नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को ओडिशा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि
आज हमारी बेटियां आदित्य एल-वन और चंद्रयान-3 जैसे प्रतिष्ठित साइंस मिशन का नेतृत्व कर रहीं हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में स्टेम विषयों में अब बेटियों की भागीदारी 40 प्रतिशत से अधिक है। उन्होंने कहा कि इस संस्थान में उपाधि, पदक एवं पुरस्कार पाने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या छात्रों के मुकाबले कम है। उन्होंने भविष्य में बेटों और बेटियों के बीच असमानता की यह स्थिति दूर होने की आशा जताई।
द्रौपदी मुर्मू ने प्रसन्नता जताते हुए कहा कि विज्ञान की तार्किकता और परंपरा के संस्कारों को समन्वित करके आप आगे बढ़ रहे हैं। नाइसर के प्रतीक चिह्न में मैथ्स, बायोलॉजी, कैमिस्ट्री तथा फिजिक्स से जुड़े डिजाइन्स के साथ ईशोपनिषद् से लिया गया कथन अंकित है -विद्याऽमृतमश्नुते। इसका भावार्थ यह है कि विद्या से व्यक्ति को अमृत प्राप्त होता है यानि विद्या-रूपी अमृत की संजीवनी पाकर व्यक्ति के कार्य अमर हो जाते हैं। उदाहरण के लिए विश्व के महानतम वैज्ञानिकों में से एक सर सीवी रमन दशकों से हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनके द्वारा प्रतिपादित रमन इफेक्ट्स प्रासंगिक है और उस वैज्ञानिक सिद्धान्त के जरिये सीवी रमन सदैव अमर रहेंगे।
उन्होंने कहा कि सार्थक विद्या एवं ज्ञान वही है, जिसका प्रयोग मानवता की बेहतरी एवं उत्थान के लिए हो। मुझे इस वर्ष अप्रैल में भारत की पहली और विश्व की सबसे सस्ती कार और टी सेल थेरेपी का शुभारंभ करने का अवसर मिला। नाइसर में मेडिकल साइक्लोट्रॉन सुविधा की स्थापना के लिए कार्य किया जा रहा है। कैंसर के विरुद्ध हमारी लड़ाई में ये सब उपलब्धियां संपूर्ण मानव जाति के लिए एक नई आशा प्रदान करती हैं।
उन्होंने कहा कि विज्ञान के वरदान के साथ-साथ उसके अभिशाप का खतरा भी हमेशा बना रहा है। आज साइंस एंड टेक्नॉलजी के क्षेत्र में बहुत तेजी से बदलाव आ रहे हैं। नए-नए तकनीकी विकास मानव समाज को क्षमताएं प्रदान कर रहे हैं लेकिन साथ ही मानवता के सामने नई चुनौतियां भी पैदा कर रहे हैं। विज्ञान शिक्षा से जुड़े आप जैसे सभी लोग एवं नीति-निर्मातागण मिलकर इन सभी समस्याओं को हल करने का प्रयत्न करेंगे ताकि मानवता अनुसंधान एवं विकास का अधिक से अधिक लाभ उठा सके और उसे कोई हानि न पहुंचे।