
सुप्रीम कोर्ट ने आज देशभर में राज्यपालों का राज्यों की निर्वाचित सरकारों को दरकिनार करने के प्रयास की हालिया प्रवृत्ति पर काफी सख्त रुख अपनाया. अदालत ने कहा कि उन्हें राजनीतिक कारणों से राज्य विधानसभाओं पर अपना नियंत्रण नहीं रखना चाहिए, जिससे लोगों की इच्छा को ठेस पहुंचे. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल टीएन रवि के राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबे समय तक टाले रखने पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणी की.
अदालत ने कहा कि राज्यपाल को संसदीय लोकतंत्र की स्थापित परंपराओं के प्रति उचित सम्मान के साथ काम करना चाहिए. साथ ही, विधानसभा के माध्यम से व्यक्त की जा रही लोगों की इच्छा और लोगों के प्रति जवाबदेह निर्वाचित सरकार का सम्मान करना चाहिए.सर्वोच्च अदालत ने सबसे तल्ख टिप्पणी ये की कि राज्यपालों को राजनीतिक कारणों से विधानसभा के कामकाज में बाधा नहीं बनना चाहिए.
विधानसभा को बताया सुप्रीम
अदालत ने राज्य सरकार की शक्तियों को एक तरह से सुप्रीम बताते हउए कहा कि विधानसभा के सदस्य, लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत राज्य के लोगों ने चुने हैं, इसलिए वे राज्य के लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को उस समय विधेयक को मंजूरी दे ही देनी चाहिए जब राज्य विधानसभा दोबारा सलाह-मशविरा के बादकोई विधेयक उनके सामने ले आए. अदालत ने स्पष्ट ये भी किया कि राज्यपाल केवल तभी मंजूरी देने से इंकार कर सकते हैं जब वो विधेयक अलग हो.
अदालत ने राज्यपाल की तरफ से10 विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने की कार्रवाई अवैध और मनमाना अदालत ने माना. इसलिए इस पूरी कार्रवाई को रद्द भी कर दिया.सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राज्यपालों के निर्णय लेने के लिए समय-सीमा में काम करने का सुझाव भी दिया.फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों को मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अधिकतम एक महीने के भीतर विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने का निर्णय लेना चाहिए. जबकि राज्यपालों को विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर सहमति न देने का निर्णय अधिकतम 3 महीने के भीतर लेना चाहिए.