अशोक भाटिया
वक्फ संशोधन बिल को अब कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है। बताया जाता है कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भाजपा को सहयोगियों का साथ नहीं मिलता दिख रहा है। यही वजह है कि भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने खुद इस मामले को अभी शांत रखने का प्रस्ताव दिया है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में संयुक्त संसदीय समिति का कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। पहले सरकार इस बिल को मौजूदा शीतकालीन सत्र में लाने की तैयारी थी। जे सी पी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल इस प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के पास भेजेंगे।निशिकांत दुबे ने अपने प्रस्ताव में कहा कि समिति को और वक्त मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि समिति को अपनी रिपोर्ट संसद के बजट सत्र के पहले सप्ताह में सौंपनी चाहिए। बता दें कि वक्फ बिल की समीक्षा के लिए गठित जेसीपी का कामकाज शुरू से ही सुचारू नहीं रहा। हर बैठक में दोनों पक्षों के बीच काफी हंगामा और तीखी बहस होती रही है। मोदी सरकार का दावा है कि इस बिल के पास हो जाने के बाद वक्फ बोर्ड की शक्तियां पहले के तुलना में और पारदर्शी हो जाएंगी। हालांकि, इसके बाद भी भाजपा को अपने सहयोगियों का भी समर्थन नहीं मिल रहा है।
इसी कारण शायद वक्फ संशोधन बिल को अब कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है। इसे अब अगले साल (2025) बजट सेशन में पेश किया जा सकता है। पहले इस बिल को मौजूदा सत्र में ही लाने की तैयारी थी, लेकिन जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की बैठकों में लगातार बढ़ते विवादों के चलते इसे टालना पड़ा। कांग्रेस के अनुसार तो ये फैसला विपक्ष की ओर से बढ़ते विरोध के चलते लिया गया। कांग्रेस ने इसे सरकार का एक और यू टर्न बताया है। पर वक्फ बोर्ड बिल को लेकर जिस तरह का माहौल बन रहा है उससे लगता है कि सरकार कुछ और सोच रही है। जिस तरह पिछले दिनों भाजपा के मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बाबा साहब अंबेडकर द्वारा हमें दिए गए संविधान में वक्फ कानून के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए इसका समर्थन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि 2014 में कांग्रेस का शासन खत्म होने से पहले पार्टी ने दिल्ली के पास की कई संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। जिस तरह मोदी ने स्पेशली दिल्ली का नाम लिया उससे लगता है कि सरकार इसे अगले विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बनाने वाली है। इसके साथ ही जिस तरह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हजारों लोग अचानक इस बिल को लेकर सक्रिय हुए हैं वो कुछ और इशारा करता है। बहुत बड़ी संख्या में अचानक लोग यह कहने लगे हैं कि वक्फ बोर्ड बिल में संशोधन नहीं वक्फ बोर्ड को ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। यह सब देखकर यही नहीं लगता है कि वक्फ बोर्ड संशोधन का दायरा और बड़ा किया जा सकता है? क्या वक्फ बोर्ड को मृतप्राय करने की तैयारी है?
इधर आज खबर आई कि सरकार ने वक्फ बोर्ड बिल पर यू टर्न ले लिया है। और आज ही सुबह प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से खबर आई कि वहां के एक 115 साल पुराने 500 एकड़ पर निर्मित अति प्रतिष्ठित उत्तरप्रदेश कॉलेज को वक्फ बोर्ड ने अपनी जमीन घोषित कर दिया है। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक प्रसिद्ध मंदिर को भी इसी महीने वक्फ बोर्ड ने अपनी जमीन घोषित करके वहां बाउंड्री वॉल से घेरने का काम शुरू किया है। इन दोनों मुद्दों ने सोशल मीडिया पर आग लगा रखी है। पूर्व राज्यसभा सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने एक्स पर लिखा कि अब तो हद हो गई,115 साल पुराने उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित,वाराणसी के उदयप्रताप कॉलेज पर वक्फ बोर्ड का दावा।500 एकड़ में फैले उत्तरप्रदेश कॉलेज में 20 हजार छात्र पढ़ते हैं।वक्फ बोर्ड और विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि इस्लामीकरण स्थापित करने का सबसे बड़ा साधन बन गया है। त्वरित शल्य क्रिया अपरिहार्य है।
इसी तरह हिंदू हितों की बात करने वाली एक और नेता साध्वी प्राची ने वक्फ बोर्ड को तुरंत प्रभाव से खत्म करने की बात की है। एक्स पर कुछ लोग प्रश्नोत्तरी भी चला रहे हैं कि वक्फ बोर्ड बिल संशोधित होना चाहिए या वक्फ बोर्ड को ही खत्म कर देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह ही चुके हैं कि संविधान में वक्फ की कोई जगह नहीं है। जाहिर है कि जिसे कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी सरकार का यू टर्न समझ रही है वो सरकार का मेगा प्लान है।
भाजपा की इस गुगली को कांग्रेस समझ नहीं पा रही है या जानबूझकर खुश होने का नाटक कर रही है। पर मामला इतना आसान दिखता नहीं है। भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराकर समझ चुकी है किसी भी समस्या के समाधान हो जाने के बाद वह मुद्दा खत्म हो जाता है। अगर राम मंदिर बनने में कोई समस्या रह गई होती तो हो सकता था कि लोकसभा चुनावों में कम से कम उत्तर प्रदेश में तो भाजपा की दुर्गति नहीं हुई होती। भाजपा यह जानती है कि वक्फ बोर्ड का मुद्दा अभी तो आम लोगों तक पहुंचा नहीं है। अभी केवल मीडिया और सोशल मीडिया पर ही हाइप है। जैसे जैसे मंदिर , स्कूल, कॉलेज और कॉलोनियों पर वक्फ बोर्ड का दावा बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे वक्फ बोर्ड को लेकर लोगों के बीच में जागरूकता बढ़ती जा रही है।
बिना जनता के जागरूक हुए कानून बन गया तो भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा नहीं उठा पाएगी।कभी यही काम कांग्रेस किया करती थी।मुद्दे को जीवित रखना है और कभी समाधान नहीं करना है। दिल्ली और बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव है। तब तक वक्फ बोर्ड को लेकर बहुत सी बहसें होंगी , वक्फ बोर्ड बहुत सी जमीनों पर कब्जे की कोशिश करेगा। गंगा और यमुना में वक्फ बोर्ड को लेकर जितना पानी बहेगा इन राज्यों में भाजपा के लिए उतना ही खाद पानी तैयार होगा।
भोजूबीर तहसील सदर के रहने वाले वसीम अहमद खान ने रजिस्ट्री पत्र भेजकर ये बताया कि उत्तरप्रदेश कॉलेज छोटी मस्जिद नवाब टोंक की संपत्ति है जिसे नवाब साहब ने छोटी मस्जिद को वक्फ कर दिया था। लिहाजा ये वक्फ की संपत्ति है और इसे नियंत्रण में लिया जाना चाहिए। अगर 15 दिन के अंदर कॉलेज प्रबंधन की तरफ से अगर कोई जवाब नहीं दिया गया तो आपकी आपत्ति फिर नहीं सुनी जाएगी। इस पर जवाब देते हुए उत्तरप्रदेश कॉलेज शिक्षा समिति के तत्कालीन सचिव यूएन सिन्हा ने 21 दिसंबर को कहा था कि उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना 1909 में चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट के तहत हुआ था।
इस पूरे मामले पर उदय प्रताप कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. डीके सिंह ने बताया कि उत्तरप्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से उत्तरप्रदेश कॉलेज में मौजूद एक मजार की तरफ से एक नोटिस भिजवाई गई थी कि उत्तरप्रदेश कॉलेज की जमीन उत्तरप्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की है, जिसपर तत्कालीन सचिव ने जवाब भी भेज दिया था कि यह जमीन एंडाउमेंट ट्रस्ट की है। न तो जमीन खरीदी जा सकती है और न ही बेची जा सकती है और किसी भी प्रकार का मालिकाना हक भी है तो समाप्त हो जाता है। यह किसी अवांछनीय तत्व की हरकत है जो इस जमीन को उत्तरप्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की जमीन बता रहा है।
उन्होंने बताया कि जवाब दे देने के बाद से ही बोर्ड की तरफ से किसी भी तरह का आगे पत्र व्यवहार नहीं किया गया था। लेकिन इधर बीच वे कुछ निर्माण कार्य मस्जिद में कराना चाहते थे, जिसपर हमने एक्शन लिया और निर्माण सामग्री भी पुलिस के सहयोग से हटवा दी था। उन्होंने बताया कि 2022 में पुलिस को भी सूचित कर दिया था कि कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो सकता है। प्रिंसिपल प्रो। डीके सिंह ने बताया कि मजार की बिजली भी कटवा दी क्योंकि मजार पर बिजली कॉलेज से ही अवैध रूप से चोरी करके जलाई जाती थी। उन्होंने बताया कि बोर्ड ने उस वक्त नोटिस भेजकर प्रयास किया था, लेकिन तत्कालीन प्राचार्य और सचिव ने सक्रियता से इसका जवाब दिया था।
दावा करने वाले वाराणसी के भोजूबीर के रहने वाले वसीम अहमद खान का पिछले साल 75 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था। 2022 में वसीम अहमद ने वक्फ बोर्ड को ये भी बता दिया था कि उनकी तबियत ठीक नहीं रहती। लिहाजा वो इस मामले की पैरवी नहीं कर सकते। बताया जाता है कि 1857 के गदर में टोंक के नवाब को अंग्रेजों ने यहां नजरबंद किया था। उनके लोग उनकी वजह से यहां बस गए थे और नवाब साहब ने अपने लोगों के लिए बड़ी मस्जिद और छोटी मस्जिद बनवाई थी। उत्तरप्रदेश कॉलेज के परिसर में छोटी मस्जिद है।
मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग खुद सवाल कर रहे हैं कि सरकार वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन क्यों नहीं कर रही है? बोर्ड में सिर्फ शक्तिशाली लोग ही शामिल हैं। भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। पारदर्शिता के लिए व्यवस्था किए जाने की मांग की जा रही है। उत्तरप्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और भाजपा नेता मोहसिन रजा कहते हैं कि पूरे देश और समाज की मांग थी कि ऐसा कानून आना चाहिए। वक्फ बोर्ड ने 1995 के कानून का बहुत दुरुपयोग किया है। वक्फ बोर्डों ने निरंकुश होकर अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया है। अगर कोई संपत्ति गलत ढंग से वक्फ संपत्ति में दर्ज हो गई तो उसको कैसे निकाला जाएगा। वक्त बोर्ड कोई अदालत नहीं है जो फैसला करे कि वक्फ की संपत्ति कौन सी है और कौन सी नहीं है। निर्णय लेने का अधिकार हमारे अधिकारियों को है। यह संशोधन इसीलिए लाया जा रहा है कि अगर कोई शिकायत है तो उसकी सुनवाई हमारे अधिकारी करेंगे और अधिकारी बताएंगे कि वक्फ बोर्ड क्या कार्रवाई करे। अमूमन लोग अपनी शिकायत लेकर वक्फ बोर्ड जाते हैं तो उनको न्याय नहीं मिल पाता है। वक्फ बोर्ड अपनी निरंकुश शक्तियों से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं। मोदी सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है, इससे तमाम लोगों को बहुत फायदा मिलेगा।
मोहसिन रजा कहते हैं कि वक्फ गरीब दबे कुचले मुसलमानों के लिए चैरिटी है लेकिन वक्फ बोर्ड कहता है कि हमारे पास कोई पैसा नहीं है। हमारी कोई आमदनी नहीं है। इनके पास करोड़ों की संपत्तियां हैं तो फिर वो संपत्तियां कहां हैं। इसी को लेकर यह संशोधन एक्ट लाया जा रहा है। कई बार कोई भी संपत्ति को सर्वे के आधार पर ही वक्फ में दर्ज हो जाती है, जब उसके वंशज अपने पूर्वजों की संपत्ति को लेने के लिए दौड़ते हैं लेकिन वक्फ कहता है कि हमने सर्वे रिपोर्ट पर वक्फ प्रॉपर्टी में दर्ज किया है, लेकिन उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। ना उनके पास वकफनामा होता है। ना ही वसीयतनामा। यह लोग अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर ऐसे तमाम संपत्तियों पर लोगों को परेशान करते हैं जिसको लेकर ही जनता के हित में संशोधन लाया जा रहा है।