ला नीनों के बावजूद बढ़ा जनवरी महीने का तापमान?

जलवायु परिवर्तन की वजह से हर साल के मौसम में अलग-अलग तरह के बदलाव दिखाई दे रहे हैं, चाहे वो असमय बारिश का होना हो या फिर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी का. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन ने 2024 को अब तक का सबसे गर्म साल बताया था. लेकिन 2025 की जनवरी में ही गर्मी के एहसास का होना काफी परेशान करने वाला है. आमतौर पर जनवरी का महीना भीषण सर्दी का माना जाता है, लेकिन इस साल जनवरी के महीने में ही लोगों ने रिकॉर्ड तोड़ गर्मी का एहसास किया.

क्लाइमेट चेंज के मुताबिक, इस साल जनवरी के महीने में औसत तापमान 13.23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जिस वजह से सर्दी के महीने में भी लोगों को गर्मी का एहसास होने लगा. ज्यादातर लोगों ने अलाव और गर्म कपड़ों से दूरी बना ली. जनवरी के महीने में ही तेज और चिलचिलाती हुई धूप भी होने लगी. ऐसे में मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 का साल पिछले साल की तुलना में ज्यादा गर्म हो सकता है.

ला नीनों के बावजूद बढ़ा जनवरी महीने का तापमान?
यूरोपीय क्लाइमेट एजेंसी के मुताबिक, ला नीनो प्रभाव के बावजूद भी तापमान में बढ़त देखी गई. ला नीनो प्रशांत महासागर में घटित होने वाली ऐसी घटना है, जिसकी वजह से तापमान में कमी आती है क्योंकि प्रशांत महासागरीय जल का तापमान जरूरत से ज्यादा ठंडा हो जाता है. ये वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन का कारण बनता है.

मौसम विभाग के मुताबिक, फरवरी का महीना भी पहले की तुलना में ज्यादा गर्म रहने की उम्मीद है. इस साल की गर्मी की वजह से लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वहीं फरवरी के कुछ दिनों में बारिश की भी संभावना जताई गई है.

विश्व स्तर पर कहां रहा ज्यादा तापमान?
इस गर्मी का असर विश्व स्तर पर दिखाई दिया. अफ्रीका और अलास्का में तापमान में बढ़त दर्ज की गई. वहीं नॉर्थ ईस्ट और नॉर्थ वेस्ट कनाडा में भी सामान्य से भी ज्यादा तापमान दर्ज किया गया. अमेरिका में भी पिछले सालों की तुलना में ज्यादा गर्मी महससू की गई.

पेरिस समझौते में किस पर चर्चा?
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सरकारों से इस साल नए राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाएं पेश करने की बात कही है. उन्होंने कहा ताकि लंबे समय तक विश्व स्तर पर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोका जा सके.

गुटेरेस के मुताबिक, एक या एक से उससे ज्यादा सालों में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्याता तापमान बढ़ने से होने का मतलब यह नहीं है कि हम पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य को पाने में असफल रहे हैं. पेरिस समझौते में कहा गया है कि विश्व स्तर पर तापमान बढ़त को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और तापमान बढ़त को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों पर जोर देने को कहा.

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