गोरखपुर के आसपास के जिलों में नेपाल से निकलने वाली नदियों के पानी से आ जाती है बाढ़

गोरखपुर व बस्ती मंडल के सातों जिलों के लोग बाढ़ की समस्या हैं। इन जिलों का कुछ न कुछ हिस्सा हर साल बाढ़ से प्रभावित रहता है और सैकड़ों हेक्टेयर फसल डूबकर बर्बाद हो जाती है। गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर आदि जिलों में नेपाल से निकलने वाली नदियों के पानी से बाढ़ आती है।

हर साल तटबंधों को ठीक करने का दावा किया जाता है लेकिन जब पानी का दबाव बढ़ता है तो तटबंध टूटते भी खूब हैं। दर्जनों गांवों के लोगों को बांध पर डेढ़ से दो महीने तक शरण लेने को मजबूर होना पड़ता है।

पशुपालकों के लिए यह दौर और कठिन होता है, परिवार के साथ अपने पालतू पशुओं को सुरक्षित रखना उनके लिए चुनौती होती है। पिछले कुछ वर्षों से बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए जरूरी प्रयास नजर आ रहे हैं।

तटबंधों के सुदृढ़ीकरण के लिए बाढ़ से कुछ दिन पहले मिलने वाला बजट अब जनवरी-फरवरी महीने तक मिल जा रहा है जिससे काफी काम पहले हो पा रहे हैं। स्थाई समाधान का दावा भी किया जा रहा है लेकिन अभी भी इस दिशा में पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जा सके हैं।

नदियों के चैनलाइजेशन एवं धारा मोड़ने की कई परियोजनाओं का दावा किया गया लेकिन इस क्षेत्र में कुछ पर ही काम हो सका। चुनाव के समय इसकी याद आती जरूरी है लेकिन बाद में सब कुछ शांत हो जाता है। इधर के सातों जिलों में बाढ़ की समस्या की पड़ताल करती रिपोर्ट…

गोरखपुर जिले में लगभग हर साल बाढ़ से हजारों परिवार प्रभावित होते हैं। दक्षिणांचल के इलाके में नदी का जलस्तर बढ़ा तो दर्जनभर से अधिक गांव पानी से घिर जाते हैं। लोगों के आवागमन के लिए नाव का सहारा रह जाता है। नदियां खतरे के निशान से ऊपर पहुंचती हैं तो लगभग सभी सात तहसीलों के 300 से अधिक गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं। हजारों हेक्टेयर फसल डूब जाती है।

तात्कालिक राहत पहुंचाने के नाम पर राहत सामग्री का वितरण किया जाता है लेकिन इस समस्या के स्थाई समाधान को लेकर नागरिकाें की मांग पर कोई ठोस पहल नजर नहीं आती। कैंपियरगंज में नदी की धारा मोड़ने का काम शुरू हुआ था लेकिन वर्षा काल के कारण उसे बंद कर दिया गया। तभी से काम ठप है। अब इस परियोजना के बारे में सिंचाई विभाग के अधिकारी भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं होते हैं। जिले में राप्ती, सरयू, कुआनो, रोहिन, आमी एवं गोर्रा नदी के पानी से बाढ़ की समस्या आती है।

पानी में विलीन हो चुके हैं दर्जनों मकान

संतकबीर नगर जिला मुख्यालय के उत्तर में होकर राप्ती और दक्षिण में सरयू बहती है। इसके साथ ही यहां से आमी, कुवानो और कठिनइया नदियां भी प्रवाहित होती हैं। वर्षा के समय दर्जनभर गांवों में नदी तबाही मचाती है। हर वर्ष नदी की कटान से चपरा पूर्वी, तुरकौलिया, जगदीशपुर, सियर कला, ढोलबजा, कंचनपुर, गायघाट दक्षिणी सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

वर्ष 2013 में सरयू की कटान में एमबीडी तटबंध का लगभग एक किलोमीटर हिस्सा बह गया था। जिससे अशरफपुर के दर्जनों मकान नदी में विलीन हो गए थे। बाद में सिंचाई विभाग द्वारा पक्के बंधे का निर्माण करवाया गया। वर्तमान में नदी का सबसे अधिक दबाव तुर्कवलिया बंधे पर बनता है। बाढ़ से मांझा क्षेत्र की खरीफ फसलों को प्रति वर्ष भारी पैमाने पर नुकसान पहुंचता है।

नदियों की ड्रेजिंग से हुआ फायदा

जनपद देवरिया में रुद्रपुर, बरहज तथा सलेमपुर का आंशिक हिस्सा बाढ़ की चपेट में आता है। जिले में सरयू नदी, राप्ती, गोर्रा व छोटी गंडक नदी प्रवाहित होती है। रुद्रपुर में राप्ती, गोर्रा तथा बरहज एवं सलेमपुर क्षेत्र में सरयू नदी से बाढ़ आती है। जिले में 112 गांव प्रभावित होते हैं।

बाढ़ से निजात पाने के लिए नदियों की खोदाई की मांग उठती रहती है। बाए़ से बचाव के कुछ उपाय यहां नजर आते हैं। कपरवार संगम तट से कटईलवा तक कटान से बचाव के लिए 59 करोड रुपये की लागत से बंधे का निर्माण कराया गया है।

लेकिन कपरवार में सरयू और राप्ती नदी के संगम के नोज पर यह कार्य नहीं होने से कटान की स्थिति बनी रहती है। मऊ जनपद के विंदटोलियां को कटान से बचाने के लिए ड्रेजिंग कराई गई है। पांच करोड़ की लागत का यह काम 2020 में शुरू हुआ। दो साल बाद इसे पूरा कर लिया गया।

नदी को 30 मीटर चौड़ा और पांच मीटर गहरा कर उसकी धारा को एक चैनल से प्रवाहित करने का रास्ता बनाया गया। सरयू नदी की धारा पैना और मेहियवां गांव के सामने दूसरी धारा में मिलाई गई। मऊ जनपद के विंदटोलियां, नई बस्ती की तीन हजार आबादी और दो सौ घरों को नदी की कटान से बचाने की योजना सफल नहीं हुई है।

नेपाल की नदियों से गांवों में मचती है तबाही

महराजगंज जिले में वर्षा के दिनों में सीमावर्ती नौतनवा, निचलौल, फरेंदा व सदर तहसील में बड़ी संख्या में गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं। गंडक, राप्ती, रोहिन व उनकी सहायक नदियों, नालों का जल स्तर बढ़ने से सैकड़ों एकड़ फसल जलमग्न होती है। 20 से अधिक गांवों के लोग दो माह के लिए विस्थापित होने का दंश भी झेलते हैं।

नेपाल के रूपन्देही व नवलपरासी जिले से सटे महराजगंज में बहने वाले नदी-नाले यहां प्रवेश करते हैं। गंडक नदी पर बने बाल्मीकिनगर बैराज को छोड़ दें तो किसी भी नदी के वेग को नियंत्रित करने की कोई व्यवस्था नेपाल या भारतीय क्षेत्र में स्थापित नहीं हुई है।

भारतीय सीमा क्षेत्र में 23 किलोमीटर बहने वाला महाव नाला मधवलिया व उत्तरी चौक रेंज के घने जंगल से होते हुए करौता गांव के समीप बघेला नाले में मिल जाता है। बीते 13 वर्षों में यह नाला 53 स्थानों पर टूटकर तबाही मचा चुका है।

दोगहरा गांव निवासी रामकोमल गौंड, विशुनपुरा गांव के प्रमोद चौधरी, देवघट्टी गांव के निवासी अनिल पांडेय व मंदीप यादव ने कहा कि बाढ़ की समस्या का स्थाई समाधान नहीं होने से वर्षा के समय में नदी-नाले ग्रामीणों के लिए मुसीबत बन जाते हैं। इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए हर चुनाव में बात उठती है लेकिन चुनाव के बाद सभी इसे भूल जाते हैं।

बाढ़ के साथ कटान से और भी बढ़ जाती है समस्या

नेपाल के पहाड़ों से निकली नारायणी नदी उफनाने पर कुशीनगर जिले को प्रभावित करती है। नदी की कटान से खतरा उत्पन्न हो जाता है और लोग सशंकित हो जाते हैं। बाढ़ से 200 से अधिक गांव प्रभावित होते हैं। अमवाखास व अहिरौलीदान बंधा के किनारे के 24 पुरवे अपना वजूद खो चुके हैं।

लोगों का कहना है कि नारायणी के एक किनारे पर बांध बनाया गया है। दूसरे किनारे पर भी बांध बनाने के साथ ही जर्जर बांधों पर मरम्मत कार्य व्यवस्थित ढंग से पूर्व में ही करा लिया जाए तो काफी हद तक क्षति रोकी जा सकती है।

500 गांव होते हैं प्रभावित, डूबती है फसल

सिद्धार्थनगर जिले में बाढ़ बड़ी समस्या है। हर वर्ष बाढ़ में करीब 500 गांव प्रभावित हैं। करीब 85-90 हजार किसानों की फसल बाढ़ में डूब जाती है। जिले में राप्ती, बूढ़ी राप्ती, कूड़ा, घोराही, वानगंगा सहित् सभी नदियों का उद्गम स्थल नेपाल में है।

नेपाल के पहाड़ों पर हल्की सी भी वर्षा होती है तो यहां डुमरियागंज, इटवा, शोहरतगढ़ तहसील क्षेत्र के अधिकांश गांव डूब जाते हैं। हर वर्ष बाढ़ को लेकर कार्य योजना बनती है लेकिन ठोस कार्य योजना के अभाव में किसानों को बड़ी राहत नहीं मिल पाती है।

बस्ती में घिर जाते हैं सौ से अधिक गांव, चार माह घर छोड़ शरणार्थी की तरह रहते हैं प्रभावित ग्रामीण

बस्ती में हर वर्ष बाढ़ में करीब 120 गांव एवं एक लाख लोग प्रभावित होते हैं। हजारों एकड़ फसल जलमग्न हो जाती है। हर वर्ष आठ माह घर गृहस्थी चलाने के लिए सामान जुटाने वाले बाढ पीड़ितों को चार माह शरणार्थी बनकर सुरक्षित स्थान पर रहना पड़ता है।

कभी-कभी नेपाल द्वारा छोड़े गए पानी के चलते अचानक बाढ़ आ जाती है। जिससे स्थिति और भी भयावह हो जाती है। स्थाई समाधान के लिए जिले में ड्रेजिंग का काम शुरू कराया गया था लेकिन इसे बीच में ही रोक दिया गया। हालांकि जितना काम हुआ, उससे कुछ फायदा नजर आ रहा है।

Related Articles

Back to top button