बसपा से ब्राह्मण प्रत्याशी के आने से रोचक मुकाबले के आसार
क्या मौजूदा सांसद की नहीं होगी राहें आसान?
महोली (सीतापुर )परिसीमन के बाद वर्ष 2008 में अस्तित्व में आई सीतापुर व लखीमपुर जिले के कुछ क्षेत्रों को मिलकर बनी धौरहरा लोकसभा सीट पर वर्ष 2009 में पहली बार कांग्रेस से जितिन प्रसाद को सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ तो वर्ष 2014 व 2019 में मौजूदा सांसद रेखा वर्मा यहां से सांसद चुनी गई। वर्ष 2009 में इस सीट से प्रथम सांसद बनने का गौरव हासिल करने वाले जितिन प्रसाद वर्ष 2019 में चौथे स्थान पर पहुंच गए थे लेकिन हर बार खास बात यह रही की यहां से हर बार दूसरे स्थान पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ही रहे।
अब तक के लोकसभा धौरहरा के परिणामों पर नजर डालें तो पहली बार वर्ष 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के जितिन प्रसाद 391391वोट पाकर जीते थे तो उनके मुकाबले बसपा के राजेश वर्मा को 206 882 वोट मिले। वर्ष 2014 में मोदी लहर चली तो इस सीट पर रेखा वर्मा को 3360357 वोट तो बसपा के दाउद अहमद को 234682 वोट मिले, तथा वर्ष 2019 में मौजूद भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा को 512905 वोट तथा उनके मुकाबले बसपा प्रत्याशीअरशद इलियास सिद्दीकी को352294 वोट मिले थे।
धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में सवर्ण और मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है तो इस क्षेत्र में पिछड़ी जातियों का भी बोलबाला है। यहां नतीजे तय करने में मुस्लिम ओबीसी और एस सी वर्ग निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस बार धौरहरा सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फसती हुई नजर आ रही है इंडिया गठबंधन की तरफ से जहां सपा के टिकट पर आनंद भदौरिया चुनावी मैदान में है तो भाजपा से मौजूदा सांसद रेखा अरुण वर्मा हैट्रिक लगाने के प्रयास में है, बसपा के टिकट पर श्याम किशोर अवस्थी चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं जो हाल में ही भाजपा छोड़कर बसपा में आए हैं।
ज्ञात हो कि धौरहरा क्षेत्र में ब्राह्मण समाज के लोग भारी संख्या में निवास करते हैं इसलिए बसपा प्रत्याशी श्याम किशोर अवस्थी ब्राह्मण, दलित व मुस्लिम वोट का गटजोड़ लगाकर जीत की तैयारी कर रहे हैं तो भाजपा अपने परंपरागत वोटो के सहारे जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है। वहीं सपा प्रत्याशी आनंद भदौरिया पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक गठजोड़ के साथ पहली बार इस सीट पर समाजवादी पार्टी से अपना परचम लहराने की तैयारी में हैं। आनंद भदौरिया का क्षेत्रीय युवाओं में अच्छी पकड़ के साथ लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद जनता के संपर्क में रहे इन्हें इस बार अति पिछड़ों के साथ मुस्लिम व दलित वोट बड़ी संख्या में मिलने की उम्मीद है। वहीं लंबे समय तक भाजपा में रहे श्याम किशोर अवस्थी का बसपा के टिकट पर आना ब्राह्मण मुस्लिम दलित गटजोड़ तथा अंदर खाने से चल रही मौजूदा सांसद से ब्राह्मण समाज की नाराजगी चुनावी समीकरण त्रिकोणीय व कांटे का मुकाबला बना रहा है। अब देखना यह होगा कि किसका समीकरण फिट बैठता है कांटे के इस मुकाबले में इस बार जनता किसको जीत का ताज पहनती है?