उर्दू अदब के लिए मोहब्बत रखने वाले लोग आज मशहूर शायर जौन एलिया को याद कर रहे हैं 14 दिसंबर यानी आज के दिन मशहूर शायर जौन एलिया का जन्मदिन है भले ही जौन एलिया अब इस सरजमी पर न हों लेकिन उनकी रुमानी ओर इश्किया शायरी लोगों के दिल ओ दिमाग में जौन को आज भी जिंदा रखे हुए है
जौन एलिया की मौत पाकिस्तान में हुई लेकिन उनका जन्म हिंदुस्तान की सरजमीं पर हुआ था. दोनों देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया में रहने वाले उर्दू जुबान के प्रेमी जौन एलिया से मोहब्बत करते हैं
अमरोहा से था अलग लगाव
जौन एलिया एक मशहूर शायर थे जिनका जन्म 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ था, लेकिन देश के हालात बदलने के दौरान उन्हें बटवारे के समय पाकिस्तान जाना पड़ा. जहां रहते हुए उन्होंने रूमानी ओर इश्किया शायरी लिखी. अमरोहा से उनका इतना प्यार था कि एक मुशायरा चल रहा था और जॉन ने मंच पर बैठे दूसरे शायर से गौर देने को कहा और बोले, “अरे मैं, अमरोहा से आया हुआ हूं, जरा ध्यान से सुनना, वहां होता तो शेख होता.”
जौन की शायरी को जिसने भी सुना वो उनकी शायरी का कायल हो गया, फिलहाल जौन एलिया इस दुनिया में नहीं है उनका निधन 9 नवंबर 2002 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था
जौन की देन है अमरोहा का अदब
अमरोहा के रहने वाले प्रोफेसर नासिर नक्वी जौन एलिया के परिवारिक भतीजे लगते है, नासिर नक्वी ने बातचीत में बताया कि वैसे तो जौन एलिया उनके चाचा हैं, लेकिन शायरी के ऐतबार से देखें तो वो उनके बाप थे
नासिर नक्वी कहते हैं कि नसल ने ही जौन एलिया से बहुत कुछ सिखा, जुबान भी उनसे सीखी अदब भी, तहजीब भी उनसे सीखी और आज हम लोग जो भी है खासतौर से अमरोहा का जो अदब है वो जौन एलिया साहब के सरपरस्ती में ही परवान चढ़ा है