अशोक भाटिया
सोमवार को संसद की कार्यवाही शुरू होने से पहले इंडिया गठबंधन के नेताओं की एक बैठक राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कमरे में हुई, जिसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी पहुंचे। हालांकि उस बैठक में तृणमूल कांग्रेस के सांसद नदारद रहे। इसकी आशंका पिछले शुक्रवार को ही हो गयी थी, जब चार दिन तक अडानी प्रकरण को लेकर संसद संसद का कामकाज बाधित रहा। टीएमसी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को पहले ही पार्टी ने अपने रुख से अवगत करा दिया था।
इस प्रकरण से कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने के इरादे से बनाए गए इंडिया गठबंधन में बिखराव देखने मिल रहा है। संसद के शीतकालीन सत्र के लिए कई मुद्दों को लेकर विपक्षी गठबंधन में आपसी सहमति नहीं बन पा रही है। एक तरफ जहां कांग्रेस चाहती है कि गौतम अडानी और ईवीएम के मुद्दे को सदन में उठाया जाए तो वहीं कई दल चाहते हैं कि ऐसे मुद्दों को सदन में उछाला जाए, जिसका जनता से सीधा सरोकार हो।
सूत्रों ने कहा कि जब केवल कॉरपोरेट को लाभ होता है और चुनावी प्रक्रिया में खामियां हैं और विकल्पों को नकार दिया जाता है, तो यह लोगों का मुद्दा कैसे नहीं हो सकता है। इस बैठक में इंडिया ब्लॉक के संस्थापक सदस्य तृणमूल कांग्रेस ने हिस्सा न लेना ही एक बड़ा मुद्दा बन गया है । तीसरी बार बैठक में भाग न लेने वाली पार्टी का कहना है कि यह स्पष्ट हैं कि हम लोगों के मुद्दों पर मोदी सरकार से भिड़ना चाहते हैं।टीएमसी के मुताबिक, क्रोनी कैपिटलिज्म और ईवीएम जैसे मुद्दे लोगों को पसंद नहीं आते। पार्टी ने सवाल करते हुए कहा, “उन इलाकों को देखिए जहां राहुल गांधी ने प्रचार किया है। अगर उन्होंने जो कहा वह लोगों के लिए मायने रखता तो कांग्रेस क्यों हारी?”
वहीं, टीएमसी, समाजवादी पार्टी (एसपी) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे सहयोगी दल कांग्रेस के ईवीएम और क्रोनी कैपिटलिज्म के प्रति “जुनून” को लेकर उत्साहित नहीं हैं। जबकि कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो’ की तर्ज पर ‘ईवीएम जगाओ यात्रा’ की योजना बनाई है और इंडिया ब्लॉक पार्टियों को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है, उनमें से अधिकांश ने बहुत कम रुचि दिखाई है। कुछ लोगों ने यह भी पूछा कि क्या यह यात्रा उन राज्यों से होकर गुजरेगी जहां कांग्रेस ने चुनाव जीता है। बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने बड़ा ऐलान किया है। अरविंद केजरीवाल ने बीते रविवार को राष्ट्रीय राजधानी में 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ किसी भी गठबंधन से इनकार किया है।
टीएमसी का साफ कहना है कि उनकी पार्टी के सांसद जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर मोदी सरकार से भिड़ना चाहते हैं जिनमें- महंगाई, बेरोजगारी, किसान, उर्वरक और मणिपुर हिंसा जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके साथ ही सपा चाहती है कि इन मुद्दों के साथ-साथ संभल हिंसा को भी जोड़ दिया जाए। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा भी कि हमारे लिए अडानी से बड़ा मुद्दा किसान हैं और संभल हिंसा है।
इंडिया गठबंधन ब्लॉक में विभाजन के पीछे असली राजनीति भी छिपी है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में यह स्पष्ट है कि आप और कांग्रेस सहयोगी नहीं होंगे। बंगाल में टीएमसी और कांग्रेस कभी एक दूसरे से सहमत नहीं हो सकते। यूपी में अखिलेश यादव ने कहा है कि कांग्रेस खत्म हो चुकी है। दरअसल गठबंधन में शामिल दलों के अपने अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन कांग्रेस सिर्फ अडानी प्रकरण पर प्रधानमंत्री को घेरने की कोशिश में लगी है। अन्य दलों को अब लग रहा है कि वे अपने मुद्दे को कांग्रेस के कारण सदन में नहीं उठा रहे हैं। सपा अपना फोकस यूपी पर करना चाहती है, लेकिन सदन नहीं चलने के कारण संभल सहित प्रश्न पत्र लीक प्रकरण को वह अब तक नहीं उठा पायी है। राजद भी बिहार से संबंधित कई मुद्दों को संसद में उठाना चाह रहा है। यही हाल डीएमके का भी बताया जा रहा है। सबसे ज्यादा समस्या उन सांसदों के सामने है, जो अब तक अपना मेडन स्पीच भी संसद में नहीं दे पाये है। पहली बार चुनकर आये कई सांसदों ने अपने-अपने दल के नेताओं से अपनी पीड़ा व्यक्त की है।
कांग्रेस के कई सांसद भी यह मानने लगे हैं कि संसद न चलने का ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है। सरकार को कटघरे में खड़ा करने का समय उनके हाथ से निकल रहा है।क्योंकि सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा जा रहा है और सरकार आंकड़ों में हेर-फेर कर सदन के बाहर देश को गुमराह कर रही है। जबकि संसद में सरकार की ओर से कोई आंकड़ा दिया जाता है, तो सरकार को उसके लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है। सोमवार को जब लोकसभा अध्यक्ष की ओर से सर्वदलीय बैठक बुलायी गयी, तो संविधान पर चर्चा भाग न लेने का विकल्प विपक्ष के पास नहीं था। कांग्रेस लोगों के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती कि संविधान की रट लगाने वाले पार्टी संविधान पर होने वाली चर्चा में भाग लेने से पीछे हट रही है। यही कारण रहा कि संविधान पर चर्चा को लेकर सभी दलों ने हामी भरी, लेकिन संसद के सुचारू संचालन में अभी कई बाधाएं है, जिसे दूर करने की जरूरत होगी।
कुछ कांग्रेस सांसद तो अब यहां तक कहने लगे है कि प्रियंका गांधी के लोकसभा में आने से रणनीति में कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है। उनके मुताबिक प्रियंका ज्यादा प्रैक्टिकल हैं, वे वायनाड में भी जनता के ही मुद्दों पर फोकस कर रही थीं, ऐसे में यहां भी उनकी प्राथमिकता ऐसी ही देखने को मिल सकती है। अब समझने वाली बात यह है कि कांग्रेस के कई सांसदों में रोष है, लेकिन राहुल गांधी के खिलाफ जाने की हिम्मत किसी में नहीं।
यह बात अब जगजाहिर हो चुकी है कि राहुल गांधी के लिए अडानी मुद्दा सबसे ज्यादा प्रिय है, वे इसी के सहारे चुनावों में उतरते हैं और सीधे पीएम मोदी को निशाने पर लेते हैं। संसद में भी वे सिर्फ इसी मुद्दे के दम पर केंद्र को पूरी तरह आइसोलेट करना चाहते हैं। लेकिन अब जब सदन कई दिनों से नहीं चल पा रहा है, कांग्रेस के ही सांसद मानने लगे हैं कि इस तरह से संसद को बाधित रखना ठीक नहीं। ऐसी स्थिति में सरकार की जवाबदेही तय करना और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।
उधर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार के बाद टीएमसी ने उसके नेतृत्व पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए है। तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल के सभी 6 विधानसभा उपचुनावों में जीत हासिल की है वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार को लेकर INDIA अलायंस के नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी उठा दी है। पार्टी के सीनियर लीडर और सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि कांग्रेस को अहंकार अपना किनारे रखना चाहिए और ममता बनर्जी को INDIA ब्लॉक का लीडर घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि गठबंधन को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की जरूरत है।
टीएमसी सांसद ने दावा किया कि ममता बनर्जी के पास मजबूत नेतृत्व है। साथ ही, उनके जमीनी स्तर से जुड़ाव ने उन्हें विपक्षी गठबंधन के लिए सबसे कारगर व्यक्ति बना दिया है। रक्तदान शिविर में बोलते हुए कल्याण बनर्जी ने कहा, ‘कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को हाल के चुनावों में मिली विफलता को स्वीकार करना होगा। अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर एकता को प्राथमिकता देने की जरूरत है। उन्हें अपना अहंकार छोड़ देना चाहिए और ममता बनर्जी को इंडिया गुट के नेता के रूप में स्वीकार करना होगा।’
तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने मुख्यमंत्री ममता के भाजपा से लड़ने के ट्रैक रिकॉर्ड का जिक्र किया। उन्होंने ममता बनर्जी को सिद्ध नेता बताते हुए कहा, ‘वह पूरे देश में एक लड़ाकू के रूप में पहचानी जाती हैं। उनका नेतृत्व और जनता से जुड़ने की क्षमता उन्हें आदर्श चेहरा बनाती है। इसलिए एकजुट और व्यावहारिक दृष्टिकोण के बिना विपक्ष के प्रयास लड़खड़ाते रहेंगे।’