सीएम योगी की निजी रुचि के नाते वर्ल्ड क्लास चिकित्सा सुविधा का केंद्र बना यूपी
गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलने से प्रदेशवासियों के साथ पड़ोसी राज्यों को भी लाभ
लखनऊ। पिछले सात वर्षों यूपी में हेल्थ सेक्टर का कायाकल्प हो चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निजी रुचि के चलते यूपी वर्ल्ड क्लास चिकित्सा सुविधा का केंद्र बनता जा रहा है। इन केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टर्स द्वारा गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलने से प्रदेशवासियों को काफी लाभ हो रहा है। अब उन्हें गंभीर रोगों के इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई या दक्षिण भारत के महानगरों में नहीं जाना पड़ता। अपने ही सूबे में बेहतरीन इलाज मिलने के कारण मरीज और उनके परिजनों का समय और संसाधन दोनों बचता है। समय पर उचित इलाज मिलने से उनके स्वास्थ्य लाभ की संभावना भी बढ़ जाती है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के ये लाभ सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोगों को ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य के लोगों को भी मिल रहा है। खासकर नेपाल और बिहार की एक बड़ी आबादी को।
पिछले दिनों इसका जिक्र भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी एक कार्यक्रम के दौरान किया था।
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य क्षेत्र सीएम योगी का पसंदीदा क्षेत्र रहा है। लोगों को स्थानीय स्तर पर सस्ते में विशेषज्ञों द्वारा गुणवत्तापूर्ण इलाज मिले, इस बाबत गोरक्षपीठ वर्षों से प्रयासरत रही है। उस पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में और मुख्यमंत्री के रूप में अब योगी उसी भूमिका को एक बड़े फलक पर निभा रहे हैं। एक जिला एक मेडिकल कॉलेज के प्रति योगी की प्रतिबद्धता उसी की कड़ी है।
चिकित्सा सुविधा की बेहतरी के अब तक के प्रयास और नतीजे
स्वास्थ्य (चिकित्सा व चिकित्सा शिक्षा) क्षेत्र योगी आदित्यनाथ का पसंदीदा क्षेत्र रहा है। दरअसल 1998 से 2017 तक उन्होंने गोरखपुर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया है। गोरखपुर के आसपास का पूरा क्षेत्र (सटे नेपाल से लेकर बिहार तक) तराई का है। इस इलाके में मच्छरों की बहुलता है। चंद फीट की गहराई में पानी उपलब्ध होने के कारण वह भी प्रदूषित है। ऐसे में करीब 6 से 7 करोड़ लोगों की आबादी वाला यह इलाका मच्छर और जलजनित रोगों (इंसेफेलाइटिस, एईएस, कालाजार, डेंगू, चिकनगुनिया और फाइलेरिया आदि) के प्रति संवेदनशील है। इस वजह से, खासकर इंसेफेलाइटिस एवं एईएस से हर साल सैकड़ों-हजारों की संख्या में मौत होती रही है। मरने वालों में अधिकांश मासूम होते थे। जितनों की मौत होती थी, उससे अधिक संख्या शारीरिक एवं मानसिक रूप से दिव्यांग होने वालों की रही है। ऐसे लोग ताउम्र परिवार और समाज के लिए बोझ बन जाते थे। समाज, परिवार और देश की उत्पादकता में इनका योगदान शून्य होने के नाते अर्थव्यवस्था पर भी लंबे समय तक बुरा असर पड़ता था।
योगी इन सबके साक्षी रहे हैं। यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हों। असमय माताओं की कोख न सूनी हो। किसी बाप का सहारा न छिने, इसके लिए उन्होंने इस बाबत सड़क से लेकर संसद तक जो संघर्ष किया उससे हर कोई वाकिफ है। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी इस क्षेत्र में उनकी रुचि का सिलसिला उसी शिद्दत से जारी रहा। हालांकि देश का सर्वाधिक आबादी वाला प्रदेश, अपेक्षाकृत कम संसाधन और पिछली सरकारों द्वारा चिकित्सा व इसकी शिक्षा के क्षेत्र की अनदेखी के कारण यह काम नामुमकिन तो नहीं पर आसान भी नहीं था। पर, जो ठान लिया उसे हर संभव कोशिश कर अंजाम तक पहुंचाना योगी की फितरत रही है। इंसेफेलाइटिस पर लगभग नियंत्रण कर उन्होंने इसे कर भी दिखाया। मई 2024 तक एईएस और जेई से होने वाली मृत्यु दर घटकर शून्य तक पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं। इसी दौरान मच्छर जनित कालाजार, चिकनगुनिया, डेंगू जैसी बीमारियों पर भी काफी हद तक नियंत्रण पाया गया।
आम नागरिक को पास में सस्ता, बेहतर और अद्यतन इलाज मिले, इसके लिए भी सीएम योगी लगातार प्रयास करते रहे हैं। गोरखपुर में 1011 करोड़ रुपये की लागत से 112 एकड़ के विस्तृत रकबे में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के परिसर में रीजनल मेडिकल रिचर्च सेंटर (आरएमआरसी), विश्वस्तरीय इन दोनों संस्थानों का लोकार्पण भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं। गोरक्षपीठ की तरफ से बने महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में भी मेडिकल एवं पैरा मेडिकल शिक्षा की शानदार व्यवस्था है। संस्थान के तहत भी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस को इस साल से एमबीबीएस की पढ़ाई की मान्यता मिल चुकी है। ये सभी संस्थान पूरे क्षेत्र में होने वाले मौसमी, संचारी एवं गंभीर रोगो के इलाज, उनकी वजहों पर…