प्रलय नहीं, लेकिन बड़ा जल संकट! HKH क्षेत्र में फिर घटी बर्फबारी, भारत सहित कई देशों पर असर

दुनिया भर में एक तरफ जहां तापमान तेजी से बढ़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ बर्फ का हिस्सा भी कम होता जा रहा है. इसका खामियाजा भी इंसानों को ही भरना है. सोमवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि इस साल हिंदू कुश पर्वत (एचकेएच) क्षेत्र में बर्फ का स्तर – या आमतौर पर नवंबर से मार्च के बीच जमीन पर रहने वाली बर्फ – सामान्य स्तर से 23.6 प्रतिशत कम थी, जो पिछले 23 वर्षों में सबसे कम है.

इस रिपोर्ट के आने बाद साफ है कि आने वाले समय में पानी की समस्या भी देखने को मिल सकती है. रिपोर्ट में बताया गया कि भारत समेत कई देशों के लिए बुरी खबर है. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) ने 2025 एचकेएच अपडेट रिपोर्ट में कहा कि यह क्षेत्र में सामान्य से कम मौसमी बर्फ घटने का लगातार तीसरा साल है, पिछले 3 सालों से यहां बर्फ का हिस्सा कम होता जा रहा है.

कम बर्फबारी बनी वजह

रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कई जगहों पर जहां बर्फबारी देखने को मिलती थी, वहां पिछले 3 सालों से बर्फबारी नहीं हो सकी है. जहां बर्फबारी हो रही है तो वहां औसत से कम हो रही है. यही कारण है कि जमीन पर गिरने वाली वाली बर्फ तेजी से पिघल रही है. कम बर्फबारी का असर साफ तौर पर नदियों पर देखने को मिलेगा. नदियों में अगर पानी कम रहेगा तो साफ है कि आने वाले दिनों में लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है.

दो अरब लोग होंगे प्रभावित

ग्लेशियर से होने वाली पानी की पूर्ति भले ही कम हो लेकिन बर्फ और पेड़ों के बीच उगने वाली घास हिन्दू-कुश हिमालय क्षेत्र में बाढ़ को बढ़ाने का काम कर सकती है. हिंदू कुश पर्वत के पूरे क्षेत्र में बर्फ के स्तर में तेजी से गिरावट देखने को मिल रही है. पड़ोसी देशों के लगभग दो अरब लोगों की पानी पूर्ति प्रभावित हो सकती है.

आज नहीं संभले तो आगे होगी और समस्या- पेमा ग्यामत्शो

आईसीआईएमओडी के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने कहा कि इंसानी गतिविधियों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन इस बर्फ की कमी की बड़ी वजह बनकर सामने आ रहा है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर अब भी हम आज नहीं संभले, तो आने वाले भविष्य में पीने के पानी, खेती और बिजली के लिए हालात और बिगड़ सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्रीय बर्फ संकट और लंबे समय के लिए खाद्य, जल और ऊर्जा लचीलेपन के लिए इसकी तरफ से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए, हमें तत्काल साइंस -आधारित, दूरदर्शी नीतियों की ओर एक आदर्श बदलाव को अपनाने और सीमा पार जल प्रबंधन और उत्सर्जन शमन के लिए नए सिरे से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.

इन नदियों में कम हुआ बर्फ का स्तर

भारत में, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी प्रणालियों में बर्फ की महत्वपूर्ण कमी देखी गई है. गंगा बेसिन में दो दशकों में सबसे कम बर्फ जमी है, जो सामान्य से 24.1 फीसदी कम है. इसका मतलब है कि गर्मियों की शुरुआत में कम बर्फ पिघलेगी. इस समय में खेती और पीने के पानी की मांग ज्यादा होती है. वहीं, ब्रह्मपुत्र बेसिन में बर्फ का स्तर सामान्य से 27.9 फीसदी कम रहा, जिससे जलविद्युत उत्पादन और कृषि पर बुरा असर पड़ सकता है.

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