- राकेश दुबे
पड़ोसी देश बांग्लादेश से जो संकेत मिल रहे हैं, वे बता रहे हैं कि अब वहां कट्टरपंथियों और भारत-विरोधी ताकतों का वर्चस्व होगा। आतंकवाद बढ़ेगा। बांग्लादेश में भी तालिबान सक्रिय होंगे। अभी तो वहां के प्रधानमंत्री आवास को आम जनता के लिए इस कदर खोल रखा गया है मानो कोई मेला लगा हो! कुछ युवा चेहरों की अश्लील, असभ्य, विद्रूप मानसिकता सार्वजनिक हुई है, जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की अंतर्वस्त्र सरेआम लहराए हैं। ऐसे युवा कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन आंदोलनकारी छात्र नहीं हो सकते। वे बेशर्म जमात भी हो सकते हैं, लेकिन अपने ही मुल्क का अपमान कर रहे हैं।
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी दोनों ही कट्टरवादी दल हैं और पाकपरस्त भी। अंतरिम सरकार बनने से पहले ही दोनों दलों के करीब 9000 कार्यकर्ताओं को जेलों से रिहा कर दिया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और उनके पुत्र तारिक रहमान की सरपरस्ती में इन दलों ने आम जनसभा को संबोधित भी किया है। तारिक हत्या के तीन मामलों में उम्रकैद के सजायाफ्ता हैं, लेकिन वह लंदन में स्व-निर्वासन में थे। अभी ढाका लौट कर आए हैं, तो अदालतें फिलहाल खामोश और निष्क्रिय हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार में मंत्री रहे 10 और अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है।
संकेत हैं कि बीएनपी और जमात के साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ‘सौदेबाजी’ की है कि शेख मुजीब की सियासी विरासत की प्रतीक ‘अवामी लीग’ पार्टी का नामोनिशां ही मिटा दिया जाए, ताकि 1971 की बगावत की मुकम्मल सजा दी जा सके। हसीना के बांग्लादेश छोड़ कर चले जाने के साथ ही शेख मुजीब की सियासी विरासत तो समाप्त सी हो गई। पाकिस्तानी फौज गदगद है और लड्डू खा रही है। ऐसी सूचनाएं भी हैं कि आईएसआई लंदन में तारिक रहमान और जमात के नेतृत्व के साथ 2018 से ही ‘तख्तापलट’ की साजिश रच रही थी, लेकिन अभी तक नाकाम रही थी। मौजूदा आंदोलन का आवरण छात्रों का था, लेकिन उनकी आड़ में जमात और बीएनपी कार्यकर्ताओं ने ही आंदोलन को ‘तख्तापलट’ का रूप दिया था।
जमात का छात्र संगठन ही आंदोलन और बगावत के पीछे सक्रिय था। बेशक शेख हसीना को मुल्क छोड़े तीन दिन गुजर चुके हैं, लेकिन बांग्लादेश के हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। करीब 125 लोग बीते एक दिन में मारे गए हैं। कुल मौतों की संख्या 450 से अधिक हो गई है। चूंकि प्रधानमंत्री के तौर पर हसीना भारत-समर्थक थीं। दोनों देशों ने कई साझा परियोजनाएं शुरू कीं और पुराने विवादों को भी खत्म किया। अब अंतरिम सरकार के दौर में कट्टरपंथी और भारत-विरोधी ताकतें ऐलानिया कह रही हैं कि उन परियोजनाओं की जांच और समीक्षा की जाएगी।
बांग्लादेश के एक तबके का भारत-विरोध इससे स्पष्ट होता है कि बीते तीन दिनों में ही 30 हिंदू मंदिर तोड़ दिए गए। उनमें आस्था की देव-मूर्तियों को भी खंडित कर ध्वस्त किया गया। मंदिरों में आग लगा दी गई। हिंदुओं के 300 से अधिक घर और उनकी दुकानें तोड़ी गईं और आगजनी की गई। बीते कुछ सालों के दौरान करीब 3600 हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा चुका है और उन्हें आग के हवाले किया जाता रहा है।
सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश हिंदू-विरोधी भी हो रहा है? बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी अब मात्र 7.9 प्रतिशत है, जबकि 1971 में देश-निर्माण के वक्त यह आबादी करीब 23 प्रतिशत थी। बेशक, यहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हैं। क्या मोदी सरकार प्रभावी हस्तक्षेप करेगी? बीएनपी की सरकार पहले भी बांग्लादेश में रही है। जमात भी भारत का विरोध करती रही है। जमात तो 1971 में भी पाकिस्तानपरस्त था और बांग्लादेश बनाने के अभियान के खिलाफ था। यह भी हकीकत है कि बांग्लादेश कई मामलों में भारत के भरोसे रहा है। हकीकत यह भी है कि अब बांग्लादेश में करीब 80 प्रतिशत सैन्य हथियार चीन से आते हैं। क्या नई सरकार चीन के साथ अपने संबंध मजबूत करेगी और भारत का खुलेआम विरोध करेगी? भारत के लिए घुसपैठ और शरणार्थियों का आना भी बेहद गंभीर चुनौती है। उसे किस तरह नियंत्रित किया जा सकता है? बहरहाल अभी तो निगाहें बांग्लादेश के घटनाक्रम पर टिकी रहेंगी। हिंदुओं पर हो रहे हमले भी चिंता पैदा करते हैं।