निराकार अनंत ईश्वर हमारे पहुंच के बाहर हैं-स्वामी जी
लखनऊ। रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि यद्यपि निराकार अनंत ईश्वर हमारे पहुंच के बाहर हैं तथापि वही परमात्मा कभी-कभी मानव शरीर धारण करके अवतार रूप में आविर्भूत होते हैं ताकि साधारण जीव निराकार परमात्मा पहुंच सकें।
स्वामी जी ने बताया कि श्री रामकृष्ण एक दृष्टांत देते हुए यह रहस्य समझाया। उन्होंने एक दिन उनके अंतरंग भक्त मास्टर महाशय से पूछा, “अच्छा यदि ईश्वर फिर अवतार रूप में प्रकट हुए हैं तो वे पूर्ण रूप में है, अथवा अंश रूप में अथवा कला रूप में?” मास्टर महाशय ने उत्तर दिया, “जी, मैं तो पूर्ण, अंश और कला, यह अच्छी तरह समझता ही नहीं, परंतु जैसा आपने कहा चारदीवार में एक गोल छेद, यह खूब समझ गया हूं।” श्री रामकृष्ण ने कहा, “क्या, बताओ तो जरा?” मास्टर महाशय ने कहा, “चारदीवार के भीतर एक गोल छेद है। उस छेद से चारदीवार के एक तरफ के मैदान में कुछ अंश दीख पड़ता है। उसी तरह आपके भीतर से उस अनंत ईश्वर का स्पष्ट धारणा होता है।” श्री रामकृष्ण ने कहा, “हां, दो-तीन कोस तक बराबर दीख पड़ता है।”
अर्थात साकार और निराकार के बीच अवतार एक संयोग सेतु रूप से विराजमान है। उन्हीं के माध्यम से हम अनंत ईश्वर की एक झांकी देख सकते हैं।
इस बात का व्याख्यान करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने एक अन्य कहानी का उल्लेख किया। उस कहानी में है कि एक जगह एक विशाल प्राचीर था जिससे उस पार क्या है किसी को पता नहीं चला। तब कई दोस्त मिलकर परिकल्पना किया कि उसमें से एक व्यक्ति उस दीवार के ऊपर चढ़कर दीवार के उस पार क्या दिख रहा है वह देखते हुए सबको बताएंगे। इस परिकल्पना अनुसार उन्होंने एक व्यक्ति को ऊपर भेज दिया लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति दीवार के उस पार देखा इतना अपलूत हो गए कि हो-हो करके दीवार के उस पार कूद पड़े। ऐसे ही एक के बाद एक आदमी दीवार पर चढ़कर गए और वापस नहीं आए। अंत में एक व्यक्ति दीवार पर चढ़कर सबकुछ देखा एवं वापस आकर अन्य को वहां की खबर दिया। वही अवतार जैसे हैं अर्थात ईश्वर के निर्गुण निराकार रूप इतना आकर्षणीय है कि एक बार उसका दर्शन करने के बाद जो जाते हैं उनको वापस आने की रुचि नहीं रहता है। लेकिन अवतार जब तक सबका उद्धार नहीं होता है तब तक इंतजार करते रहते हैं।
अवतार के अनूठा अवदान का उल्लेख करते हुए श्री रामकृष्ण ने बताया कि अगर कोई असीम-अनंत ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं तो वह अवतार के माध्यम से आसानी से प्राप्त कर सकेंगे।
स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि हमारा परम सौभाग्य है कि स्वयं भगवान नर शरीर धारण करके श्री रामकृष्ण रूप में अवतीर्ण हुए हैं एवं वह ही निराकार-साकार का संयोग सेतु है अर्थात अगर हम श्री रामकृष्ण के चरणों में आंतरिक प्रार्थना करते रहे तब अति अवश्य हमारा आध्यात्मिक दृष्टि उन्मोचित हो जाएगा एवं ईश्वर दर्शन करते हुए जीवन सफल और सार्थक हो जाएगा।