सुप्रीम कोर्ट ने देश में जारी अवैध निर्माण पर अंकुश को लेकर सख्ती तेवर दिखाए

सुप्रीम कोर्ट ने देश में जारी अवैध निर्माण पर अंकुश को लेकर सख्ती तेवर दिखाए. कोर्ट ने कल मंगलवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि सिर्फ प्रशासनिक देरी, समय गुजर जाने या मौद्रिक निवेश (Monetary Investments) के आधार पर अनधिकृत निर्माण को वैध नहीं ठहराया जा सकता. साथ ही कोर्ट ने अवैध निर्माणों पर अंकुश लगाने को लेकर कई अहम निर्देश भी जारी किए. यह भी कहा कि फैसले की एक-एक कॉपी सभी हाई कोर्ट को भेजे जाएं ताकि ऐसे मामलों में वह इसका उल्लेख कर सकें.

जस्टिस जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने कहा कि निर्माण के बाद भी नियमों के उल्लंघनों को लेकर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसमें निर्माण के अवैध हिस्से को ध्वस्त करना और दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाना शामिल है. बेंच ने मेरठ में एक आवासीय जमीन पर अनधिकृत तरीके से बनाए गए वाणिज्यिक निर्माणों को ध्वस्त करने के फैसले को भी बरकरार रखा और शहरी नियोजन कानूनों के सख्त पालन तथा अधिकारियों की जवाबदेही की जरूरत पर जोर दिया.

SC ने जारी किए कई अहम निर्देश
देश की सबसे बड़ी अदालत ने शहरी विकास और प्रवर्तन को सही करने के लिए व्यापक जनहित में कई अहम निर्देश भी जारी किए. कोर्ट ने कहा, “हमारा मानना ​​है कि स्थानीय प्राधिकरण की ओर से स्वीकृत भवन योजना का उल्लंघन करके या उससे हटकर अलग तरह के निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, या फिर किसी भवन योजना को लेकर सहमति के बगैर ही दुस्साहसिक तरीके से निर्माण कार्य कराया जा रहा है तो उसे प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता.”

कोर्ट ने आगे कहा, “हर तरह के निर्माण कार्य नियमों का ईमानदारी से पालन करते हुए और उनका सख्ती से पालन करते हुए कराया जाना चाहिए. यदि किसी तरह के उल्लंघन को कोर्ट के संज्ञान में लाया जाता है, तो इसे “कठोरता से रोका जाएगा” क्योंकि किसी भी तरह की नरमी “गलत सहानुभूति” दिखाने जैसा होगा.

‘अधिकारियों की लापरवाही का बहाना नहीं’
गलत तरीके से बनाए गए निर्माण को गिराए जाने या उसके खिलाफ एक्शन को लेकर कोर्ट ने कहा, “अवैध कार्यों को सुधारने के निर्देश देने में देरी, प्रशासनिक तौर पर नाकामी, विनियामक अक्षमता, निर्माण की लागत, कानूनों के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने के मामले में अधिकारियों की ओर से बरती गई लापरवाही और ढिलाई, ऐसे निर्माणों के खिलाफ की गई कार्रवाई का बचाव करने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.”

36 पेज के अपने फैसले में बेंच ने यह भी कहा, “इस तरह के अनधिकृत निर्माण, निवासियों और आस-पास रहने वाले नागरिकों के जीवन के लिए खतरा पैदा करने के साथ ही, बिजली, भूजल और सड़कों तक पहुंच जैसे अहम संसाधनों पर भी खासा असर डालते हैं, जिसे खास तौर पर व्यवस्थित विकास और अधिकृत गतिविधियों के रूप में उपलब्ध कराने के लिए तैयार किया गया है.”

कोर्ट ने कहा कि बिल्डरों को भी बिना पूर्णता प्रमाण पत्र के इमारतों को नहीं सौंपने का संकल्प लेना चाहिए और निर्माण के दौरान स्वीकृत भवन योजनाओं को प्रदर्शित किया जाना चाहिए, जिसमें समय-समय पर निरीक्षण भी दर्ज किए जाने चाहिए.

SC ने लोन को लेकर बैंक को भी दिए निर्देश
साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले में बैंकों को सख्त निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि बैंक और वित्तीय संस्थानों को किसी भी भवन के निर्माण के बाद उसके पूरा होने के सर्टिफिकेट की पुष्टि करने के बाद ही उसके लिए लोन देना चाहिए. कोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार को यह भी निर्देश दिया कि वे सभी हाई कोर्ट को इस फैसले की एक कॉपी भेजें, ताकि वे इस तरह के विवादों पर विचार करते समय इसे संदर्भित कर सकें.

सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह फैसला कई अपीलों से संबंधित है, जिसमें एक अपील राजेंद्र कुमार बड़जात्या की ओर से दाखिल की गई थी. राजेंद्र कुमार ने उक्त अपील इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2014 के एक फैसले के खिलाफ दाखिल की थी. तब कोर्ट ने मेरठ के शास्त्री नगर में एक भूखंड पर अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, साथ ही देश में ऐसी अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने को लेकर कई निर्देश भी पारित किए.

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