मामलों में पूरी पारदर्शिता और सटीकता से काम करना होता है, ताकि किसी निर्दोष को नुकसान न हो।

आपने न्यायिक अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है,' सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई  कोर्ट की क्यों की आलोचना? - supreme court patna high court subrata rai  sahara ntc - AajTak

सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर फैसला सुनाने पर नाराजगी जताई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला पलट दिया, जिसमें नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक व्यक्ति को गलत तरीके से हिरासत में रखने के लिए पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा- कि मुआवजा देने का आदेश कानूनी अधिकार के बिना लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिए। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

क्या है मामला..

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नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मान सिंह वर्मा और अमन सिंह नामक व्यक्तियों के पास से 1280 ग्राम संदिग्ध पाउडर बरामद किया था। इस संदिग्ध पाउडर को कथित तौर पर हेरोइन बताया गया। एनसीबी ने इस मामले में दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कर दोनों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद संदिग्ध पाउडर को जिसे हेरोइन बताया जा रहा था, उसे जांच के लिए भेजा गया। 30 जनवरी 2023 को लेबोरेट्ररी ने अपनी रिपोर्ट में संदिग्ध पाउडर के हेरोइन होने से इनकार कर दिया। इसके बाद एनसीबी ने पाउडर को और जांच के लिए चंडीगढ़ स्थित सीएफएसएल लेबोरेट्री भेजा, लेकिन वहां से भी रिपोर्ट निगेटिव आई।

इसके बाद एनसीपी ने क्लोजर रिपोर्ट लगाकर मामला बंद कर दिया और आरोपियों को जेल से रिहा कर दिया। इस बीच एक आरोपी ने जमानत के लिए उच्च न्यायालय में अपील की थी। जब आरोपी के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दाखिल हुई तो याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा- कि युवक को गलत तरीके से जेल में रखा गया और जब एक रिपोर्ट में पता चला गया था कि संदिग्ध पाउडर ड्रग नहीं है तो फिर भी युवक को जेल से रिहा नहीं किया गया और सीएफएसएल की रिपोर्ट का इंतजार किया गया। ऐसे में अदालत ने एसीबी को जेल से रिहा किए गए व्यक्ति को पांच लाख रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा..

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इस मामले पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कि बार बार देखा गया है कि अदालतें अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर आदेश सुनाती हैं। यह मामला भी इसका उदाहरण है। इस मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका पहले ही निष्फल हो गई थी क्योंकि जिला अदालत ने पहले ही प्रतिवादी को रिहा करने का आदेश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा- कि स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध और स्थापित प्रक्रियाओं के बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना उसके अधिकारों का अपमान है, लेकिन इसके संबंध में कानून उपचार तक ही सीमित हैं।

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