“उर्दू और मौलवी: ज़ुबान के जादू और धार्मिक शब्दावली का अनोखा रिश्ता”

…क्यों मुझको बनाते हो तअस्सुब का निशाना मैंने तो कभी खुद को मुसलमां नहीं माना देखा था कभी मैंने भी ख़ुशियों का जमाना अपने ही वतन में हूं मगर आज अकेली उर्दू है मेरा नाम मैं ‘ख़ुसरो’ की पहेली

हमारे देश में ज़बान या भाषा पर सियासत हमेशा गर्म रहती है. यहां तक कि हिंदी को लेकर भी उत्तर और दक्षिण का विवाद रहता है. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उर्दू को इस्लाम धर्म के प्रोफेशन ‘मौलवी’ से जोड़ते हुए कुछ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जिस पर चर्चा सदन के बाहर तक होने लगी.

योगी आदित्यनाथ ने कहा, “समाजवादियों का चरित्र दोहरा हो चुका है, ये अपने बच्चों को पढ़ाएंगे इंग्लिश स्कूल में और दूसरों के बच्चों के लिए कहेंगे उर्दू पढ़ाओ… उसको मौलवी बनाना चाहते हैं, ‘कठमुल्लापन’ की ओर देश को ले जाना चाहते हैं.”

दरअसल, योगी सरकार ने सदन की कार्यवाही में कई रीजनल भाषाओं को शामिल किया है, लेकिन उर्दू को इसमें जगह नहीं दी गई है. जबकि उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषा है. पूरे भारत की बात करें, तो 2011 की जनगणना के मुताबिक 62,772,631 लोग उर्दू बोलते हैं और इसको यूपी के साथ-साथ तमिलनाडु, बिहार, दिल्ली और जम्मू कश्मीर में दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है.

राजनीतिक बयानबाजियों के बीच उर्दू को लेकर विवाद होते रहे हैं. किसी ब्रांड ने अपने एड में दिवाली को ‘जश्न-ए-चराग़ां’ कहा, तो उसका बॉयकॉट कर दो, किसी पैकेट की नस्तालीक़ (Calligraphy) में उर्दू में कुछ लिखा गया तो विवाद खड़ा करो, यहां तक कि कई जगहों के नाम सिर्फ इस वजह से बदले गए क्योंकि वे उर्दू से जुड़े हुए नाम थे.

क्या उर्दू इस्लाम और मुसलमानों की भाषा?
लफ्ज़-ए-उर्दू तुर्की भाषा के शब्द ‘ओर्दू’ से निकला है, जिसका मतलब होता है ‘आर्मी कैंप’. फारसी बोलने वाली फौज ने 12वीं शताब्दी में लाहौर पर जीत हासिल की और इसकी रसाई दिल्ली तक हुई. जब फारसी बोलने वाली फौज यहां की ब्रज भाषा बोलने वाली जनता से मिली, तो उर्दू वजूद में आई. उर्दू को उर्दू 1780 तक नहीं कहा गया, इससे पहले इस ज़बान को हिन्दवी, रेख़्ता, रेख़्ती, देहलवी या हिंदुस्तानी कहा जाता रहा.

बाद में इसको उर्दू का नाम दिया गया. उर्दू पढ़कर मुंशी प्रेमचंद जैसे महान कहानीकार बने. मौलवी बनने के लिए दरअसल उर्दू की नहीं, अरबी भाषा की जरूरत होती है. क्योंकि इस्लाम धर्म की सबसे बड़ी किताब कुरान अरबी भाषा में लिखी हुई है और इसकी पढ़ाई के बाद ही हाफिज, मौलवी या मुफ्ती जैसी इस्लामिक डिग्री मिलती है. हालांकि, ये बात जरूर है कि अरबी के साथ-साथ उर्दू भी कोर्स का हिस्सा होती है.

क्या कहते हैं जानकार?
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू स्कॉलर जामिल सर्वर कहते हैं, कोई भी जबान किसी धर्म की जबान नहीं होती. किसी जबान को पढ़ने या जानने से इंसान धार्मिक नहीं बनता. बल्कि धर्मों की किताबों को पढ़ने से इंसान मोलवी या पादरी, आचार्य बनता है, जो किसी भी भाषा में लिखी हो सकती हैं.

उर्दू पढ़ने से मौलवी बनने के सवाल के जवाब में इस्लाम के जानकार कहते हैं कि मौलवी प्रोफेशन इस्लाम धर्म की पढ़ाई से जुड़ा है. इस्लाम की किताबें चाहें वे कुरान हों या हदीसें सभी अरबी में लिखी गई हैं. मौलवी बनने के लिए आपको अरबी सीखनी पढ़ती है, इस्लाम का उदय अरब से हुआ है और वहां की भाषा अरबी है.

भारत में कुरान और अन्य धार्मिक किताबें अरबी में जरूर पढ़ी जाती हैं लेकिन यहां चलन उर्दू का है. फिर चाहे लिखने और पढ़ने की बात हो या बोलने की. मुस्लिम समुदाय के बीच भी बातचीत में हिंदी के साथ उर्दू का इस्तेमाल किया जाता है. जामिल सर्वर कहते हैं आजादी से पहले तक भारत में किसी और भाषा से ज्यादा उर्दू बोली जाती थी, भारत में आपको गीता, रामायण और बाइबल समेत किसी भी धर्म की किताब का उर्दू अनुवाद आसानी से मिल जाएगा.

जामिल कहते हैं पाकिस्तान के अलग होने के बाद उर्दू को पराया समझना शुरू हुआ, क्योंकि उन्होंने इसको राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दे दिया था. वरना इसका किसी धर्म, कौम से कोई नाता नहीं है.

सिर्फ मदरसों तक सीमित नहीं उर्दू
उर्दू सिर्फ मदरसों की पढ़ाई या मस्जिदों तक सीमित नहीं है. इसका इस्तेमाल और असर देशव्यापी, विश्वव्यापी है, जाति-मज़हब से परे है. जंग-ए-आजादी में इंकलाब जिंदाबाद जैसे नारे इसी उर्दू भाषा से निकले हैं. आजादी के बाद बॉलीवुड में लिखे गए मोहब्बत के गीत भी इसी ज़बान में लिखे गए. भारतीय कवि और लेखक गुलजार ने अपने एक गाने में उर्दू के लिए लिखा है-

वो यार है जो खुशबू की तरह जिसकी ज़ुबां उर्दू की तरह

उर्दू के एक और शायर अहमद वसी ने लिखा है-

वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुशबू आये, ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आये

भारत में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है क्योंकि भारत एक विविधतापूर्ण देश है. भारत में हर कुछ किलोमीटर बाद भाषा, रहन-सहन और पानी बदल जाता है. यहां कई भाषाएं बोली और लिखी जाती हैं. इसलिए सभी भाषाओं को एक जैसा सम्मान दिया जाता है और भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है. उर्दू एक भारतीय जबान है और भारत सरकार द्वारा 22 अधिकारिक भाषाओं की सूची में शामिल है.

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