- आज से सजने वाले कंस दरबार काे लेकर तैयारियां पूर्ण, शोभायात्रा के साथ शुरू होगा कंस मेला
हमीरपुर। बुंदेलखंड के हमीरपुर की धरती पर अब कंस मेले की धूम मचेगी। इस मेले का सैकड़ों साल पुराना इतिहास है जो किसी जमाने में दोनों सम्प्रदायिकता का मिसाल था, लेकिन छह साल पूर्व कंस मेले की शोभायात्रा निकालने के दौरान सम्प्रदायिक तनाव की भेंट चढ़ गया था। इसीलिए कंस मेले को लेकर सुरक्षा के भारी बंदोबस्त प्रशासन ने किए है। आज कंस का दरबार भी सजेगा।
जिले के मौदहा कस्बे का कंस मेला समूचे बुंदेलखंड में मशहूर है। इस मेले का इतिहास भी सैकड़ों साल पुराना है। कंस मेला वृंदावन लीला की तर्ज पर होता है। लोकतंत्र सेनानी देवी प्रसाद गुप्ता ने बताया कि किसी जमाने में कंस मेला दोनों समुदाय के लोगमिलकर करते थे लेकिन पिछले कई दशकों से इसका आयोजन गल्ला व्यापार संघ और आढ़त संघ के लोग करते है। तीन दिवसीय कंस मेले को लेकर हर साल की तरह इस बार भी अनंत चौदस के दिन कस्बे के गुड़ाही बाजार में तैयारियां की जा रही हैं। यहीं पर कंस दरबार भी सजाया जा रहा है। अगले दिन कंस मेला की विशाल शोभायात्रा पूरे कस्बे में धूमधाम से निकाली जाएगी। शोभायात्रा में कंस का विमान, श्रीकृष्ण और अन्य देवी देवताओं की अनोखी झांकियां शामिल होगी। शोभायात्रा मौदहा कस्बे के एतिहासिक मीरा तालाब पहुंचेगी। यहीं पर कंस समेत अन्य राक्षसों के वध की लीला होगी। पानी से भरे बीच तालाब में श्रीकृष्ण नाथनाथन करेंगे। यहां यह लीला भी बड़े ही अनोखे तरीके सेकी जाएगी। इसे देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। कंस मेले के दौरान 51 घंटे का अखंड कबीरी भजन का भी आयोजन होगा।
बुजुर्ग लोकतंत्र सेनानी व पत्रकार सलाउद्दीन ने बताया कि कंस मेले का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है जो बुंदेलखंड में प्रसिद्ध है। रविवार को मंडलायुक्त व डीआईजी ने यहां कंस मेले को लेकर सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियां देखी। जिलाधिकारी, एसपी व अन्य अफसरों और धर्म गुरुओं के साथ बैठक कर भाईचारा के साथ कार्यक्रम संपन्न करने के निर्देश दिए गए है।
कंस, बकासुर व पूतना की सजती है झांकियां
एतिहासिक कार्यक्रम को लेकर बुजुर्ग देवी प्रसाद गुप्ता ने बताया कि मौदहा कस्बे में तीन दिवसीय कंस मेला के पहले दिन शाम को गुड़ाही बाजार में कंस का दरबार सजाया जाता है। इस दरबार में ही बकासुर व पूतना सहित अन्य झांकियां भी सजायी जाती है। इन झांकियों को देखने के लिये कस्बे के लोगों की भीड़ उमड़ती है। अगले दिन सभी झांकियों को शामिल कर मीरा तालाब ले जाया जाता है जहां कंस सहित सभी दैत्यों का वध की लीला का मंचन होता है।
आम जनता की मदद से होता है कंस मेला
कस्बे के बुजुर्गों ने बताया कि यहां का कंस मेले का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है जिसे स्थानीय लोगों की मदद से हर साल सम्पन्न कराया जाता है। इतने बड़े आयोजन के लिये नगर पालिका या अन्य सरकारी संस्थायें कोई मदद नहीं करती है। नगर पालिका सिर्फ कस्बे में स्वागत गेट बनवाती है। कंस विमान, देवी देवताओं की झांकियां और विभिन्न लीलाओं के मंचन का खर्च गल्ला व्यापार व आढ़ती संघ के लोग ही करते हैं। पच्चीस प्रतिशत मदद स्थानीय लोग करते हैं।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मशहूर है ये कंस मेला
शिवसेना के प्रदेश उपप्रमुख महंत रतन ब्रह्मचारी ने बताया कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र के कोने-कोने में यहां का एतिहासिक कंस मेला मशहूर है। इसे देखने के लिये हमीरपुर के अलावा महोबा, बांदा, चित्रकूट, छतरपुर (मध्यप्रदेश), टीकमगढ़, झांसी, जालौन और फतेहपुर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। बताते हैं कि तीस साल पहले तीन दिवसीय कंस मेला के दौरान नौटंकी का आयोजन होता था मगर अब इनकी जगह कई अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने ले ली है।
छह साल पूर्व मेले में हुआ था बड़ा बवाल
वर्ष 2018 में एतिहासिक कंस मेले की शोभायात्रा निकालने को लेकर दो पक्षों में झड़पे हुई थी जिस पर पथराव के बाद लाठीचार्ज किया गया था। पुलिस को हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी थी। लाठीचार्ज में भाजपा के तमाम नेता और ए.एसपी समेत नौ सिपाही पथराव में चुटहिल हुए थे। इस घटना को लेकर योगी सरकार ने तत्कालीन जिलाधिकारी आरपी पाण्डेय व एसपी एके सिंह को हटा दिया था। कई दिनों तक भाजपा के कार्यकर्ताओं ने घरना दिया था। कई दिनों तक तनावपूर्ण माहौल रहा।