देश में छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव और चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने एक डेटा जारी किया है. चुनाव आयोग के इस डेटासेट में लोकसभा और विधानसभा के क्षेत्रवार मतदाताओं, मतदान केंद्रों की संख्या, पार्टी वाइज वोट शेयर, पुरुष और महिलाओं के वोटिंग पैटर्न और महिलाओं की भागीदारी जैसे आंकड़े दिए गए हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि महिलाएं अब सिर्फ पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर ही नहीं चल रही है बल्कि वोटिंग में भी आगे हैं. महिलाओं की भागेदारी बढ़ी है. इस तरह महिलाएं सत्ता की धुरी बन रही है, जिन्हें साधने के लिए हर कोई सियासी दांव चल रहा है.
2024 के लोकसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या 97.97 करोड़ थी, जिसमें 47.63 करोड़ महिला मतदाता थी जबकि 2019 में यह संख्या 43.85 करोड़ थी. चुनाव आयोग के लिहाज से देखें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पुडुचेरी में सबसे ज्यादा 53.03 फीसदी महिला मतदाता थीं. केरल 51.56 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर रही. देश में एक हजार पुरुषों पर महिला मतदाताओं का अनुपात 946 हो गया, जो 2019 में 926 था. यह एक नया रिकॉर्ड है. महिला मतदाताओं की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी देखी गई. पुडुचेरी और केरल में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक रही, जो यह दर्शाता है कि इन राज्यों में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है.
वोटिंग पैटर्न में आया बड़ा बदलाव
चुनाव आयोग द्वारा जारी डेटासेट से साफ है कि महिला मतदाताओं की संख्या में इजाफा ही नहीं हुआ बल्कि वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है और महिलाएं अब सत्ता बनाने -बिगाड़ने की ताकत रखती हैं. पिछले दो लोकसभा चुनाव से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है. भारतीय लोकतंत्र के लिए ये शुभ कदम माना जा रहा है.
चुनाव आयोग के डेटासेट के मुताबिक कुल मतदाताओं में महिलाओं का प्रतिशत 2019 के 48.09 फीसदी से बढ़कर 2024 में 48.62 फीसदी हो गया. 2019 के चुनाव में हुई वोटिंग के पैटर्न को देखें तो 67.18 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था जबकि पुरुषों ने 67.01 फीसदी वोटिंग की थी. इस तरह महिलाओं ने पुरुषों से एक फीसदी ज्यादा वोटिंग की थी.
महिला वोटर्स ने पुरुषों को पीछे छोड़ा
साल 2024 के चुनाव का वोटिंग पैटर्न देखें तो महिला मतदाताओं का प्रतिशत 65.78 प्रतिशत रहा जबकि पुरुष मतदाताओं ने 65.55 फीसदी मतदान किया है. राज्य स्तर पर महिलाओं के वोटिंग पैटर्न को देखें तो असम के धुबरी में सबसे ज्यादा 92.17 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले थे. पश्चिम बंगाल के तामलुक में 87.57 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था.
आजादी के बाद यह दूसरा मौका रहा जब महिला मतदाताओं ने वोटिंग में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया. पहली बार महिला मतदाताओं ने 2019 में पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की थी और उसके बाद 2024 का चुनाव दूसरा मौका बना. ऐसे में साफ है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा वोटिंग ही नहीं कर रही हैं बल्कि अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट कर रही हैं. यही वजह है कि साइलेंट माने जाने वाली महिलाएं सत्ता डिसाइंडिग वोटर बन चुकी हैं.
दरअसल, सियासत में जाति, धर्म, उम्र और पेशे के आधार पर मतदाता कई तरह के वोटबैंक में बंटे हुए हैं. सियासी दल महिलाओं को भी ऐसे ही वोट बैंक के तौर पर देखते हैं, क्योंकि उनके वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है. महिलाएं अब पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा वोटिंग ही नहीं कर रही है बल्कि अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट कर रही है.
चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी
लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या देखें, तो 1957 के आम चुनावों से लेकर 2024 के चुनावों तक महिला उम्मीदवारों का आंकड़ा एक हजार के पार नहीं जा पाया है. 2024 के लोकसभा चुनावों में कुल 8,360 उम्मीदवार मैदान में थे, जिसमें 800 महिला प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में महिला प्रत्याशी 726 थीं. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 111 महिला उम्मीदवार थीं. उसके बाद उत्तर प्रदेश में 80 और तमिलनाडु में 77 महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ीं. हालांकि, 152 सीटों पर एक भी महिला उम्मीदवार नहीं थी.
2024 के लोकसभा चुनाव में 800 महिला उम्मीदवारों में 75 महिलाएं सांसद चुनी गई हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में 78 महिलाएं ही जीतकर संसद पहुंची थीं. 2014 में 640 महिला उम्मीदवार थीं और इनमें से 62 महिलाएं सांसद बनीं. ऐसे ही 2009 के चुनावों में 556 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 58 महिला सांसद लोकसभा पहुंचीं थी. इस तरह हर लोकसभा चुनाव के साथ महिला उम्मीदवारों की संख्या तो जरूर बढ़ी है, लेकिन इनमें से चुनकर संसद तक पहुंचने का सफर बेहद कम महिलाएं ही तय कर पाती हैं.
राजनीतिक पार्टियां उन महिलाओं को ही टिकट देने में प्राथमिकता देती हैं, जो मजबूत राजनीतिक परिवारों से आती हैं ताकि उनके जीतने की संभावना अधिक हो. भारतीय राजनीति के संदर्भ में यह एक बड़ा तथ्य है कि सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों को चाहे वो महिलाएं हो या दूसरी वंचित पहचान वाले हो उनको टिकट मिलना मुश्किल है.हालांकि, लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का बिल पास हो गया है, जो 2029 के चुनाव में लागू होगा. इसके बाद महिलाओं का प्रतिनिधित्व संसद और विधानसभा में बढ़ जाएगा.