भारत ने हाइड्रोजन ट्रेन चलाने के लिए तेजी से काम शुरू कर दिया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में कहा कि रेलवे ने पहली हाईड्रोजन ट्रेन को विकसित करने के लिए आधुनिक परियोजना शुरू कर दी है। भारत की हाइड्रोजन ट्रेन दुनिया की सबसे लंबी और मजबूत ट्रेनों में से एक होगी।
उन्होंने कहा कि रेलवे ने डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट रैक पर हाइड्रोजन ईंधन सेल के रेट्रोफिटमेंट से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पहली हाइड्रोजन ट्रेन के विकास का काम शुरू किया है। पूरी तरह से स्वदेशी रूप से विकसित हो रही यह ट्रेन अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) की निर्देशों पर आधारित है। यह वर्तमान में दुनिया की सबसे लंबी हाइड्रोजन ट्रेनों में से एक होगी। यह दुनिया की सबसे अधिक शक्ति वाली हाइड्रोजन ट्रेनों में से एक होगी।
सांसद अजीत कुमार भुइयां के प्रश्न के जवाब में रेल मंत्री वैष्णव ने सदन को बताया कि ट्रेन के साथ-साथ हाइड्रोजन को फिर से भरने के लिए एक एकीकृत हाइड्रोजन उत्पादन-भंडारण वितरण सुविधा के साथ जमीनी स्तर पर बुनियादी ढांचे को तैयार करने पर काम किया जाएगा। पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन से सुविधा लेआउट को लेकर आवश्यक सुरक्षा अनुमोदन मिल चुके हैं।
उन्होंने कहा कि यह परियोजना वैकल्पिक ऊर्जा से चलने वाली रेल यात्रा में प्रगति के प्रति भारतीय रेलवे की प्रतिबद्धता को पुख्ता करेगी। इससे देश के परिवहन क्षेत्र के स्वच्छ और हरित भविष्य तय होगा।
वाल्टेयर डिवीजन के एक हिस्से को कायम रखते हुए विशाखापत्तनम डिवीजन नाम देने को मंजूरी
केंद्रीय कैबिनेट ने दक्षिण रेलवे के वाल्टेयर डिवीजन को संक्षिप्त रूप में बनाए रखने और इसका नाम बदलकर विशाखापत्तनम डिवीजन करने को मंजूरी दे दी। वाल्टेयर नाम एक औपनिवेशिक विरासत है जिसे बदलने की जरूरत है। वाल्टेयर डिवीजन का एक हिस्सा (जिसमें पलासा-विशाखापत्तनम-दुव्वाडा, कुनेरू – विजयनगरम, नौपाड़ा जंक्शन – परलाखेमुंडी, बोब्बिली जंक्शन – सलूर, सिम्हाचलम उत्तर-दुव्वाडा बाईपास, वडालापुडी-दुव्वाडा और विशाखापत्तनम स्टील प्लांट-जग्गयापलेम (लगभग 410 किमी) स्टेशनों के बीच के सेक्शन शामिल हैं) को नए दक्षिण तटीय रेलवे के तहत वाल्टेयर डिवीजन के रूप में बनाए रखा जाएगा। इसका नाम बदलकर विशाखापत्तनम डिवीजन रखा जाएगा।