हीरानगर। मंगलवार शाम 7 बजकर 30 मिनट पर कठुआ जिले के कंडी इलाके के सोहाल गांव में जब दिन ढल रहा था तो हर कोई अपने काम निपटाने में व्यस्त था। किसान खेत से घर लौट रहे थे तो महिलाएं रात का भोजन बनाने की तैयारी में जुटी थीं।
अचानक गांव में गोलीबारी की आवाज शुरू हो जाती है। पहले लोगों ने इसे आतिशबाजी समझा लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें स्पष्ट हो गया कि यह आतंकी हमला है।
लाइट बुझाकर घर में छिपे रहे ग्रामीण
हमले के बाद लोग अपने घरों की तरफ भागे। भागते हुए हर कोई दूसरे को बता रहा था कि गांव में आतंकी घुस आए हैं। घर में पहुंचते ही दरवाजा बंद कर लाइट बुझा दी जा रही थी। घर के अंदर भी कोई तेज आवाज में बात नहीं कर रहा था क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं बाहर आतंकी उनकी आवाज न सुन लें।
गांव में भागवत कथा का भी आयोजन किया गया था। शाम को अधिकतर महिलाएं कथा सुनकर अपने घरों में पहुंची ही थी कि अचानक गोलियों की आवाज आने लगी थी। इससे पूरे गांव में दहशत का माहौल बन गया था।
कुछ ही देर में जम्मू कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के जवानों ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर ली और आतंकियों के खात्मे के लिए कार्रवाई शुरू कर दी।
पानी नहीं देने पर गोलियां चलाने लगे आतंकी
स्थानीय लोगों ने बताया कि एक घर के बाहर पहुंचे आतंकियों ने पीने के लिए पानी मांगा लेकिन उनकी वेशभूषा देखकर जब कोई आगे नहीं आया। उन्होंने सबसे पहले राज कुमार नामक एक व्यक्ति का गला दबाया और उससे पानी मांगा लेकिन वह किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग गया।
उसके बाद उन्होंने एक युवक को पकड़ा और उसे दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए। वह युवक भी जब अपनी जान बचाकर भागने लगा तो आतंकियों ने उस पर पागलों की तरह गोलियां बरसाना शुरू कर दी।
उन्होंने मानसिक रूप से दिव्यांग ओमकार व उसकी पत्नी से भी पानी मांगा लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने पर आतंकियों ने गोली चला दी जो ओमकार के हाथ में लगी। ऐसे में पति-पत्नी जोर-जोर से चिल्लाने लगे। उनकी मदद के लिए कोई नहीं आया।
उसके बाद आतंकी उसके अगले घर में घुसे, जहां उन्होंने घर के आंगन में एक ड्रम पर बाल्टी रखी थी। उन्होंने बाल्टी लेकर ड्रम से पानी निकाला और प्यास बुझाने के बाद उसी घर के बरामदे में आराम करने लगे। इस बीच सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाल लिया था जिसके बाद मुठभेड़ शुरू हो गई।
रात में नहीं बना भोजन, भूखा रहा पूरा परिवार
आतंकियों की गोली से घायल हुए ओमकार की भाभी आशा रानी ने बताया कि गांव के लोग भागवत कथा सुनने के बाद घर पहुंचे थे। रात के भोजन की तैयारी चल रही थी कि अचानक गोलियों की आवाज सुनाई दी। उस समय उनके पति कहीं बाहर गए थे।
उन्हें जब आतंकी हमले का पता चला तो उन्होंने आशा रानी को फोन कर इस बारे में जानकारी दी। पति के आने के बाद उन्होंने घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। एक कमरे में पूरा परिवार रातभर डरा-सहमा बैठा रहा। किसी ने कुछ नहीं खाया क्योंकि भोजन बनाने का मौका ही नहीं मिला।
रात में धीरे-धीरे फोन पर परिचितों से बात कर जानकारी लेते रहे। रात में ही आशा रानी को पता चला कि उनके देवर आतंकियों की गोली से घायल हो गए हैं। ऐसे में वे घबरा गईं। उन्होंने इसकी जानकारी अपनी 90 वर्षीय बुजुर्ग सास को नहीं दी क्योंकि वे परेशान हो जातीं।