ढाका। देश में अवामी लीग की नेता शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी ने समान विचारधारा वाले दलों से आगामी संसदीय चुनाव के लिए गठबंधन पर बातचीत शुरू कर दी है। जमात-ए-इस्लामी इससे पहले बांग्लादेश नेशनल पार्टी की नेता खालिदा जिया से हाथ मिलाकर सत्ता का सुख भोग चुकी है। उसने राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद खालिदा की पार्टी से तीन दशक से भी ज्यादा पुराना नाता तोड़ लिया है।
जमात पर युद्ध अपराध का दाग
द डेली स्टार की खबर के अनुसार, पांच अगस्त को अपदस्थ प्रधानमंत्री हसीना के देश छोड़ने के बाद क्षेत्रीय दल भी गठबंधन में शामिल होने के लिए बेचैन हैं। वैसे भी बांग्लादेश नेशनल पार्टी अगला आम चुनाव अकेले लड़ने पर विचार कर रही है। इसलिए अब जमात-ए-इस्लामी की कोशिश इन दलों को एक छतरी के नीचे लाने की है। उल्लेखनीय है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध के लगे दाग को अब मिटा नहीं सकी है।
एकता की कोशिश
द डेली स्टार के अनुसार, 18 अगस्त को जमात-ए-इस्लामी ने राजधानी ढाका के मोघबाजार के अल-फलाह सभागार में सभी सभी समान विचारधारा वाले इस्लामवादी दलों को आमंत्रित किया। जमात के नेता अमीर शफीकुर रहमान ने पार्टी प्रमुखों से एक मंच से चुनाव में हिस्सा लेने का आह्वान किया। बैठक में खिलाफत आंदोलन, जोमियत-ए-उलमाये इस्लाम, इस्लामी ओइक्या जोत, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश, नेजाम-ए-इस्लामी, बांग्लादेश खिलाफत मजलिस के शीर्ष नेता मौजूद रहे। बांग्लादेश खिलाफत आंदोलन के नायब-ए-अमीर अबुल कासिम काशमी ने बताया कि जमात के अमीर ने कहा कि पार्टियों का एक वोट बैंक होना चाहिए। इस संबंध में जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव हमीदुर रहमान आजाद का कहना है कि चुनाव अभी दूर है, इस वजह से चुनावी गठबंधन पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। जब चुनाव आएंगे तब समान विचारधारा वाली इस्लामी पार्टियों के साथ बड़ी एकता बनाने पर विचार किया जाएगा। फिलहाल इन दलों से देश के व्यापक हित के लिए संवाद किया जा रहा है।
इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश का रुख महत्वपूर्ण
जमात-ए-इस्लामी की कोशिश के बीच 21 सितंबर को बांग्लादेश के सबसे बड़े कौमी मदरसा शिक्षा बोर्ड बेफाक के अध्यक्ष महमूदुल हसन ने भी कुछ ऐसे ही प्रयास शुरू किए हैं। उन्होंने जतराबारी मदरसा में बैठक हुई। बैठक में हिस्सा लेने वाले बांग्लादेश खिलाफत आंदोलन के नायब-ए-अमीर अबुल कासिम काशमी ने बताया कि इस दौरान विभिन्न इस्लामी दलों के नेताओं ने आम चुनाव से पहले एक मंच पर आने के बारे में चर्चा की। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। गठबंधन के मसौदे को अंतिम रूप दिया जाना है। कहा जा रहा है कि इस गठबंधन का दारोमदार इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश के रुख पर निर्भर करेगा। इस दल को 2008 और 2018 के चुनाव में कुल मतों का 1 प्रतिशत से अधिक प्राप्त हुआ है। इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश के नेता चाहेंगे कि गठबंधन का वह मुखिया हो।
गोनो ओधिकार परिषद भी मैदान में
आगामी चुनाव में ढाका विश्वविद्यालय केंद्रीय छात्रसंघ (डुक्सू) के पूर्व उपाध्यक्ष नूरुल हक नूर की गोनो ओधिकार परिषद भी मैदान में होगी। चुनाव आयोग में दो सितंबर को उसका पंजीकरण हो गया है। गोनो के महासचिव रशीद खान ने कहा कि कुछ छोटी पार्टियां हमारे चुनाव चिह्न के साथ चुनाव में हिस्सा लेने के लिए बातचीत कर रही हैं। रेजा किब्रिया के नेतृत्व में पार्टी का दूसरा गुट ने भी दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया है। पार्टी के पूर्ववर्ती मुस्तफा मोहसिन मोंटू के नेतृत्व वाले गुट की शीर्ष नेता शुभ्रता चौधरी ने कहा कि दिसंबर 2021 में दो हिस्सों में विभाजित गोनोफोरम इस साल अगस्त में डॉ. कमाल हुसैन के नेतृत्व में फिर से एकजुट हो गया है। खिलाफत मजलिश के संयुक्त महासचिव अताउल्लाह अमीन ने कहा है कि जोमियत-ए-उलमाये इस्लाम, बांग्लादेश खिलाफत मजलिश, खिलाफत मजलिश और नेजाम-ए-इस्लाम समेत छोटी इस्लामी पार्टियां एक मंच पर आने के लिए सहमत हो गई हैं। इस्लामी ओइक्या जोते, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश और जमात समेत और भी इस्लामी पार्टियों को साथ लाने की प्रक्रिया चल रही है। हिफाजत-ए इस्लाम के संयुक्त महासचिव मोहिउद्दीन रब्बानी ने कहा कि उनकी पार्टी इस्लामी पार्टियों के सबसे बड़े गठबंधन को अपना समर्थन देगी। उल्लेखनीय है कि भारत विभाजन से पहले 1941 में बनी जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक सैयद अबुल अला मौदूदी थे। विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए। पार्टी के पूर्वी धड़े से बांग्लादेश जमात ए-इस्लामी का जन्म हुआ।