सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अति पिछड़ी जातियों को होगा फायदा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज रिजर्वेशन को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अब राज्य सरकारों के पास ये अधिकार होगा कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के रिजर्वेशन कोटे में सब कैटेगरी बना सकें।

अब राज्य की सरकारें इसपर कानून भी बना सकेंगी। कोर्ट ने इसके लिए अपने ही पुराने 2004 के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए आरक्षित श्रेणी के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।

कोटा के अंदर कोटा देना सही
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से माना कि राज्यों द्वारा एससी और एसटी के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है, ताकि इन समूहों के अंदर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा देना सुनिश्चित किया जा सके।

एक सब-कैटेगरी को 100 फीसद आरक्षण नहीं
पीठ ने छह अलग-अलग फैसले सुनाए। बहुमत के फैसले में कहा गया कि सब कैटेगरी का आधार “राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य डेटा द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, जिसमें उनकी खुद की मर्जी नहीं चल सकती। कोई भी सरकार एक ही सब-कैटेगरी को 100 फीसद आरक्षण नहीं दे सकती।
पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा भी शामिल थे। पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा दायर एक मुख्य याचिका भी शामिल थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गई थी।

एससी और एसटी के लोग होते हैं भेदभाव के शिकार
ईवी चिन्नैया मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ के 2004 के फैसले को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी और एसटी के लोग अक्सर उनके द्वारा सामना किए जाने वाले प्रणालीगत भेदभाव के कारण आगे बढ़ने में असमर्थ होते हैं।

क्रीमी लेयर की हो पहचान
न्यायमूर्ति गवई ने एक अलग फैसले में कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण से बाहर करना चाहिए। असहमति जताते हुए फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जाति की सूची में छेड़छाड़ नहीं कर सकते।

शीर्ष अदालत ने ई वी चिन्नैया फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर 8 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था, जिसने 2004 में फैसला दिया था कि सभी अनुसूचित जाति समुदाय, जो सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेल रहे हैं, एक समरूप वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है।

क्या है कोटा के अंदर कोटा के मायने
दरअसल, कोटा के अंदर कोटा से मतलब एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना है। इसके तहत यह सुनिश्चित करना होगा कि एससी-एसटी के अंदर जो जातियां ज्यादा जरूरतमंद हैं और जिन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ता है, उसे ज्यादा लाभ मिले।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण उन राज्यों का है, जहां ओबीसी में विभाजन किया गया है। तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को कम पिछड़े और अधिक पिछड़ों में विभाजित किया गया है। इसका फायदा कमजोर वर्गों को मिलता है, क्यों कि उन्हें प्राथमिकता मिलती है।

ईवी चिन्नैया के फैसले को पलटा गया
यह फैसला ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में 2004 के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में आया है। उस फैसले में यह माना गया था कि एससी और एसटी समरूप समूह हैं और इसलिए राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों के लिए कोटा के अंदर कोटा देने के लिए उन्हें और उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं।

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