2027 की जंग में BJP के लिए मददगार बनेगा संघ, PDA का बनाया काउंटर प्लान

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में है, लेकिन बीजेपी और सपा के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है. बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में है तो सपा अपने सियासी वनवास को खत्म करने की जद्दोजहद में जुटी है. अखिलेश यादव की पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक वाली पीडीए पॉलिटिक्स के आगे बीजेपी का सवर्ण-पिछड़ा-दलित वाली सोशल इंजीनयरिंग फेल हो गई थी. पीडीए पर सवार सपा ने बीजेपी का सारा सियासी गेम ही बिगाड़ कर रख दिया था.

ऐसे में योगी सरकार की वापसी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मददगार बनेगा. सपा के पीडीए फॉर्मूले को काउंटर करने के लिए संघ योगी सरकार के साथ बीजेपी के लिए सियासी माहौल बनाने की कवायद करेगा.

संघ प्रमुख मोहन भागवत एक हफ्ते के उत्तर प्रदेश के प्रवास यात्रा पर थे, जहां उन्होंने अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. संघ प्रमुख ने काशी प्रवास के दौरान एक कार्यक्रम में कहा कि मंदिर, पानी और श्मशान घाट जैसी चीजें हर हिंदू को बिना किसी भेदभाव के मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी की भी जाति के हों. वहीं, दूसरी ओर लखनऊ में संघ के सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में संघ की आर्थिक समूह के साथ समनव्य बैठक हुई. संघ परिवार और बीजेपी सरकार के बीच विधानसभा चुनाव 2027 का रोडमैप तैयार करने को लेकर रूपरेखा बनी. संघ की सियासी बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए सपा भी सतर्क हो गई है और गांव-गांव पीडीए को मजबूत करने की कवायद में जुट गई है.

SP के पीडीए को संघ करेगा काउंटर
सपा प्रमुख अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला 2024 में हिट रहा था. यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से सपा ने 37 सीटें जीतीं तो कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि बीजेपी को 33 सीट और उसके सहयोगी दलों के पाले में केवल तीन सीटें आई थीं. सपा अपने इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें 2024 में जीतने में कामयाब रही. इसके चलते ही अखिलेश ने 2027 के लिए अपनी पीडीए की सियासत को मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है. सपा के जातीय पैटर्न से बीजेपी अलर्ट हो गई है और जातियों में बिखरे हिंदुओं को फिर से एकजुट करने की मुहिम में जुटी है.

सीएम योगी के ‘बंटोगे तो कटोगे, एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ का नारा हो या फिर 80-20 का नैरेटिव, ये सारी कवायद जातियों में बिखरे हिंदुओं को एक साथ लाने की रणनीति है. वहीं, संघ प्रमुख मोहन भागवत के काशी प्रवास के दौरान मंदिर, पानी और श्मशान घाट सभी के बताकर हिंदुओं की एकता को मजबूत करने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है. उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल है, चाहे वह मुस्लिम हो या हिंदू, क्योंकि वे सभी भारतीय हैं. ऐसे में हमें सभी को साथ लेकर चलना है.

हिंदू एकता पर आरएसएस का रहा जोर
आरएसएस बहुत पहले से ही हिंदू एकता की वकालत करता रहा है. वह समाज से छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए प्रयास करता हुआ दिखता रहा है. लेकिन अब जब संगठन अपने सौ साल पूरे कर रहा है तब भी ये समस्याएं जस-की तस समाज में बनी हुई हैं. देश में जोर पकड़ती जातीय जनगणना की मांग ने बीजेपी के सियासी समीकरण को बिगाड़ने के साथ संघ की सालों से की जा रही मेहनत पर ग्रहण लगाता नजर आ रहा है.

जातीय जनगणना की मांग सवर्ण जातियों के खिलाफ पिछड़ी जातियों की गोलबंदी के रूप में देखा जा रहा है. इसे संघ विराट हिंदू एकता के लिए खतरा मानता है. ऐसे में संघ प्रमुख की कोशिश जातियों में बिखरे हुए हुए हिंदुओं को एक छतरी के नीचे लाने की है.

कांग्रेस और सपा के द्वारा उठाए गए 2024 में आरक्षण और संविधान के मुद्दे से दलितों और पिछड़े समाज के लोग भावनात्मक रूप से जुड़े थे. दलित और पिछड़ा समाज ही हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से की संरचना करता है. यह चुनावी राजनीति का एक बड़ा हिस्सा भी है. इसे देखते हुए ही आरएसएस ने इस वर्ग तक अपनी बात पहुंचाने के लिए हिंदू एकता और गांवों तक शाखा की पहुंच बढ़ाने की बात पर जोर दे रहा है. इसीलिए संघ अभी से ही हिंदुओं को एकजुट करने की कवायद में है ताकि 2027 में बीजेपी से लिए सियासी राह मुश्किल भरी न हो सके.

संघ और सरकार के बीच सियासी केमिस्ट्री
संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में मंगलवार को संघ के आर्थिक समूह के साथ लखनऊ में समन्वय बैठक हुई. जनता के फीडबैक के आधार पर संघ परिवार और सरकार मिलकर विधानसभा चुनाव 2027 का रोडमैप तैयार करेंगे. इसके लिए रोजगार, रिक्त सरकारी पदों पर भर्ती और किसानों-गरीबों से जुड़े मुद्दों पर सरकार को खास फोकस करने की बात कही गई है. संघ ने योगी सरकार को रोजगार की दिशा में तेजी से काम करने और सरकारी विभागों में रिक्त पदों पर भर्ती का सुझाव दिया.

आरएसएस से जुड़े आर्थिक समूह के भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सहकार भारती, लघु उद्योग भारती समेत कई संगठनों के पदाधिकारी बैठक में शामिल हुए. साथ ही योगी सरकार के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर, श्रम व सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर, उद्योग मंत्री नंद गोपाल नंदी, एमएसएमई मंत्री राकेश सचान भी मौजूद रहे. इस दौरान मजदूर संघ ने संविदा कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा समेत कई मुद्दे उठाए. भारतीय किसान संघ ने कहा कि किसानों के लिए पहले की तरह आगे भी कर्ज माफी पर विचार किया जाए.

लोकसभा चुनाव 2024 में स्वयंसेवकों की निष्क्रियता के असर बीजेपी के नतीजे पर पड़ा था. ऐसे में संघ ने 2027 के चुनाव में बीजेपी के लिए सियासी मदद करने का फैसला किया है. संघ प्रमुख ने यूपी में अलग-अलग हिस्सों में जाकर सियासी थाह ली और निष्क्रिय स्वयंसेवकों को फिर सक्रिय करने के लिए पदाधिकारियों को उनके घर जाकर उनसे संवाद करने को दिशा-निर्देश भी दिए. इस तरह बीजेपी के लिए संघ की सियासी मदद ही सत्ता की हैट्रिक का सपना पूरा करा सकती है.

संघ की सक्रियता से सपा अलर्ट
संघ के सक्रिय होते ही सपा ही अलर्ट हो गई है. सपा अपने पीडीए फॉर्मूले को और भी मजबूत करने की कवायद में जुट गई है. अखिलेश का फॉर्मूला जातीय गणित पर आधारित है और 90-10 का दांव चल रहे हैं. ऐसे में अखिलेश यादव समाजवादियों के साथ अब अंबेडकरवादियों को भी जोड़ने में लगे हैं. सपा की कोशिश पिछड़ा-दलित के साथ अल्पसंख्यक वोटों का मजबूत समीकरण बनाना चाहती है.

सपा का पूरा फोकस दलित वोटबैंक जोड़ने पर है, जिसके लिए बसपा के बैकग्राउंड वाले नेताओं को अपने साथ मिला रहे हैं. इसके अलावा ‘अंबेडकर जयंती’ के मौके पर सपा ने स्वाभिमान-स्वमान समारोह का आयोजन कर रही. इस तरह सपा संविधान और आरक्षण बचाने के नैरेटिव को सेट करने की स्ट्रेटेजी पर काम कर रही है.

सपा दलितों को जोड़ने के साथ ओबीसी और दलित समाज पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए वैचारिक फ्रंट पर संघ परिवार के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया है. सपा ने स्ट्रैटेजी बनाई है कि समाजवादी विचारों को गांव-गांव व घर-घर तक पहुंचने की है. सपा नेतृत्व ने समर्पित टीमें बनाने का फैसला किया है. ये टीमें ब्लॉक, तहसील व जिला स्तर पर जाकर काम करेंगी. सपा नेतृत्व समाजवादी विचारक राममनोहर लोहिया के उदार हिंदुत्व के रास्ते को ठीक मानता है.

सपा सूत्रों की माने तो संघ परिवार के विचार कट्टर हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए समाजवादियों को उनके विचारों का खुलकर विरोध करने के लिए उतरना होगा. धर्म और हिंदुत्व पर लोहिया के जो विचार हैं, उन्हें पैंफलेट के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जाएगा. साथ ही यह भी बताया जाएगा कि उदार और कट्टर हिंदुत्व में क्या अंतर है. कट्टर हिंदुत्व की धारा क्यों देश और समाज के लिए घातक है. सपा ने तय किया है कि मनुस्मृति के खिलाफ भी समाजवादी पक्ष को जनता के बीच रखा जाएगा, जिससे दलित और पिछड़े वर्ग पर सियासी पकड़ बनी रहे.

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