
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ विचार की प्रेरणा स्वार्थ की प्रेरणा नहीं है और ना ही भय है. शुद्ध सात्विक प्रेम की प्रेरणा है. इसी प्रेरणा की वजह से 1.5 लाख के ऊपर समाज सेवा के काम चल रहा है. समाज ने संघ के स्वयंसेवक को काम करते देखा. सेवा के काम दया भाव से नहीं बल्कि समाज के प्रति प्रेम से मिलता है.
स्वयं सेवक अपने लिए कुछ नहीं चाहते बल्कि अपने लिए कष्ट सहने की प्रेरणा करते हैं. इसके परिणाम स्वरूप अनुकूलता भी आई और बाधा भी दूर हुई.
समाज से है अथाह प्रेम
मोहन भागवत ने नागपुर में एक संबोधन के दौरान कहा कि ऐसे में स्वयं सेवक आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन ध्येय की वही दृष्टि अभी भी कायम है. ये सारे सेवा भाव समाज के अथाव प्रेम की वजह से करते हैं. इस सेवा का एक और भी उद्देश्य है कि हम सभी लोगों को एक नजरिया दे सकें.
मोहन भागवत ने कहा कि हमें परिस्थितियों के हिसाब से जो कुछ भी मिला हम उसी का बेहतर उपयो करें. अपने जीवन को स्वच्छ, सार्थक और निरामय बनाना, ये सभी को पूरा करने के लिए जीवन की जो दृष्टि है वो सारी इनकी है. ये दृष्टि सेवा भाव की वजह से हमारे पास आएगा.
उन्होंने कहा कि हमारे जीवन की परंपरा में एक सू्त्र ये है कि सभी का परोपकार किया जाए. उन्होंने कहा कि एक घंटे में शाखा में विकास और शेष 23 घंटे समाज के पोपकार के कामों में लगाए. उन्होंने कहा कि यही वो दृष्टि और नजरिया है जिसको देश के लोगों को देने के लिए संघ के सभी काम चलते हैं.
मोहन भागवन ने कहा कि संसाधन और अनुकूलता पाने के बाद भी ऐसे ही चलते रहेंगे. जब साधनों का उपयोग करने वालों का भाव ऐसा ही रहेगा तो इसका लाभ समाज के लोगों को भी मिल सकेगा.