पैत्रिक संपत्ति में हिस्सा मिले या ना मिले, संतान अपने माता पिता की सेवा से इंकार नहीं कर सकती- हाईकोर्ट

पैत्रिक संपत्ति में हिस्सा मिले या ना मिले, संतान अपने माता पिता की सेवा से इंकार नहीं कर सकती संतान को हर हाल में अपने माता पिता के लिए बुढ़ापे की लाठी बनना ही होगा मध्य प्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट ने इस संबंध में विशेष गाइनलाइन जारी की है हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए मेंटिनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एवं सीनियर सीटिजन एक्ट 2007 को डिफाइन करते हुए याचिकाकर्ता की अर्जी को खारिज कर दिया है अपनी अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसे पैत्रिक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला है, इसलिए वह अपने माता पिता की सेवा के लिए जिम्मेदार नहीं है

इसके जवाब में हाईकोर्ट ने कहा कि संपत्ति का इस मामले से कोई संबंध नहीं है इस मामले में अलग से सुनवाई की जा सकती है मामला मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर का है यहां एक बुजुर्ग महिला के चार बेटे हैं, लेकिन तीन बेटों ने महिला को यह कहते हुए सेवा करने से इंकार कर दिया था कि उसे कोई पैत्रिक प्रापर्टी नहीं मिली है ऐसे में बुढापे में यह महिला दाना पानी के लिए भी मोहताज हो गई और एसडीएम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई एसडीएम ने मामले में सुनवाई करते हुए महिला के पक्ष में फैसला सुनाया

बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए पहले से है कानून
इसी के साथ तीनों बेटों को बारी बारी से महिला की सेवा करने या फिर महिला के भरण पोषण में होने वाले खर्चे को वहन करने का निर्देश दिया था एसडीएम के इस फैसले पर बेटों ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर दी थी मामले की सुनवाई जबलपुर हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति जीएस अहलुवालिया की कोर्ट में हुई कोर्ट ने पहले दोनों पक्षों को इत्मीनान से सुना इसके बाद कोर्ट ने मेंटिनेंस एवं वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 को डिफाइन करते हुए किसी भी संतान को माता पिता की सेवा से मुक्ति नहीं मिल सकती

हाईकोर्ट ने कायम रखा एसडीएम कोर्ट का फैसला
सभी संतानों की यह विधिक जिम्मेदारी हैं कि माता पिता के जिंदा रहते उनकी सेवा करेंगे इसके लिए यह जरूरी नहीं कि संतान को पैत्रिक संपत्ति में हिस्सा मिले ही हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि जहां तक पैत्रिक संपत्ति में हिस्से का मामला है, इसे अलग से रेवेन्यू कोर्ट में सुना जा सकता है, लेकिन इस मामले में संपत्ति का बंटवारा बाधा नहीं बनना चाहिए इसी के साथ हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई और एसडीएम कोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए कहा कि चारों बेटों को महिला के भरण पोषण के लिए हर महीने दो-दो हजार रुपये का भुगतान करना ही होगा

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