राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और संरक्षित वन के एक किलोमीटर में हो ईको सेंसेटिव जोन-हाईकोर्ट

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने रणथंभौर टाइगर रिजर्व में हो रहे अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ सख्त कदम उठाने का आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य सहित प्रत्येक संरक्षित वन की बाउंड्री से एक किलोमीटर का ईको सेंसिटिव जोन होना चाहिए। जबकि जमवारामगढ अभयारण्य के मामले में यह दूरी पांच सौ मीटर होगी। यहां 9 फरवरी, 2011 की गाइड लाइन के तहत बताई गतिविधियों को लेकर कडाई से पालना की जानी चाहिए। वहीं यदि कानून के अनुसार ईको सेंसिटिव जोन पहले से ही एक किलोमीटर बफर जोन से अधिक है तो अधिक आने वाले क्षेत्र को माना जाएगा। दूसरी ओर यदि कोई संपत्ति या निर्माण क्रिटिकल टाइगर रिजर्व या वन क्षेत्र के भीतर स्थित है तो उसे तुरंत जब्त कर उस पर यथा स्थिति बनाए रखना चाहिए। जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश रवि तोडवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

अदालत ने कहा कि सुनवाई के दौरान सवाई माधोपुर एडीएम जगदीश आर्य का ध्यान अदालती कार्रवाई के बजाए अपने व्यक्तिगत कामों पर था। ऐसे में मुख्य सचिव को निर्देश दिए जाते हैं कि वे कोर्ट रूम में अधिकारियों के व्यवहार को लेकर दिशा- निर्देश जारी करे। इसके अलावा अदालत ने मामले में करण टिबरेवाल को एक लाख रुपये की फीस दिलाते हुए मामले का न्यायमित्र नियुक्त किया है। अदालत ने डीजीपी को भी कहा है कि वह मामले में अपना सुपरविजन रखे।

याचिका में कहा गया कि टाइगर रिजर्व में अवैध निर्माण से बाघों सहित अन्य वन्यजीवों का आवास क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। इस संबंध में स्थानीय अधिकारियों को शिकायत दी गई, लेकिन उनकी ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि टाइगर रिजर्व के संवेदनशील क्षेत्र में अवैध निर्माण हो रहे हैं और स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इन पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। इस मामले में स्थानीय पुलिस थाने में भी शिकायत दी गई, लेकिन वहां से कोई सहयोग नहीं मिला। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने मामले में दिशा-निर्देश देते हुए प्रकरण की सुनवाई 17 अक्टूबर को तय की है।

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