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अशोक भाटिया
महाराष्ट्र की महायुति सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। इसके संकेत उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हालिया बयानों से मिलते हैं। सूत्रों की मानें तो शिंदे और मुख्यमंत्री फडणवीस के बीच कोल्ड वॉर की स्थिति है। इस बीच शुक्रवार को एकनाथ शिंदे ने एक बार फिर दो दिन पहले दिया अपना ‘टांगा पलटने’ वाला बयान दोहराया। नागपुर में पत्रकारों ने शिंदे से जब उनके इस बयान के बारे में सवाल किया, तो उन्होंने कहा, ‘ये तो मैंने पहले ही कहा है, जिन्होंने मुझे हल्के में लिया है। मैं एक कार्यकर्ता हूं, सामान्य कार्यकर्ता हूं। लेकिन बाला साहेब और दिघे साहेब का कार्यकर्ता हूं। ये समझ के मुझे सबने लेना चाहिए और इसलिए जब हल्के में लिया तो 2022 में टांगा पलटी कर दिया। सरकार को बदल दिया और हम आम जनता की इच्छाओं की सरकार लाए। इसलिए मुझे हल्के में मत लेना, ये इशारा जिन्हें समझना है वे समझ लें।’
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच मतभेदों की अटकलों के बीच, ₹900 करोड़ की एक और परियोजना, जिसे शिंदे के सीएम कार्यकाल के दौरान मंजूरी दी गई थी, वो अब रोक दी गई है। शिंदे द्वारा अनुमोदित जालना जिले की यह परियोजना अब मुख्यमंत्री कार्यालय के आदेश के अनुसार सिडको के प्रबंध निदेशक द्वारा जांच की जा रही है। इस घटनाक्रम से शिवसेना और बीजेपी के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे सीएम फडणवीस और डिप्टी सीएम शिंदे के बीच तनाव बढ़ सकता है।
जालना खारपुडी परियोजना की जांच ने इसकी वैधता और शिंदे की मंजूरी के पीछे के इरादों पर सवाल उठाए हैं। उद्धव ठाकरे गुट के पूर्व विधायक संतोष सांबारे ने भी इस मामले में सीएम फडणवीस से कार्रवाई की मांग की है। शिवसेना यूबीटी के नेता और महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने भी सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर परियोजना में अनियमितताओं को उजागर करते हुए हाई पावर कमेटी से जांच कराने और राज्य सरकार को गुमराह कर सरकारी खजाने को सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। इस घटनाक्रम ने जालना खारपुडी परियोजना के भाग्य और महायुति सरकार में समन्वय पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे 3 सरकारी कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए। उनके इस कदम से राज्य में उन चर्चाओं को बल मिला है कि सत्तारूढ़ गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि वो गुरुवार को दिल्ली में नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे। वहां पीएम नरेंद्र मोदी उनसे बातचीत करते हुए भी नजर आए थे। लेकिन राज्य के सरकारी कार्यक्रमों में न शामिल होने से लग रहा है कि सरकार चला रही महायुति में तनातनी चल रही है। पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में महायुति की सरकार चल रही है।
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे थाणे जिले के बदलापुर में आयोजित छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के अनावरण पर आयोजित कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुए। थाणे उनका गृह जिला है। वो इसी जिले से चुनकर आए हैं। शिंदे ऐतिहासिक आगरा किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुए। वो अंबेगांव बुद्रक में आयोजित शिवसृष्टी पार्क के दूसरे चरण के उद्घाटन समारोह में भी नहीं शामिल हुए थे।
बताया जाता है कि उनका हालिया बयान मौत की धमकियों के जवाब में दिया गया था, जिसमें उनकी कार में बम होने की चेतावनी दी गई थी। शिंदे ने खुद को निडर बताया और कहा कि उन्हें पहले भी धमकियां मिली थीं। लेकिन वे डरे नहीं हैं। लेकिन इनके इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
ध्यान देने योग्य यह है कि महाराष्ट्र में सरकार चला रही महायुति में बीजेपी, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं। इस गठबंधन ने 288 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनाव में 230 सीटों पर जीत दर्ज की थी। शिंदे ने 2022 में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना में बगावत कर बीजेपी से हाथ मिला लिया था। इससे शिवसेना दो हिस्सों में टूट गई थी। चुनाव आयोग और अदालत के फैसलों से शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को शिवसेना नाम और पार्टी का चुनाव चिन्ह मिल गया था। महायुति के चुनाव जीतने के बाद बनी सरकार में शिंदे को मुख्यमंत्री का पद नहीं मिला। इससे शिवसेना कैडर का असंतोष खुलकर सामने आ गया था। बाद में उन्हें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में समायोजित किया गया। महायुती में यह मतभेद उस समय और बढ़ गया जब कुछ विधायकों से ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा कम कर दी गई। शिवसेना में विभाजन के बाद एकनाथ शिंदे का समर्थन करने वाले विधायकों को प्रदान की गई Y+श्रेणी की सुरक्षा वापस लेने के गृह विभाग के फैसले ने सत्तारूढ़ महागठबंधन में गृह युद्ध पैदा कर दिया है। हालांकि यह निर्णय सही है, लेकिन यह उन लोगों के लिए मुश्किल होगा जो पुलिस काफिले के साथ गांव-गांव कार उड़ाने के आदी हैं और लोगों से ‘सुरक्षा क्या है’ सुनते हैं।ऐसा लगता है। हालांकि गृह विभाग ने खुलासा किया है कि न केवल शिवसेना, बल्कि भाजपा और एनसीपी के विधायक भी कम हो गए हैं, लेकिन इससे विधायकों की नाराजगी और बढ़ गई है, जो विभिन्न कारणों से रोने लगे हैं।
आश्चर्य होगा अगर इन विधायकों में यह भावना न हो कि उन्होंने सत्ता में आने तक इसे फूल की तरह रखा और अब चुनाव के बाद चट्टान की तरह दरकिनार कर दिया गया। जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना छोड़ी और सरकार में शामिल हुए, तो उनके समर्थक विधायकों को ‘वाई+’ सुरक्षा दी गई, जिसमें पुलिस की कारों और घरों के बाहर पुलिस सुरक्षा भी शामिल थी। अब घरों के बाहर आगे की कारों और पुलिस को कम किया जाएगा और प्रत्येक को एक ही गार्ड दिया जाएगा।
ज्ञात हो कि 1990 के दशक में, जब मुंबई में विधायकों और जन प्रतिनिधियों की हत्या और हमला किया गया था, तो सभी विधायकों को बंदूक चलाने वाले पुलिसकर्मियों की सुरक्षा प्रदान की गई थी। इस व्यापक निर्णय ने उन लोगों को भी सुरक्षा प्रदान की जिनके पास सुरक्षा के लिए कोई खतरा या खतरा नहीं था। इस व्यापक निर्णय के कारण कुछ लोगों ने उन अंगरक्षकों को खो दिया, जिनके साथ वे थे, जिनमें से कुछ में अंगरक्षकों के ड्राइविंग और विधायकों के अपनी बंदूकों के साथ पीछे बैठे मजाकिया दृश्य थे। आपको याद होगा। जब ये अनुभव अधर में थे तो सभी की कीमत पर पुलिस को शामिल करना अव्यावहारिक था। राज्य में अपराधों की संख्या बढ़ रही है, सामाजिक अशांति अक्सर भड़क रही है, पुलिस जांच और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपर्याप्त है। पुलिस बल मुख्य कार्य की उपेक्षा करके वीआईपी सुरक्षा में लगा हुआ है।
कुछ समय पहले पुणे में एक मंत्री के कहने पर 48 पुलिसकर्मियों का काफिला हुआ था, जिनमें से कुछ के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन जनप्रतिनिधियों के अलावा कई कार्यकर्ता और बड़े लोग भी ‘मुझे धमकी दी जा रही है’ की शिकायत कर पुलिस सुरक्षा लेते हैं। घटना भी ताजा है। इन सभी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है कि पुलिस जनप्रतिनिधियों का घर नहीं है, चाहे वह राजनीतिक हो या प्रशासनिक; अगर फडणवीस ने किसी वजह से यह कदम उठाया है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए था । अगर ये विधायक भी बिना नाराज हुए पुलिस की तह से बाहर निकलकर आम जनता से घुलमिल जाएं तो ये नागरिकों की सही भावनाओं को भी समझेंगे।
पिछले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विभिन्न विभागों पर कटाक्ष किया है और संदिग्ध और विवादास्पद फैसलों का मुद्दा उठाया है। दूसरी ओर, शिंदे ने मंत्रालय में ही एक समानांतर ‘वार रूम’ स्थापित किया; उन्होंने मुख्यमंत्री की कुछ बैठकों को छोड़कर यह भी दिखाने की कोशिश की कि वह ज्यादा पीछे नहीं हैं। फडणवीस ने यह दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा कि सरकार बनने के बाद उनका अपना फैसला अंतिम होगा। हालांकि शिंदे ने विधायकों की सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा करने का वादा किया था, लेकिन सरकार के सुर में फैसला बदलने की संभावना नहीं है।उधर, संकेत मिल रहे हैं कि विधायकों की नाराजगी का मुकाबला करने के लिए शिंदे को कड़ी मशक्कत करनी होगी।
हालांकि फडणवीस और शिंदे दोनों ने अपने बीच किसी भी तरह के मतभेद से इनकार किया है और सब कुछ ठीक है के संदेश के साथ एकता की तस्वीर पेश करने की कोशिश की है, लेकिन कई उदाहरण ऐसे हैं, जो अलग तस्वीर पेश करते हैं। रायगढ़ और नासिक जिलों के संरक्षक मंत्रियों की नियुक्ति में भी यह दरार बढ़ती देखी गई। राकांपा विधायक अदिति तटकरे और भाजपा नेता गिरीश महाजन की क्रमश: रायगढ़ और नासिक के संरक्षक मंत्री के रूप में नियुक्ति से शिवसेना नाराज थी। हालांकि, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन दोनों नियुक्तियों को रोक दिया और अब तक इन दोनों जिलों में संरक्षक मंत्री नहीं नियुक्ति हो सके हैं।अब देखने वाली बात यह होगी कि इशारों वाला उंट किस करवट बैठता है