सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंंटन नरीमन की ओर से कही गई कुछ बातों के बाद प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर नए सिरे से बातचीत शुरू हो गई है. गुरूवार को नरीमन ने कहा था कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 5 पन्ने उम्मीद जगाने वाले थे
रोहिंटन के मुताबिक, उन पांच पन्नों में 1991 के पूजा स्थल अधिनियम यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर जोर दिया गया था जस्टिस नरीमन ने उन 5 पन्नों को देश भर में चल रहे उन मुकदमों का जवाब कहा था जिनमें मस्जिदों के नीचे मंदिर खोजने की याचिकाएं दायर हो रही हैं
आइये जानें सुप्रीम कोर्ट के 2019 के अयोध्या वाले फैसले में उन 5 पन्नों में क्या था, जिसकी बात चारो तरफ हो रही है
अयोध्या फैसले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में अपने फैसले में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 के महत्व पर जोर दिया दिया था अदालत ने माना था कि सरकार ने कानून के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म-समभाव को बनाए रखने के लिए अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा किया है
फैसले में इस बात पर जोर दिया गया था कि अयोध्या इस कानून का एकमात्र अपवाद है जिसे 15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को संरक्षित करने के मकसद से लागू किया गया था
हालांकि यह भी साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने ही इस मामले पर दायर याचिकाओं पर 2020 में नोटिस जारी किया था इसके बाद दूसरे पूजा स्थलों और स्मारकों पर याचिका दायर करने की बाढ़ आ गई, जिसमें दावा किया जाने लगा कि उन स्थलों पर मूल रूप से मंदिर मौजूद थे
SC ने हाईकोर्ट की किस बात को नकार दिया था?
एक और अहम बात ये है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस डीवी शर्मा ने इस विवाद से संबंधित अपने फैसले में राय दी थी कि एक्ट के जरिए पूजा स्थल मामलों को कोर्ट जाने से नहीं रोका जा सकता इस राय को सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में नकार दिया था
जस्टिस नरीमन ने उन्हीं पांच पन्नों का जिक्र किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की राय को गलत ठहराया गया था.लेकिन तब का मामला पूजा स्थल अधिनियम की वैधता से संबंधित नहीं था सर्वोच्च अदालत ने सरकार के कानून को सही ठहराया था
प्लेसेज ऑफ वर्शिप को असंवैधानिक माना गया था?
हालांकि, तब पूजा स्थल अधिनियम 1991 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी गई थी और यह सब कुछ अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान इस कानून के मसले पर हुई बहस और चर्चा के मद्देनजर हुआ था
ऐसे में, यह नहीं कहा जा सकता की सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम को संवैधानिक वैधता को हरी झंडी दे दी थी अयोध्या फैसले के बाद ही पूजा स्थल अधिनियम 1991 को 2020 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और इसके बाद कई याचिकाएं फाइल हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है