
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 में जीवन रक्षक दवाओं और दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर आयात शुल्क में छूट की घोषणा की है। इसमें 36 दवाओं को पूरी तरह से आयात शुल्क से मुक्त किया गया है, जबकि छह दवाओं पर 5% की रियायती दर लागू की गई है। इसके अलावा, 37 और दवाओं को मरीज सहायता कार्यक्रमों के तहत शामिल किया गया है, जिससे इन दवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी।
क्या ये छूट मरीजों के लिए फायदेमंद होंगी?
हालांकि यह कदम सराहनीय है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि पेटेंट अधिकारों के कारण इन दवाओं की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी। पेटेंट के कारण जेनेरिक दवाओं का उत्पादन सीमित है, जिससे दवाओं की कीमतों में कमी नहीं आ पा रही है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार अनिवार्य लाइसेंस का उपयोग करके जेनेरिक दवाओं के उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है, जिससे दवाओं की कीमतें 99% तक कम हो सकती हैं।
क्या मरीजों को वास्तविक राहत मिलेगी?
मरीजों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का कहना है कि आयात शुल्क में छूट से दवाओं की कीमतों में मामूली कमी आएगी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। उदाहरण के लिए, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारियों की दवाओं की कीमतें लाखों रुपये में हैं, और आयात शुल्क में छूट से इनकी कीमतों में महत्वपूर्ण कमी नहीं आएगी।
निष्कर्ष
बजट 2025 में दवाओं पर आयात शुल्क में छूट एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह मरीजों के लिए पर्याप्त राहत प्रदान करने में सक्षम नहीं होगा। सरकार को पेटेंट अधिकारों के दुरुपयोग को रोकने और जेनेरिक दवाओं के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि दवाओं की कीमतों में वास्तविक कमी लाई जा सके और मरीजों को सस्ती और सुलभ चिकित्सा मिल सके।