नई दिल्ली। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में अपने पहले संबोधन में आपातकाल के काले दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी का समय हमारे देश के इतिहास में अन्याय का कालखण्ड था।
26 जून 1975 में लगे आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर लोक सभा अध्यक्ष बिरला ने सदन की तरफ से आपातकाल लगाने के निर्णय का उल्लेख किया। उन्होंने उन सभी लोगों के संकल्प शक्ति की सराहना की, जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा की।
भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के दिन आपातकाल की घोषणा को काला अध्याय बताते हुए बिरला ने कहा कि इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया। उन्होंने कहा कि विश्व में भारत की पहचान लोकतंत्र की जननी के रूप में है, जहां सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहित किया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोपी गई। भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को भुला दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा गया। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के अधिकार नष्ट किए गए और उनकी आजादी छीन ली गई। यह वह दौर था, जब विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया और पूरे देश को जेल खाना बना दिया गया।
इमरजेंसी के विषय में बात करते हुए बिरला ने कहा कि उस समय कि तानाशाह सरकार द्वारा ने मीडिया पर अनेक पाबंदियां लगाने के साथ न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा दिया था। इमरजेंसी का वह समय हमारे देश के इतिहास में अन्याय का कालखण्ड था। उन्होंने कहा कि आपातकाल लगाने के बाद उस समय की कांग्रेस सरकार ने कई ऐसे निर्णय किए जिन्होंने संविधान की भावना को कुचलने का काम किया। उस समय पर लिए गए कई निर्णयों का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि उन सभी निर्णयों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने कोशिश की कि न्यायपालिका पर नियंत्रण स्थपित कर संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशरी की धारणा को लोकतंत्र विरोधी रवैया बताया।
लोक सभा अध्यक्ष बिरला ने कहा कि आपातकाल के समय में तत्कालीन सरकार ने गरीबों और वंचितों को तबाह कर दिया। उन्होंने इमरजेंसी के दौरान लोगों पर सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी और अतिक्रमण हटाने की क्रूर नीतियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल एक काला खंड था, जिसने संविधान के सिद्धांतों, संघीय ढांचे और न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व को कम करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि आपातकाल हमें यह याद दिलाता है कि संविधान और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा आवश्यक है।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 18वीं लोक सभा बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने और इसकी रक्षा करने और संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता को कायम रखेगी। उन्होंने कहा कि 18वीं लोक सभा देश में कानून का शासन और शक्तियों के विकेंद्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध रहेगी। उन्होंने संवैधानिक संस्थाओं में भारत के लोगों कि आस्था और अभूतपूर्व संघर्ष को याद किया और कहा कि इस के कारण आपातकाल का अंत हुआ और एक बार फिर संवैधानिक शासन की स्थापना हुई।
लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि आपातकाल के समय में सरकारी प्रताड़ना के चलते अनगिनत लोगों को यातनाएं सहनी पड़ीं और उनके परिवारों को असीमित कष्ट उठाना पड़ा, जिसने भारत के कई नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया। सदन ने आपातकाल में आहत हुए देश के नागरिकों को स्मरण करते हुए दो मिनट का मौन रखा।