राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को बंगाल की सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए

भारत पूरी दुनिया में एक लीडर के रूप में उभरता हुआ देश बन रहा है। आज दुनिया में कहीं भी संकट आए भारत फर्स्ट रेस्पोंडर के रूप में सामने  आता है। कोरोना के समय में भारत ने 150 से ज्यादा देशों को दवाइयां भेजीं, कहीं भूकंप आए कहीं साइक्लोन आए या गृह युद्ध हो, भारत मदद के लिए सबसे पहले पहुंचता  हैं। आज का भारत दुनिया में एक नए कैटेनिक एजेंट के रूप में उभर रहा है। इसका प्रभाव हर सेक्टर में दिख रहा है । ग्लोबल ग्रोथ, ग्लोबल पीस, ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन को स्पीडअप करने में भारत का रोल अहम होगा। ग्लोबल इनोवेशन हो या ग्लोबल सप्लाई चेन में स्टैबिलिटी लाना हो, सभी में भारत का रोल अहम होगा।भारत के लिए शक्ति और सामर्थ्य का अर्थ है ज्ञानाय:, दानाय: च रक्षणाय:… यानी नॉलेज इज फॉर शेयरिंग, वेल्थ इज फॉर केयरिंग, पावर इज फॉर प्रोटेक्टिंग। इसलिए भारत की प्राथमिकता दुनिया अपना दवाब बढ़ाने की नहीं, बल्कि अपना प्रभाव बढ़ाने की रही  है। यह प्रधानमंत्री मोदी का ही समर्थ था कि क़तर में भारत को कूटनीतिक जीत मिली और 8 भारतीय कतर की जेल से बाहर आ गए। सभी इस राहत का श्रेय भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते  रहे हैं। जब भारत इतना समर्थवान है तो यह प्रश्न उठना लाजमी है कि बंगाल की सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यकों  के साथ अन्याय हो रहा है उसे बचाने में मोदी सरकार   समर्थ क्यों नहीं है ।

आज देश का बच्चा बच्चा बोल रहा है कि पाकिस्तान की राह पर चले बांग्लादेश को सबक सिखाना निहायत जरूरी हो गया है क्योकि  बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब तो वहां ‘सर तन से जुदा ‘के नारे भी खुलेआम लगाये जा रहे है। वहां के हिन्दुओं के सामने जीवन मरण का प्रश्न उठ गया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार स्थिति को सुधारने में कोई पहल नहीं कर रही है। उल्टे बांग्लादेश की पुलिस और सेना भी कट्टरपंथी ताकतों की मदद कर रही है।

बांग्लादेश के हिन्दु अपनी रक्षा की गुहार लगा रहे है लेकिन भारत सरकार भी उनकी आवाज नहीं सुन रही है। भारत अभी भी सदाशयता का परिचय दे रहा है। और बांग्लादेश सरकार से हिन्दुओं की रक्षा के लिए कदम उठाने की मांग कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहा है। जबकि बांग्लादेश के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने में उसे नहीं हिचकना चाहिए। संसद में भी अन्य तमाम मुद्दो की चर्चा हो रही है। लेकिन बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हो रही हिंसा के मामले में हमारे माननीय मौन धारण किये हुए है।

सभी विपक्षी पार्टियां इस मामले में चुप्पी साधी हुई है जो हैरत की बात है। अलबत्ता बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने जरूर इस मामले को लेकर तिखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की है कि वह बांग्लादेश के खिलाफ तत्काल कड़े कदम उठाये। बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार का मामला संयुक्त राष्ट्र में उठाये और वहां शांति सेना भेजने की मांग करें। ममता बनर्जी ने कहा है कि यह दो देशो के बीच का मामला है इसलिए वे बंगाल की मुख्यमंत्री होने के नाते कुछ नहीं कर सकती। लेकिन  केन्द्र सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए। और बांग्लादेश में रहने वाले लगभग डेढ़ करोड़ हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहिए।

ममता बनर्जी की यह मांग वाजिब है और इससे प्रेरणा लेकर सभी विपक्षी पार्टियों को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि वह बांग्लादेश के मामले में धूलमूल रवैया छोड़े और कारगर कदम उठाये। सोशल मीडिया पर भी लोगों का ओक्रोश अब फूटने लगा है। साधु संतो ने भी इस पर गंभीर चिन्ता जताते हुए भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा के लिए यथासिद्ध प्रभावी पहल करे। किन्तु अभी तक भारत सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

लोग समझ नहीं पा रहे है कि बांग्लादेश जैसा एक छुटभैया देश वहां रह रहे हिन्दुओं पर अत्याचार करने का दुहसाहस दिखा रहा है और भारत जैसा शक्तिशाली देश उसके खिलाफ क्यों कोई कड़े कदम नहीं उठा पा रहा है। भारत को इजरायल से सबक सिखना चाहिए जो अपने नागरिकों की रक्षा के लिए लगातार जंग लड़ रहा है। यह ठीक है कि भारत बांग्लादेश के खिलाफ सैन्य कार्यवाही करने से पहले कई बार सोचने पर बाध्य होगा लेकिन भारत सरकार बांग्लादेश को सब सिखाने के लिए उसके साथ अपने व्यापारिक और राजनयिक संबंध को तोड़़ ही सकती है।

भारत अभी भी तो इतना ही कर ले तो भी बांग्लादेश घुटनों पर आ जायेगा। बांग्लादेश के सामने भी पाकिस्तिान का उदाहरण है कि जिसके साथ भारत ने अपने व्यवसायिक संबंध तोड़ लिये तो वहां की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई और महंगाई में लोगों का जीना मुहाल कर दिया। पाकिस्तान को तो खैर चीन का सहयोग भी मिल रहा है। जिसकी वजह से वहां भूखमरी के हालात पैदा नहीं हुए है। लेकिन बांग्लादेश तो भूखो मरने पर बाध्य हो जायेगा। बहरहाल बांग्लादेश में हिंसा का तांडव बहुत हुआ।

अब वहां हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा रूकनी ही चाहिए और इसके लिए भारत को कड़े से कड़े कदम जल्द से जल्द उठाने चाहिए। ममता बनर्जी की मांग के अनुसार भारत को यह मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहिए और बांग्लादेश मे संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना भेजने की मांग पूरजोर ढंग से उठानी चाहिए तभी बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हो रही हिंसा बंद होगी।

ममता द्वारा उठाई गई आवाज़ के बादबांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों ने पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक अधिकारों, सांप्रदायिक सद्भाव और CAA पर बहस को भी फिर से हवा दे दी है। इस नए सियासी माहौल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी दल बीजेपी दोनों ही अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के मुद्दे का इस्तेमाल कर रहे हैं। बीजेपी ने TMC पर पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के हितों की रक्षा करने में नाकाम रहने और बांग्लादेश में उनकी दुर्दशा पर आंखें मूंद लेने का आरोप लगाया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ बांग्लादेश का मुद्दा नहीं है। यह एक मानवीय संकट है जो सीधे बंगाल को प्रभावित करता है। तृणमूल कांग्रेस की चुप्पी और तुष्टीकरण की सियासत हिंदू समुदाय के साथ विश्वासघात है।’ BJP ने बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत सरकार से और अधिक मजबूत प्रतिक्रिया की मांग करते हुए पूरे पश्चिम बंगाल में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं।

BJP ने इस मुद्दे को CAA को लागू करने के अपने लंबे समय से चले आ रहे वादे से जोड़ने की भी कोशिश की है, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता प्रदान करता है। मजूमदार ने कहा, ‘बांग्लादेश की हिंसा से बचकर आ रहे हिंदुओं को भारत में उनके अधिकारों और सम्मान का आश्वासन दिया जाना चाहिए।’ विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी कुछ ऐसी ही बात की और कहा कि बांग्लादेश में अशांति का पश्चिम बंगाल पर ‘जरूर असर’ पड़ेगा। अधिकारी ने कहा, ‘जहां भी हिंदुओं पर हमला होगा, हम न्याय के लिए लड़ेंगे। CAA के प्रति तृणमूल कांग्रेस का विरोध उनके तुष्टीकरण के एजेंडे को दर्शाता है।’

अधिकारी ने सीमा पार सताए गए हिंदुओं के जीवन और रोजगार की रक्षा करने की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की इच्छाशक्ति पर सवाल उठाया। अधिकारी ने कहा, ‘उनके सांसदों को इस मामले को संसद में उठाना चाहिए, जो उनकी सही राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतिबिंब है। यह कोई सियासी मुद्दा नहीं है, बल्कि बांग्ला भाषी हिंदुओं के अस्तित्व का संकट है। सीएम को राजनीति से ऊपर उठकर उनके साथ खड़ा होना चाहिए।’ बीजेपी ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के खिलाफ पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं और विश्व हिंदू परिषद ने भी अपने आंदोलन को तेज कर दिया है।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के मुद्दे को लेकर अन्य विपक्षी दल भी सक्रिय हो गए हैं। वाम मोर्चा और कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘यह एक मानवीय मुद्दा है, कोई राजनीतिक फुटबॉल नहीं। आरोप-प्रत्यारोप के बजाय, राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।’

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