सुप्रीम कोर्ट 12 दिसबंर को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की स्पेशल बेंच दोपहर 3.30 बजे इस मामले पर सुनवाई करेगी केंद्र सरकार ने नोटिस के तीन साल और 8 महीने बाद भी अब तक इस पर जवाब दाखिल नहीं किया है हिंदू पक्ष ने 1991 में बने इस कानून को चुनौती दी है
कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. जमीयत उलमा ए हिंद ने कानून के समर्थन में याचिका लगाई है सुप्रीम कोर्ट में कुल 6 याचिकाएं दाखिल हुई है हिंदू पक्ष कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं मुस्लिम पक्ष की दलील है कि इस कानून को रद्द ना किया जाए कानून रद्द करने की मांग करने वाले हिंदू याचिकाकर्ताओं में विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रह्मण्यन स्वामी, अश्विनी उपाध्याय, करुणेश कुमार शुक्ला और अनिल कुमार त्रिपाठी शामिल हैं
2020 में हिंदू पक्ष ने इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ नागरिकों के अदालत जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है यह अधिनियम उनके धार्मिक अधिकारों का हनन करता है हिन्दू पक्ष कि मांग है कि कानून को असंवैधानिक करार दें 2022 में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इसके समर्थन में याचिका दाखिल की और इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण बताया
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 क्या है?
साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाय ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था