ईश्वर के पादपद्म ही हमारा परम आश्रय है – स्वामी मुक्तिनाथानंद जी

लखनऊ। कामना-वासना छोड़कर ईश्वर का सात्विक सुख अनुभव करना चाहिए-स्वामी जी

प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया अगर कोई ईश्वर के पादपद्मों में शरण लेते हैं तब वह इस संसार सागर को आसानी से पार कर लेते हैं।

यह बात हमारे शास्त्रों में बारम्बार कहा गया है। ईश्वर के पादपद्म में अगर किसी का अनुराग आ जाए तब वह अनायास ही यह भवसागर अतिक्रम करके सदैव के लिए मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि इसलिए एक भक्त साधक भगवान के पाद-पद्म में आश्रय लेने के लिए व्याकुल प्रार्थना कर रहे हैं जो कि रवींद्र संगीत के माध्यम से कवि रवीन्द्रनाथ ने उल्लेख किया।
वो रवींद्र संगीत उद्धृत करते हुए स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने कहा किहवहां पर एक भक्त प्रभु के पास निवेदन कर रहे हैं, “हे प्रभु! आप कृपया अपने चरण को प्राप्त करने के लिए हमें अवसर प्रदान करें। आप कृपया अपने चरण युगल हमसे हटाकर दूर ना ले जाए। मुझे अपने जीवन में जो सुख और दुःख का अवसर मिलेगा उसको अवलंबन करते हुए हम आपके चरण युगल हमारे वक्ष में धारण करेंगे। यह बात सच है कि हमारे अशेष कामना-वासना राशि हम वहन करते हुए परेशान हो गए। मैं आपको आह्वान करने के लिए कोई माल्यार्पण करने में असमर्थ रहा। हे प्रभु! आप स्वयं ही अपने हाथों में एक माल्य प्रस्तुत करें ताकि उसको देकर मैं आपको वरण कर सकूं।”

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि हमारा कामना वासना कभी मिटने वाला नहीं है, हमारी तृष्णा जीर्ण नहीं होता है हम ही जीर्ण हो जाते हैं। जैसे अग्नि में घृत आहूति देने से अग्नि समाप्त नहीं होती है अपितु अग्नि अधिक तेजी से जल जाती है वैसे ही वासना चरितार्थ करने के प्रयास से हमारी कामना-वासना की अग्नि समाप्त नहीं होती वरन अधिक उज्ज्वल हो जाती है।
स्वामी जी ने बताया कि संगीत में उल्लिखित वह भक्त और भी प्रार्थना कर रहे हैं “हे प्रभु! आपके पास हमारी पराजय हो अर्थात मेरी कामना-वासना की आकांक्षा पराजित होकर आपके पास आत्मसमर्पण करें। वही पराजय हमारे लिए सर्वोच्च विजय है। मैं अपने को चारों ओर बेचते हुए दिवालिया हो गया। कुछ इंद्रिय सुख पाने के लिए हम भिखारी के जैसे प्रत्येक दरवाजे में घूमते रहते हैं लेकिन कभी भी हमारा वो इंद्रिय सुख परितृप्त नहीं हुआ। अभी मैं चाहता हूं आप मुझे अपना लीजिए और हमें अपने गले का हार बनाकर सदैव के लिए धारण करें ताकि हम सदैव आपके साथ जुड़े रहते हुए धन्य और सार्थक हो जाए।”

स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया अगर हम इस अनुरूप ढंग से व्याकुल होकर भगवान के चरणों में प्रार्थना करते रहेंगे तब अवश्य भगवान की करुणा से हमारा मन ईश्वर केंद्रित हो जाएगा एवं हम धीरे-धीरे संसार का विषय सुख और कामना छोड़ते हुए ईश्वर का सात्विक सुख अनुभव करते रहेंगे एवं निरंतर ईश्वर के चरणों में, उनके पादपद्मों में बराबर के लिए आश्रय लेने के लिए प्रार्थना करते हुए इस जीवन में ही ईश्वर को प्रत्यक्ष करेंगे एवं ईश्वर के चरणों में शुद्धाभक्ति लाभ करते हुए इस जीवन को सार्थक और सफल कर लेंगे।

स्वामी मुक्तिनाथानन्द

अध्यक्ष
रामकृष्ण मठ लखनऊ।

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