नवजात शिशु (बालिका) को बाल गृह ने लेने से किया इंकार

अधीक्षका की संवेदनहीनता से 12 दिन के शिशु को लेकर दर दर भटकता रही चाइल्ड हेल्प लाइन टीम

बाराबंकी। थाना हैदरगढ़ अंतर्गत लावारिश दशा में प्राप्त नवजात शिशु न्यायपीठ बाल कल्याण समिति बाराबंकी के आदेश से मातृ शिशु रेफरल अस्पताल लखनऊ में भर्ती कराया गया था। 11 दिन इलाज के बाद शिशु के स्वस्थ होने पर डिस्चार्ज कर दिया। शिशु की अस्पताल में देखभाल कर रहे चाइल्ड लाइन की टीम ने इसकी जानकारी न्यायपीठ को दी। न्यायपीठ के सदस्य व न्यायिक मजिस्ट्रेट राजेश शुक्ला एवं दीपशिखा श्रीवास्तव ने तत्काल नवजात शिशु के सर्वोत्तम हित मे पूर्व के आदेश के अनुक्रम में शिशु को राजकीय बाल गृह (शिशु) पराग नारायण रोड लखनऊ में आवासित करने का आदेश निर्गत किया। मौके पर उपस्थित अधीक्षिका रीता टमटा ने शिशु के कम वजन होने का हवाला देते हुए लेने से साफ इंकार कर दिया। इस सम्बन्ध मे जब डीपीओ लखनऊ विकास सिंह से बात की गई, उन्होंने कोई मदद करने से साफ मनाकर दिया। शिशु की हालत बिगड़ते देख आनन फानन में चाइल्ड लाइन टीम के समन्वयक मनोज कुमार की सूझबूझ और न्यायपीठ के अथक प्रयास से लगभग 5 घंटे के बाद वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल में शिशु को भर्ती कराकर राहत की साँस ली। बाराबंकी की डीपीओ डॉ पल्लवी सिंह एवं शिशु गृह में निरीक्षण पर पहुंचे उपनिदेशक प्रवीण त्रिपाठी के प्रयास से जब न्याय पीठ सदस्य राजेश शुक्ला की बात शिशु गृह के डॉ सुदर्शन से बात हुई तो उन्होंने कहा कि मैंने केवल यह कहा था कि बच्चे का वजन कम है, न कि गृह में भर्ती से मना किया। जबकि अधीक्षक ने न्यायपीठ बाल कल्याण समिति के आदेशों की अवहेलना करते हुए बच्चे को लेने से इंकार कर दिया। बताते चलें कि बाल कल्याण समिति किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधानों के अंतर्गत गठित प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त बेंच ऑफ मजिस्ट्रेट है। जिसके बाल हित पर निर्गत आदेश न्यायिक आदेश है। जिसकी अवहेलना दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आता है। इस सम्बन्ध मे जब न्यायपीठ से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि शिशु के साथ इस तरह के असंवेदनशील कृत्य और न्यायिक आदेश की अवहेलना में जो भी दोषी होंगे। उनके खिलाफ नियमानुसार अनुशासनात्मक एवं दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित किया जाएगा।

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