लोकसभा चुनाव में कुर्मी समाज की विरासत के पर्याय बने राकेश वर्मा

लोकसभा चुनाव में बढ़ा राकेश वर्मा का सियासी दायरा, तनुज पुनिया को मिली तरजीह

बाराबंकी। जिले की राजनीति में पहली बार कुर्मी मतदाताओं की विशेष मनुहार हो रही है। इंडी गठबंधन प्रत्याशी तनुज पुनिया और इनके पिता खुलकर कहते नजर आ रहे हैं कि हमारी जीत कुर्मी मतदाताओं के आशीर्वाद पर टिकी है। दूसरी तरफ भाजपा के चुनाव प्रभारी एमएलसी अवनीश कुमार सिंह पटेल कुर्मी मतदाताओं को अपने दल में रोके रहने हेतु पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की माला जप रहे हैं। यहाँ तक कि शुक्रवार को बाराबंकी में जनसभा को सम्बोधित करते हुए अपने व्यक्तव्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बेनी बाबू का नाम लिया। एक तरफ बेनी बाबू के बेटे पूर्व मंत्री राकेश वर्मा, तनुज पुनिया के पक्ष में वोट के लिए जनसभाएं कर रहे हैं और दूसरी तरफ भाजपा चुनाव प्रभारी अवनीश कुमार सिंह पटेल तथा भाजपा नेता शिवस्वामी वर्मा लगातार बेनी बाबू का नाम लेकर कुर्मी मतदाताओं को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं और सबसे ज्यादा शिवस्वामी वर्मा ही सोशल मीडिया पर पुराने वीडियो वायरल कर रहे हैं। ये दोनों नेता जो भी कर रहे हैं वो अपने दल और प्रत्याशी के लिए करना उनका फर्ज बनता है।

राजनीति में कोई किसी का स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता है। एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों कई-कई दलों के समूह का नाम है। सपा, कांग्रेस, आप, कई दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए एक दल के विरुद्ध दूसरे दल न तो प्रत्याशी उतार रहे हैं और न ही एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। जबकि इससे पहले के चुनाव में यही दल एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में जुटे हुए थे। भाजपा नेता शिव स्वामी वर्मा जब बेनी बाबू के साथ छात्र और युवाओं की राजनीति कर रहे थे तब सपा में रहते हुए तथा कांग्रेस में रहते हुए इन्होंने भाजपा को क्या-क्या नहीं कहा था। आज भाजपा में हैं तो सब मीठै-मीठ है। इसी प्रकार भाजपा नेता डॉ विवेक वर्मा अभी पिछले विधान सभा चुनाव में सदर से बसपा प्रत्याशी थे। क्या-क्या नहीं बोल रहे थे भाजपा के खिलाफ? किन्तु आज वे भाजपा में हैं तो सब उज्जरै-उज्जर लग रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 का विगुल बजने के बाद कई छुटके-बड़के नेता सपा का दामन छोड़ भाजपा में आ गए हैं। इन सभी को सुर और तान बदलना ही होगा। और तो और भाजपा प्रत्याशी खुद भी सपा में रहकर चुनाव लड़ चुकी हैं तब इनके सुर और बोल क्या थे ? आज जब भाजपा में हैं तो नजरिया और नजारे सब बदल गए हैं।

कहने का मतलब यह है कि किसी दूसरे दल में रहते हुए दिए गए बयान का उसी दल में आ जाने पर अर्थ और प्रासंगिकता शून्य हो जाया करते हैं। भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार में माननीय मंत्री पियरके बाबा जी जब भाजपा में नहीं थे तब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तथा पियरके बाबा के बीच जो डायलॉग बाजी हुई थी सभी को याद ही होगी। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपाईयों के बीच अलग-अलग समय में पाले बदलने से पहले एक दूसरे को क्या-क्या कहते रहे, किन-किन संज्ञाओं से नवाजते रहे किसी से छुपा नहीं है, आज भाजपा के साथ हैं।

बेनी बाबू जब सपा में थे तो एकबार सोनिया गाँधी के खिलाफ राय बरेली में अपने पारिवारिक दामाद राज कुमार वर्मा को एमपी का चुनाव लड़ा रहे थे, उस चुनाव में बेनी बाबू ने मंचों से सोनिया गाँधी को खूब अनाप-सनाप बोलते हुए विदेशी गुड़िया तक कह डाला था। समय बदला, सपा छोड़कर कांग्रेस में गए तो सोनिया गाँधी ने इन्हें कांग्रेस की सबसे बड़ी कमेटी सीडब्ल्यूसी में स्थायी सदस्य प्रस्तावित किया। तो बेनी बाबू बताते थे कि वे सोनिया से मिलने उनके आवास गए और उन्होंने याद दिलाया कि रायबरेली चुनाव में हमने आपको बहुत भला-बुरा कहा है। इस पर सोनिया ने मुस्कराकर कहा कि तब आप दूसरे दल में थे ऐसा बोलना आपकी जरुरत रही होगी। मतलब यह कि समय और अनुभव बदलने के साथ सोच समझ में बदलाव, प्रकृति का नियम है। देश दुनियाँ को अपने विचारों से सर्वाधिक प्रभावित करने वाले महात्मा बुद्ध गौतम, महात्मा गाँधी और स्वामी विवेकानंद की भी जीवनी पढ़ने से साफ पता चलता है कि समय और उम्र बदलने के साथ विचारों में बदलाव आते रहे हैं।

मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि कांग्रेसी नेताओं द्वारा बेनी बाबू के विरुद्ध कही गयी टिप्पणी अपमानकारी हो सकती है, इसमें कोई नई बात नहीं है क्योंकि जब दल बदलते हैं तो ऐसी टिप्पणियों का आना स्वाभाविक ही है। बेनी बाबू ने भाजपा को कभी पसंद नहीं किया। कौन नहीं जानता है कि बेनी बाबू को भाजपा में ले जाने की बहुत कोशिश की गई थी उन्होंने हर बार यही कहा कि राकेश जाएं हम उन्हें रोकते नहीं लेकिन हम भाजपा जैसे दल में नहीं जा सकते। आज भाजपा के लोग बेनी बाबू का नाम लेकर कुर्मी मतदाताओं के ध्रुवीकरण का सपना देख रहे हैं। भूलो मत ये सब बेनी बाबू के समर्थक और शुभचिंतक हैं जिनका सपना आज भी है कि राकेश कुमार वर्मा एक बार पावर में आ जाएं ताकि बेनी बाबू की अधूरी इच्छा पूरी की जा सके। यह बात सच है कि गोंडा से श्रेया वर्मा की जीत से राकेश का मान बढ़ेगा किन्तु यदि बाराबंकी से तनुज पुनिया जीतते हैं तो सपा में राकेश वर्मा का कद भी बढ़ेगा। जो भी हो बाराबंकी आज भी बेनी बाबू की कर्जदार महसूस करती है और जनता को बेनी बाबू की कमी खल रही है। अबकी बाराबंकी और गोंडा का यह चुनाव राकेश की न सिर्फ तकदीर बदलने वाला है बल्कि पिछले कई सालों की भारी कमी की भरपाई करने वाला है। तय करना है बेनी बाबू के समर्थकों और शुभचिंतकों को कि भाजपा के उकसावे में आकर राजरानी के पक्ष में मतदान करना है अथवा राकेश वर्मा की बात मानकर सपा में उनके जलवे को बढ़ाते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य का रास्ता खोलना है।

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