बाल तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार: “कोई गंभीरता नहीं दिख रही यूपी सरकार में”

बच्चों को तस्करी के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है. अदालत ने मंगलवार को बच्चों की तस्करी को रोकने और बाल तस्करी अपराधों से जुड़े मामलों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के लिए व्यापक दिशा-निर्देश निर्धारित किए. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि सभी राज्य सरकारें हमारी विस्तृत सिफारिशों पर गौर करें और भारतीय संस्थान द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अध्ययन करें तथा उसे जल्द से जल्द लागू करें.

कोर्ट ने कहा कि देशभर के हाई कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि वे बाल तस्करी के मामलों में लंबित मुकदमों की स्थिति के बारे में जानकारी लें. इसके बाद 6 महीने में मुकदमा पूरा करने तथा प्रतिदिन सुनवाई करने के निर्देश जारी किए जाएं.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
अदालत ने कहा कि निर्देशों को लागू करने में किसी भी तरह की ढिलाई को गंभीरता से लिया जाएगा तथा इसे अवमानना ​​माना जाएगा. जस्टिस पारदीवाला ने आदेश में कहा कि अभियुक्त के दोषी या निर्दोष होने का फैसला मुकदमे के दौरान साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा और इस न्यायालय के किसी भी अवलोकन से प्रभावित नहीं होगा.

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हमने मुख्य मामले को अनुपालन के लिए फिर से अधिसूचित करने के लिए कहा है. हमने 21 अप्रैल, 2023 को एक अंग्रेजी अखबार में छपी की रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया है और हमने इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी को मामले की स्थिति और दिल्ली के बाहर और अंदर काम कर रहे ऐसे गिरोहों से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इसकी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के रूप में आपको अपने बच्चे के बारे में सतर्क रहना चाहिए. जब ​​बच्चा मर जाता है तो माता-पिता को जो दर्द और पीड़ा होती है, वह तब अलग होती है जब बच्चा तस्करी के गिरोहों के हाथों खो जाता है. जब बच्चा मर जाता है तो बच्चा भगवान के पास होता है, लेकिन जब खो जाता है तो वे ऐसे गिरोहों की दया पर होते हैं.

अदालत ने कहा कि यदि किसी अस्पताल से कोई नवजात शिशु तस्करी के दायरे में आता है तो सबसे पहला कदम ऐसे अस्पतालों का लाइसेंस निलंबित करना चाहिए. यदि कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देने आती है और बच्चा चोरी हो जाता है तो सबसे पहला कदम लाइसेंस निलंबित करना है.

कोर्ट ने कहा कि अखबार की रिपोर्ट के संज्ञान के लिए 21 अप्रैल को मामले को फिर से सूचीबद्ध किया जाए. अगर कोई अस्पताल नवजात तस्करी के दायरे में आता है तो अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना चाहिए.

यूपी में बच्चों की तस्करी का मामला…
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आदेश में कहा हम इस बात से पूरी तरह निराश हैं कि यूपी सरकार ने इस मामले को कैसे संभाला और क्यों कोई अपील नहीं की गई, कोई गंभीरता नाम के लायक भी नहीं दिखाई गई. ऐसा लगता है कि आरोपी को बेटा चाहिए था और फिर उसने 4 लाख रुपये में बेटा पा लिया.

कोर्ट ने कहा कि अगर आपको बेटा चाहिए तो आप तस्करी किए गए बच्चे के पास नहीं जा सकते. उसे पता था कि बच्चा चोरी हो गया है. यह अग्रिम जमानत का निरस्तीकरण निर्णय है, लेकिन हमने बाल तस्करी के पहलू पर विचार किया.

अदालत ने आगे कहा कि 2023 में एनएचआरसी ने भारतीय विकास संस्थान को बाल तस्करी के अध्ययन का जिम्मा सौंपा था और एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी. विस्तृत सिफारिशें पारित की गईं. हमने उन्हें अपने निर्णय का हिस्सा बनाया है. हाईकोर्ट ने जमानत याचिकाओं पर लापरवाही से कार्रवाई की और इसके कारण कई आरोपी फरार हो गए.

 

 

 

 

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