ईसाई मिशनरियां भ्रम और अंधविश्वास फैलाकर भारतीय समाज को तोड़ रही हैं !.

अशोक भाटिया

ईसाई मिशनरियां भ्रम और अंधविश्वास फैलाकर न केवल भारतीय समाज को तोड़ रही हैं, बल्कि कन्वर्जन कर समाज को लगातार कमजोर करने का प्रयास भी कर रही हैं। पिछले लगभग दो दशकों में पेंटेकोस्टल आंदोलन से प्रेरित कथित करिश्माई ईसाइयत की ऐसी लहर चली कि अब पंजाब का कोई भी जिला इससे अछूता नहीं रह गया है। सभी 23 जिलों में ईसाइयों ने अपनी पैठ बना ली है। विशेषकर, समूचे माझा, दोआबा क्षेत्र, पंजाब के मालवा क्षेत्र में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती क्षेत्रों में ईसाई बहुत बड़ी संख्या में हो गए हैं। राज्य में बड़े पैमाने पर चल रहे कन्वर्जन को लेकर सिख और हिंदू समाज आक्रोशित है, जिसकी परिणति अक्सर होने वाले संघर्षों के रूप में देखी जा सकती है।

वैसे पंजाब में कितने चर्च और पादरी हैं, इसका कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन अनुमान है कि यहां पादरियों की संख्या लगभग 65,000 है। इनमें लगभग 5,000 पादरी तो ऐसे हैं, जिन्होंने हाल ही में ईसाइयत कबूल की है। इनमें से अधिकांश आज भी लोगों को बरगलाने के लिए हिंदू-सिख नाम और हिंदू सिख वेश बनाए रखे हुए हैं तथा सिख और हिंदू समाज के लोगों को कन्वर्ट कर रहे हैं। पंजाब में ऐसा कोई गांव, नगर और शहर नहीं है, जहां चर्च न हों। बल्कि घरों में ही चर्च खुल गए हैं, जहां लालच देकर सिखों और हिंदुओं को कन्वर्ट किया जा रहा है।

कन्वर्जन की फांस में नौ वंचित समुदायों की बड़ी संख्या है। इनमें रविदासी (मजहबी सिख), वाल्मीकि, सांसी, बावरिया, बाजीगर, राय सिख, बराड़, बंगला, गाधिले और नट शामिल हैं। इसके अलावा, कुछ ब्राह्मण परिवार भी इनके अनुयायी हैं। राज्य में उभरती क्रिश्चियन मिनिस्ट्रीज स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं। हालांकि सूबे में चर्च आफ नॉर्थ इंडिया है, जिसके अंतर्गत उत्तर भारत के अधिकांश प्रोटेस्टेंट चर्च आते हैं। दूसरी ओर जालंधर डायोसिस के अंतर्गत पंजाब के 23 में से 15 जिलों के अलावा हिमाचल प्रदेश के चार जिलों के रोमन कैथोलिक चर्च आते हैं। लेकिन ये मिनिस्ट्रीज इनमें से किसी के साथ संबद्ध नहीं हैं। स्वतंत्र रूप से काम कर रहे इन पादियों को एक छतरी के नीचे लाने के हरप्रीत देओल ने पेंटेकोस्टल चर्च प्रबंधक समिति बनाई, जिससे 1,000 से अधिक स्थानीय पादरी जुड़ चुके हैं।

कहा जा रहा है कि कि पिछले कुछ समय से तथाकथित ईसाई मिशनरी चमत्कारिक इलाज और कपटपूर्ण सिखों का जबरन धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को ईसाई धर्म में धर्मांतरण कराने के लिए उन्हें गुमराह किया जा रहा है और यह सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। दरअसल भारत के कानून में धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान है, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के कारण कोई भी सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है।

वहां के लोगों का कहना है कि हम अपने धर्म में भी चमत्कारिक इलाज (पाखंडवाद) के खिलाफ हैं। बाइबल भी ऐसे लोगों की निंदा करती है, लेकिन यहाँ इस तरह के अंधविश्वासों का इस्तेमाल पंजाब के लोगों को लुभाने के लिए किया जा रहा है।ज्ञात हो कि पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है और यहाँ के गरीब हिंदुओं और सिखों को धर्मांतरित करने के लिए ‘विदेशी ताकतें’ फंडिंग कर रही हैं। उन्होंने इसे चिंताजनक बताते हुए स्थानीय लोगों का कहना है कि अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनके अनुसार धर्मांतरण करने वाले लोग आरक्षण का लाभ भी ले रहे हैं। यह कैसे हो रहा है, यह एक प्रश्न है।

गौरतलब है कि पंजाब जैसे आधुनिक व वैज्ञानिक सोच वाले राज्य में भी अगर धर्म परिवर्तन से जुड़ी खबरें आती रहती हैं तो यह वास्तव में बहुत ही गंभीर मामला है क्योंकि यह भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जहां के लोगों को सिख गुरुओं ने सबसे पहले धार्मिक पाखंडवाद को नकारने का पाठ पढ़ाया और कर्म (कार्य) की शक्ति में विश्वास रखने का उपदेश दिया। यहां के लोगों की उदात्त संस्कृति ने मानवीयता को मजहब की चारदीवारी के घेरे में कैद करने से इनकार किया जिसमें सिख गुरुओं का ही सबसे बड़ा योगदान रहा क्योंकि उन्होंने ‘मानस की जात’ को एक ही रूप मे पहचाना। गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोविन्द सिंह महाराज तक सभी दस गुरुओं ने अन्याय के समक्ष कभी भी सिर न झुकाने को मानव धर्म बताया और सत्य व हक की राह में बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए प्रेरित किया। दीन-हीन की सेवा को मानव कर्त्तव्य बताया और कर्म या मेहनत करने को ईमान बताया। सिख गुरुओं ने सबसे बड़ा उपदेश यह दिया कि किसी दैवीय चमत्कार पर भरोसा करने के बजाय मनुष्य अपनी मेहनत और लगन पर यकीन रख कर ही अपने जीवन में चमत्कार कर सकता है। इसका प्रमाण आज हम स्वयं केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में देख सकते हैं क्योंकि जिस प्रान्त या देश में भी पंजाबी हैं वे अपनी मेहनत व कार्यक्षमता के बूते पर ही आगे बढे़ हैं । ऐसे समाज में यदि किसी विशेष मजहब के प्रचारक यहां के सिख व हिन्दुओं को दैवीय चमत्कारों के जाल में फंसा कर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं तो इसका संज्ञान लिये बिना नहीं रहा जा सकता। पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में ईसाई मिशनरी यहां के सिख व हिन्दू युवकों विशेष रूप से पिछड़े वर्ग के समाज में अपने धार्मिक दैवीय चमत्कारों के नाम पर इसाई बनाने का अभियान चलाये हुए हैं। यह अभियान पंजाब के सरहदी जिलों में विशेष तौर पर चलाया जा रहा है। ये ईसाई मिशनरी धार्मिक पाखंड फैला कर इन लोगों को सम्मोहित करने का प्रयास करते हैं और फिर उनकी धार्मिक पहचान को अनावश्यक बता कर केश त्यागने को कहते हैं तथा ईसाई बनने के लिए प्रेरित करते हैं। इस बारे में पिछले वर्ष भी सिख समुदाय के कई जत्थेदारों ने ध्यान खींचने की कोशिश की थी। परन्तु तत्कालीन सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था। परन्तु इस बार वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से सरकार से मांग की है कि धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए एक कानून लाया जाये जिससे राज्य में पाखंडवाद और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर लगाम लग सके। वैसे स्वयं में यह कम आश्चर्य का विषय नहीं है कि पंजाब जैसे राज्य के लोग भी अंधविश्वास का शिकार हो सकते हैं परन्तु भौतिक लालच और रातोंरात परिस्थितियों के बदलने के मोह में व्यक्ति ऐसे चक्करों में फंस भी सकता है, जिसका लाभ ईसाई मिशनरियां संभवतः उठा रही हैं। वरना कोई वजह नहीं थी कि वहां के जागरूक लोगों को स्वयं ही इस बुराई को खत्म करने की कमान संभालने की कार्रवाई करनी पड़ती।

यदि गौर से देखा जाये तो सिख गुरुओं ने ही हिन्दू धर्म में फैले पाखंडवाद को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था और मनुष्य को अपने ऊपर भरोसा करने का सन्देश दिया था। आज भी सिख संगतों में हमें ये उपदेश सुनने को मिलते हैं। जात- पांत के विरुद्ध भी सिख गुरुओं ने व्यापक अभियान चलाया और हर इंसान को एक समान समझने का व्यावहारिक गुर भी सिखाया। गुरुद्वारों में अनवरत लंगर चलना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है जिसमें हर दीन व मजहब के आदमी की सेवा खुली रहती है। परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब में जो पिछड़े या दलित वर्ग के लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित होते हैं उन्हें ईसाई बनने के बावजूद आरक्षण की सुविधाएं मिलती रहती हैं जबकि आरक्षण की सुविधा केवल हिन्दू व सिख धर्म के दलितों को ही मिल सकती है। वैसे देखा जाये तो अंधविश्वास बढ़ाने के खिलाफ भी देश में बाकायदा कानून है मगर इसका उपयोग करने से विभिन्न राज्य सरकारें इसलिए घबराती हैं कि इसमे वोट बैंक का मसला आकर फंस जाता है। खुद को चमत्कारिक बताने वाले लोग हर मजहब में आसन जमा कर बैठे हैं। केवल सिख धर्म ही ऐसा है जिसमें ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि इसके सन्त व धार्मिक उपदेशक गुरुओं के बताये मार्ग पर चलने के उपदेश देते हैं और उस ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ को अपना प्रेरक मानते हैं जिसमें दलित व पिछड़े वर्ग के सन्तों की वाणियां भी संग्रहित हैं। इनमे अंधविश्वास व पोंगापंथी व पाखंडवाद पर करारा प्रहार होता है। अतः सवाल पाखंडवाद को समाप्त करने भी है जिसे फैला कर ईसाई मिशनरियां पंजाब का सामाजिक सौहार्द्र खराब करना चाहती है। दूसरा सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा का भी है क्योंकि इस राज्य की सीमाएं पाकिस्तान से छूती हैं। भारत में धर्म परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रभाव राष्ट्रीय नजरिये पर पड़ता है। धर्म परिवर्तित होते ही व्यक्ति की निष्ठाएं भारत की पुण्य भूमि से किसी दूसरी भूमि की तरफ घूमने लगती हैं। यह व्यावहारिक वास्तविकता है। अतः ज्ञानी जी की मांग पर धर्म परिवर्तन निषेध कानून पंजाब में लाया जाना चाहिए और विदेशी फंडिंग से धर्म अरिवर्तन करवाने वाले लोगों को सबक सिखाना चाहिए ।

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