• ट्रामा सेन्टर को खुद है इलाज की जरूरत।
• आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के भरोसे होता है इलाज
• अल्ट्रासाउंड मशीन है पर टेक्निशियन नही, कैसे होगा अल्ट्रासाउन्ड
जफराबाद। प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक के द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कितनी भी योजनाओं को चलाया जा रहा है परन्तु हौज गांव का ट्रामा सेन्ट्रर प्रदेश सरकार की योजनाओ को मुह चिढ़ा रहा है। सुल्तानपुर- जौनपुर- वाराणसी राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर हौज गांव स्थित ट्रामा सेन्टर को आज खुद इलाज की जरूरत है। पत्रकारों की की जांच – पड़ताल टीम पहुंची तो ट्रामा सेंटर में पाया गया कि उक्त ट्रामा सेन्टर सुविधाओं के मामले में नदारद है। यहां जांच और दवा के नाम पर खाली सर्दी जुखाम बुखार की दवा देकर मरीजों के घर भेज दिया जाता है। जब कि ट्रामा सेन्टर पर 24 घन्टे डाक्टरों की ड्यूटी होती है।
यहां रविवार के दिन कोई भी डाक्टर मौजूद नही था। ऐसे में यदि इमरजेन्सी केस आता भी होगा तो क्या होता होगा । क्या आन काल डाक्टर मरीजों को देखते हैं। या फिर जान गवायें जाने के डर से मरीज के परिजन यहां की व्यवस्थाओं को कोसते हुए कहीं अन्यत्र अपना इलाज करवाने के लिये निकल जाते हैं। एक्सीडेन्टल केस के मामले पर खाली मरहम पट्टी कर जिला अस्पताल के लिये रेफर कर दिया जाता है।
जांच के नाम पर खाली कमरे ही दिखायी दिये, मशीने और आपरेटर का पता ही नही है। बताया गया कि पहले एक्सरे मशीन थी बाद में वो भी जिला अस्पताल में मंगा ली गयी और फिर वापस नही आयी। आपरेशन थियेटर में ताला बन्द मिला । रविवार को खाली एक एम टी एस अनित्य मौर्या व दो नर्स पूजा व सुषमा ही कार्यभार देखते हैं।
लाखों रूपये की खरीददारी कर लगवाई गयी अल्ट्रासाउन्ड मशीन आपरेटर न होने के कारण धूल फांक रही है। ट्रामा सेन्टर का नाम आज अगर जिन्दा है तो उसका कारण क्रस्ना डायगोन्सिटक लिमिटेड जौनपुर के द्वारा सिटी स्कैन है। वही सिटी स्कैन कराने के लिये लोग यहां आते हैं बाकी का ट्रामा सेन्टर पर न तो डाक्टर और न ही मरीज दिखलाई पड़ते है। शौचालय तो बनवाये गये हैं मगर उनका दरवाजा और उस पर पानी की टंकी नही दिखलाई दी। ऐसे में समझा जाता है कि मरीज को प्रसाधन हेतु बाहर ही खेतों में ही जाना पड़ता है।
हालांकि अभी तक यहां किसी भी तरह के आपरेशन होने की मामला तो नही दिखलाई दिया क्यूं कि यहां का जनरेटर कबाड़ की स्थिति में है। ऐसे में यदि डाक्टर चाह कर भी कोई आपरेशन नही कर सकता क्यूं कि यदि लाईट चली गयी बिजली की कोई अतिरिक्त व्यवस्था नही है। इलेक्ट्रिशियन न होने की वजह से जो कोई भी विद्युत उपकरण जलता या खराब होता है उसे या तो उसी हालत में छोड़ दिया जाय या फिर वहां उपस्थित कर्मचारी अपनी जेब से उसका रिपेयर करवाये। कहने को तो यह ट्रामा सेन्टर है पर सुविधाओ की देखे तो यह सफेद हांथी साबित हो रहा है।
चिकित्साधिकारी अधिकारी अनिल कुमार सिंह से मोबाइल से सम्पर्क करने पर बताया कि यहां ट्रामा सेन्टर हेतु कोई बजट नही आता है। जिससे कि कोई कार्य कराया जा सके। अल्ट्रासाउन्ड मशीन तो है लेकिन टेक्निशियन न होने की वजह से मरीजों को यह सुविधा नही मिल पाती है। हड्डी रोग के डाक्टर की नियुक्ति तो है पर एक्सरे मशीन नही है। किसी तरह से यहां आये लोगों का इलाज किया जाता है।