जम्मू-कश्मीर में नॉमिनेटेड विधायकों पर जबरदस्त बवाल है. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इसे असंवैधानिक कहा है. इतना ही नहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हमीद कर्रा ने इस नॉमिनेशन प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने का फैसला किया है. कानून के जानकार और वरिष्ठ वकीलों से इसको लेकर बातचीत जारी है, जिसके बाद यह फैसला लिया जाएगा क्या इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है या नहीं.
कांग्रेस का मानना है कि नॉमिनेशन का मतलब बैक डोर से जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बवाल के बीच में खबर आई कि 8 तारीख की शाम को उपराज्यपाल पांच लोगों को नॉमिनेट कर सकते हैं. हालांकि 8 तारीख को कोई नॉमिनेशन संभव नहीं है क्योंकि कानून के जानकार यह बताते हैं कि जब नतीजे आएंगे, उसके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर को उस नोटिफिकेशन के जारी होने का इंतजार करना होगा जिसके जरिए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में नई विधानसभा का गठन किया जाएगा. इस नोटिफिकेशन में यह बताया जाएगा कि किस-किस विधानसभा से कौन उम्मीदवार जीतकर आया है.
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था, उसको खत्म करने के लिए भी एक नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. इन दोनों नोटिफिकेशंस के जारी होने के बाद जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का गठन किया जाएगा और इसके बाद एलजी पांच लोगों की नॉमिनेशन का नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं. हालांकि अभी तक विधानसभा की ऐसी सीटों पर लोगों को नामित करने का हक एलजी के पास ही होता है.
कौन होंगे नामित विधायक?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पांच मनोनीत सदस्यों को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा नामित करेंगे, जिसमें से दो कश्मीर विस्थापित, एक महिला, एक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और एक अन्य होंगे. इन सभी सदस्यों के पास विधानसभा में वोटिंग का अधिकार होगा. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, 8 अक्टूबर को हरियाणा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों के रिजल्ट सामने आएंगे और उसके बाद एलजी की तरफ से इनको नॉमिनेट कर दिया जाएगा.
सूत्रों के अनुसार, इन नामों को फाइनल कर लिया गया है. इसमें वह लोग होंगे जो हाशिए पर हैं और जिनके बारे में हमेशा से ये मुहिम चलाई जाती है कि इनकी आवाज विधानसभा में नहीं पहुंच पाती है. ये मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटी है और इनकी बात सुनने की जरूरत है. इसमें एक महिला और एक पुरुष के अलावा एक रिप्रेजेंटेटिव डिस्प्लेस कश्मीरी कम्युनिटी से उम्मीदवार होगा, जबकि दो रिप्रेजेंटेटिव हिंदू डिस्प्लेस जम्मू और कश्मीर के रीजन से आएंगे.
क्या था पुडुचेरी का मामला?
2018 में पुडुचेरी के तीन विधायकों के नामांकन को मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. यह तर्क दिया गया था कि केंद्र सरकार ने उन्हें विधानसभा में मनोनीत करने से पहले पुडुचेरी सरकार से परामर्श नहीं किया. उच्च न्यायालय द्वारा तीन भाजपा सदस्यों के नामांकन को बरकरार रखने के बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चला गया. दिसंबर 2018 में सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने माना कि सदस्यों को नामित करने से पहले पुडुचेरी सरकार से परामर्श की आवश्यकता नहीं है. उसने इस बात पर जोर दिया कि मनोनीत सदस्य निर्वाचित प्रतिनिधियों से अलग होते हैं तथा उनका मनोनयन केन्द्र सरकार की कार्यकारी शक्तियों के अंतर्गत आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केंद्र सरकार की सलाह पर काम करते हुए लेफ्टिनेंट गवर्नर सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं. न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल द्वारा सदस्यों का मनोनयन संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुडुचेरी राज्यों की तुलना में एक अलग संवैधानिक ढांचे के तहत काम करता है. संघ शासित प्रदेशों में शासन व्यवस्था, केन्द्र सरकार के लिए अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण की अनुमति देती है.
इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी विचार किया कि क्या नामित सदस्यों को बजट और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोट देने का अधिकार है. इसने माना कि 1963 के कानून में निर्वाचित और नामित विधायकों के बीच अंतर नहीं किया गया है, इसलिए उन्हें निर्वाचित विधायकों के बराबर मतदान शक्ति प्राप्त है और उन्हें अविश्वास प्रस्ताव में मतदान करने का अधिकार है.