दिवाली शुद्ध रूप से बाजार का त्योहार बन गया है। दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है। आमतौर पर माना जाता है कि धनतेरस के दिन सोना, चांदी, वाहन खरीदना शुभ माना जाता है। लेकिन धनतेरस के दिन सोना चांदी असली धन नहीं है।
शास्त्रों में असली धन को कुछ और ही बताया गया है। 90 फीसदी लोग आज भी अनजान हैं कि आखिर धनतेरस के दिन असली धन क्या है। लिहाजा धनतेरस के मौके पर असली धन की पहचान करना बहुत जरूरी है। धनतेरस के इस असली धन के बिना पूरी जिंदगी व्यर्थ है। धनतेरस हमें बताता है कि असली धन हमारा स्वास्थ्य है। अगर हम स्वस्थ और निरोगी नहीं है, तो मेहनत करके धन नहीं कमा सकते हैं।
धनतेरस इस बात का शपथ है कि जो धन कमाया जाने वाला है। उसके कमाने में भी कहीं से अधर्म नहीं किया जाएगा। किसी का हक नहीं मारा जाएगा। किसी के साथ अन्याय नहीं किया जाएगा। सनातन परंपरा भी धन की कभी विरोधी नहीं रही है। बल्कि वह तो धन को सबसे महत्वपूर्ण मानती है। धनतेरस सिर्फ धन-संपत्ति नहीं आध्यात्मिक उन्नति का भी त्योहार है। इसे धन तेरस आयुर्वेद के आदि प्रणेता धन्वंतरि के कारण कहा जाता है।
धनतेरस पर स्वास्थ्य है सबसे बड़ा धन
भारतीय संस्कृति में सेहत का सबसे बड़ा धन माना गया है। इसे धन से ऊपर रखा गया है। धनतेरस के दिन देव धन्वंतरि की पूजा का विशेष महत्व है। इसकी वजह ये है कि इस दिन इनकी पूजा करने से स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। ऐसे में अच्छी सेहत जैसे धन के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। देव धन्वतंरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। इसलिए वे चिकित्सा विज्ञान और स्वास्थ्य के देवता हैं। देव धन्वंतरि को भगवान विष्णु को अंशावतार भी माना जाता है। कुल मिलाकर धनतेरस भी भगवान धंवतरि का दिन है। यह दिन आपको अच्छे स्वास्थ्य के प्रति बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं में धन-संपत्ति स्वयं लक्ष्मी स्वरूपा है। लक्ष्मी धन की देवी हैं। उन्हें ‘श्री’ कहा गया है। ऐसे में धन त्रयोदशी के दिन लोग सोने-चांदी के तौर पर संपत्ति और धन अर्जित करते हैं। इसके अलावा सनातन परंपरा, चरित्र और स्वास्थ्य रूपी धन के भी संरक्षण पर भी जोर देती है। धनतेरस इन तीनों ही तरह के धन को इकट्ठा करने का दिन है। आयुर्वेद के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु होने से हो सकती है। स्वास्थ्य ही मनुष्य का असली धन है।