दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार का आखिरी सप्ताह चल रहा है. सोमवार शाम दिल्ली चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा. सुप्रीम कोर्ट से कस्टडी पैरोल मिलने के बाद दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन बुधवार को सुबह 6 बजे जेल से बाहर आए हैं. ताहिर हुसैन मुस्तफाबाद विधानसभा सीट से AIMIM के उम्मीदवार हैं. वो तीन फरवरी तक हर रोज सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक अपने विधानसभा क्षेत्र मुस्तफाबाद में चुनाव प्रचार करेंगे.
कस्टडी पैरोल के तहत ताहिर हुसैन हर रोज जेल से बाहर आएंगे और 12 घंटे तक चुनाव प्रचार करेंगे. ताहिर हुसैन को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक हर रोज प्रचार करने की इजाजत मिली है. ये सिलसिला छह दिनों तक चलेगा. इस दौरान उन्हें हर रात जेल लौटना होगा और वो अपने घर नहीं जा सकेंगे. उन्हें अगर दिन में आराम करना है तो उनके वकील द्वारा अदालत को दिए गए पते पर या फिर क्राउन प्लाजा गेस्ट हाउस में ही ठहरना होगा.
ताहिर हुसैन को अपनी सुरक्षा के साथ जेल वैन का खर्च भी उठाना होगा. कोई भी सार्वजनिक बयान नहीं दे सकते. उन्हें अदालत में लंबित मामलों पर किसी तरह की कोई टिप्पणी करने की इजाजत नहीं है. ताहिर हुसैन अपनी पार्टी कार्यालय और पब्लिक मीटिंग्स में शामिल हो सकते हैं. इस दौरान उन्हें केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र मुस्तफाबाद में ही प्रचार करने की इजाजत मिली है. ऐसे में साफ है कि ताहिर हुसैन छह दिन मुस्तफाबाद क्षेत्र की गलियों, मुहल्लों और मार्केट में प्रचार करते नजर आएंगे, लेकिन सवाल ये है इसका सियासी प्रभाव क्या पड़ेगा.
चुनाव प्रचार में उतरे ताहिर हुसैन
मुस्तफाबाद विधानसभा वही सीट है, जहां के कुछ वीडियो ने दिल्ली दंगों के दौरान मचे कोहराम की तस्वीर पेश कर दी थी. यहीं से ताहिर हुसैन पार्षद थे और उनके घर की छत से पथराव करते दंगाइयों के वीडियो सामने आए थे. ताहिर हुसैन दिल्ली दंगों के आरोपी हैं. दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे. ताहिर पांच साल से जेल में बंद हैं और ओवैसी की पार्टी से चुनावी किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट से उन्हें प्रचार के लिए कस्टडी पैरोल मिली है.
तिहाड़ जेल से बुधवार को ताहिर हुसैन सुबह छह बजे दिल्ली पुलिस की घेराबंदी में बाहर निकले और सीधे मुस्तफाबाद इलाके में पहुंचे. ताहिर हुसैन अपने मुख्य चुनावी कार्यालय में पहुंचे, जहां पर अपने समर्थकों के साथ पहले मुलाकात की और फिर चुनावी रणनीति पर मंथन किया. वो अगले छह दिनों तक मुस्तफाबाद के किस-किस क्षेत्र में रैलियां करनी है और बैठकें करनी है, उसकी रूपरेखा बनाई गई है. ताहिर हुसैन की ज्यादातर रैलियां मुस्लिम बहुल इलाके में फिलहाल रखी गई है. ओवैसी के साथ उनके रोड-शो के प्लान बनाए जा रहे हैं.
कितनी सीटों पर पड़ेगा सियासी असर
ताहिर हुसैन भले ही मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र तक प्रचार के लिए सीमित रहे, लेकिन सियासी प्रभाव उससे कई ज्यादा सीटों पर पड़ेगा. ताहिर हुसैन को प्रचार के लिए मिली कस्टडी पैरोल के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि ताहिर भले ही मुस्तफाबाद सीट तक ही क्यों न प्रचार करें, लेकिन उसका असर नॉर्थ ईस्ट दिल्ली इलाके की सभी सीटों पर पड़ने की संभावना है. खासकर दिल्ली दंगे प्रभावित वाले क्षेत्र में धार्मिक धुर्वीकरण की सियासी बिसात बिछेगी.
साल 2020 में मौजपुर से ही दंगे की शुरुआत हुई थी और स्थिति इतनी ज्यादा बिगड़ गई थी कि बात पथराव से आगजनी और गोलीबारी तक पहुंच गई थी. दंगे की चपेट में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के 7 विधानसभा क्षेत्र आ गए थे. इन विधानसभा क्षेत्रों के इलाकों में लोगों को जान-माल का काफी नुकसान उठाना पड़ा था. सीलमपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुरी, घोंडा, बाबरपुर और करावल नगर सीट सीधे तौर पर दंगे की चपेट में आईं थी. ऐसे में ताहिर हुसैन के जेल से बाहर आने का सियासी प्रभाव कम से कम दंगे प्रभावित वाली सीटों पर पड़ना लाजमी है.
दिल्ली दंगे के बहाने सियासत तेज
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM इस बार की दो विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. औवैसी ने दंगा प्रभावित मुस्तफाबाद से दिल्ली दंगों में अभियुक्त ताहिर हुसैन को टिकट दिया है. ताहिर हुसैन के खिलाफ हत्या और यूएपीए जैसे गंभीर मामले चल रहे हैं. ओवैसी ने ताहिर हुसैन के अलावा ओखला सीट से शिफाउर रहमान को टिकट दिया है. शिफा पर भी दिल्ली दंगे के आरोप हैं और पांच साल से जेल में बंद हैं.
ओवैसी ने दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन और शिफाउर रहमान को प्रत्याशी बना रखा है तो बीजेपी ने भी कपिल मिश्रा को करावल नगर विधानसभा सीट से टिकट दे रखा है. इस तरह दिल्ली के चुनावी मैदान में इस बार धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण की नई परिभाषा लिखी जा रही हैं. ताहिर हुसैन के उतरने से दिल्ली दंगे के जख्मों को कुरेद कर फिर से हरा कर दिया गया है. ताहिर हुसैन जैसे-जैसे प्रचार करते नजर आएंगे, उसका असर दिल्ली की दूसरी सीटों पर भी पड़ने की संभावना है.
धार्मिक ध्रुवीकरण की बिछेगी बिसात
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी खुलकर हिंदुत्व का एंजेडा सेट कर रही है तो ओवैसी ने मुस्लिम वोटों पर ही फोकस कर रखा है. सीएम योगी ने दिल्ली में अपने प्रचार को धर्मयुद्ध का नाम दिया तो ओवैसी दंगे के जख्मों को कुरेद रहे हैं. ओवैसी अपनी हर रैली में बीजेपी के साथ-साथ केजरीवाल को निशाने पर ले रहे हैं. ताहिर हुसैन और शिफाउर रहमान को निर्दोष बता रहे हैं तो बीजेपी उन्हें दंगे का मुलजिम बता रही है.
ओवैसी ने अपने भाषण में कहा कि दिल्ली के मुसलमानों को उनके अधिकार दिलाने के लिए हमारी पार्टी मैदान में है. हमें धर्म के आधार पर बांटने की साजिशों को नाकाम करना होगा. ताहिर हुसैन ने चुनाव प्रचार में उतरते ही अपने सियासी तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं. वो साफ-साफ शब्दों में ओवैसी को मुस्लिमों का हमदर्द बता रहे हैं तो कांग्रेस और AAP को मुस्लिम विरोधी कठघरे में खड़े करने में जुटे हैं.
दिल्ली चुनाव का क्या बदल जाएगा सीन
दिल्ली के चुनावी समीकरण में मुस्लिम वोटबैंक अहम भूमिका निभाता है. दिल्ली की करीब 13 फीसदी आबादी मुस्लिम वोटों की है, जो 9 विधानसभा सीटों पर निर्णायक मानी जाती है. 2020 में आम आदमी पार्टी की तरफ से मुस्लिमों का झुकाव रहा पर इस बार कांग्रेस और AIMIM भी इसे अपने पक्ष में करने की कोशिश में हैं. ओवैसी ने पहले ही मुस्लिम सेंटिमेंट्स को भुनाने के लिए दंगों के आरोपियों को टिकट दिया और अब उनके लिए वोट मांग रहे हैं तो ताहिर के उतरने से दिल्ली के चुनाव का सीन बदल सकता है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव की लड़ाई बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच दिख रही है, लेकिन कांग्रेस उसे त्रिकोणीय बनाने में जुटी है. ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली के मुस्लिम इलाके की दो सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारकर मुस्लिमों के विश्वास को हासिल करने का दांव चला है. ताहिर हुसैन को पहले टिकट देने और अब चुनाव प्रचार में उतराने से धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ गई है. बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता ताहिर हुसैन के मामले को सियासी तूल दे सकते हैं, जिसके चलते दिल्ली में हिंदू और मुस्लिम वोटों के बीच बंटवारा हो सकता है. इसके चलते दिल्ली चुनाव का सीन बदल सकता है.